Last Updated: Tuesday, February 4, 2014, 14:49
ज़ी मीडिया/हेल्पलाइन डेस्क दिल्ली की शैल कुमारी (68) विकासपुरी में रहती हैं। 1982 में उन्हें दिल्ली नगर निगम में प्राइमरी स्कूल सहायक टीचर की नौकरी मिली। इससे पहले शैल ने 1978 में बीएड करने के बाद हरियाणा में चार साल तक अस्थायी टीचर की नौकरी भी की थी। 24 साल चली एमसीडी की नौकरी में शैल को पहला एसीपी यानी एस्योर्ड कैरियर प्रोग्रेशन 12वें साल में मिला। लेकिन 2006 में मिलने वाला दूसरा एसीपी फ़ाइलों में ही फंसा रहा। इसीलिए साल भर बाद जब शैल कुमारी का प्रमोशन टीचर के पद पर हुआ तो उन्हें न तो प्रमोशन ग्रेड का वेतन मिला, न एसीपी का लाभ और ना ही छठे वेतन आयोग का पे-रिवीज़न। 2008 में शैल रिटायर भी हो गयीं, लेकिन घूसखोर बाबुओं ने उनकी कोई गुहार नहीं सुनी।
2008 में ही दिल्ली सरकार ने एमसीडी के सभी रिटायर शिक्षकों को दो साल के लिए फिक्स-पे पर एक्सटेंशन दे दिया। इसी वक़्त शैल कुमारी अपनी पेंशन और अन्य बक़ाये के लिए एमसीडी के बाबुओं के पीछे दौड़ने लगीं। बड़ी मुश्किल से एमसीडी कमिश्नर तक गुहार पहुंचायी तो तीन महीने बाद सहायक टीचर के पुराने पे-स्केल पर ही पांच हज़ार रुपये की पेंशन शुरू हो सकी। लेकिन अगले 15 महीने तक भी उन्हें फिक्स-पे एक्सटेंशन के मुताबिक कोई वेतन नहीं मिला, क्योंकि उनका अखिरी वेतन ही तब तक रिश्वतख़ोर बाबुओं ने तय नहीं किया था।
एमसीडी में टीचर की नौकरी पाते वक़्त भी शैल कुमारी भारी मुश्किलों में थीं। तेरह साल पहले उनकी शादी हुई थी, लेकिन शादी के पांच साल बाद अचानक उनके पति घर छोड़कर चले गये और फिर कभी नहीं लौटे। बेटा विजय और बेटी वन्दना को जैसे-तैसे बड़ा किया। तिनका-तिनका जोड़कर वन्दना की शादी कर दी, लेकिन बेटा विजय कौशिक शिक्षित बेरोजगार ही बना रहा। शैल के रिटायरमेंट के बाद पूरा परिवार पांच हज़ार रुपये की आंशिक पेंशन पर निर्भर हो गया। पांच साल पहले शैल कुमारी को बुढ़ापे की बीमारियों ने घेर लिया। बिगड़ी माली ख़राब की वजह से वो अपनी ऑखों ऑपरेशन भी नहीं करवा सकीं और देखते ही देखते उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। इस दौरान भी एमसीडी से अपना हक़ पाने के लिए उन्होंने क्या कुछ नहीं किया, लेकिन बात नहीं बनी।
हारकर शैल कुमारी ने जून, 2013 में सम्पर्क किया। शैल कुमारी के हक़ को लेकर जुलाई में हमने एमसीडी वेस्ट ज़ोन के डिप्टी डायरेक्टर एजुकेशन जयचन्द को झकझोरा। पहले तो जयचन्द ने हमें खूब बरगलाया, फिर कार्यालय अधीक्षक सुमन अग्रवाल को नये सिरे से अर्ज़ी देने को कहा। तब शैल कुमारी की ग़ायब सर्विस बुक की ख़ोजबीन शुरू हुई। महीने भर तक कोई हलचल नहीं हुई तो हमने डिप्टी डायरेक्टर कमलेश सुमन और एडिशनल डायरेक्टर कृष्णा शर्मा को झकझोरा। इससे ऐसा हड़कम्प मचा कि छह साल से ग़ायब सर्विस बुक अचानक प्रकट हो गयी। इसके बावजूद अगले तीन महीने तक भ्रष्ट बाबुओं और उन्हें शह दे रहे अफ़सरों की पैंतरेबाज़ी नहीं थमी। वो शैल कुमारी की फ़ाइल पर कुंडली मारे ही बैठे रहे। तब नवम्बर में हमने सीधे डिप्टी डायरेक्टर कमलेश सुमन को आड़े हाथों लिया। कमलेश सुमन का ऐसा कौशल और पराक्रम देखने के बाद हमने जोनल डिप्टी कमिश्नर रवि चतुर्वेदी का रुख किया, जिनकी सख़्ती के बाद फ़ाइल में हरक़त होने लगी। 22 नवम्बर से भुगतान के लिए फ़ाइल अकाउंट्स विभाग में है। और ज़ल्दी ही शैल कुमारी की पेंशन पांच हज़ार से बढ़कर 15 हज़ार रुपये हो जाएगी। उन्हें नौ लाख रुपया का सारा बक़ाया भी मिल जाएगा।
ज़ी हेल्पलाइन की बदौलत मिले पीएफ के 50 हज़ार रुपये राजकोट : राजकोट के अजय किशोर मनदाविया ने दिसम्बर 2009 में एंजेल ब्रोकिंग फर्म की साढ़े चार साल पुरानी नौकरी छोड़ दी। तभी पीएफ के लिए मुम्बई के पीएफ दफ़्तर में अर्ज़ी दी। तीन महीने तक कोई हरक़त नहीं हुई तो अजय ने ख़ोजबीन की और फिर से अर्ज़ी दी। तीन साल तक धक्के खाने के बाद भी पीएफ नहीं मिला तो फरवरी में अजय ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने उनके हक़ को लेकर पीएफ अफ़सरों को झकझोरा तो जुलाई में अजय को उस बैंक खाते का चेक भेजा गया, जो बन्द हो चुका था। तब अजय ने हमसे फिर सम्पर्क किया। हमारी मदद से नवम्बर में उन्हें 50 हज़ार रुपये मिल गये।
ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम पर मिला एरियर और प्रमोशनसिरमौर : सिरमौर के भूपिन्दर शर्मा को 1983 में हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड में जूनियर क्लर्क की नौकरी मिली। 16 साल पहले हेराफेरी के आरोप में भूपिन्दर सस्पेंड हो गये। लेकिन तीन साल पहले वो अदालत से बरी हो गये। लेकिन तभी से बक़ाया और प्रमोशन को लेकर उनकी हर गुहार अनसुनी हो रही थी। हारकर दिसम्बर में भूपिन्दर ने ज़ी हेल्पलाइन से सम्पर्क किया। तब हमने हिमाचल बिजली बोर्ड के कार्यकारी निदेशक रोहित जामवाल को अदालत की अवमानना को लेकर झकझोरा। इससे हफ़्ते भर में ही भूपिन्दर के प्रमोशन और बक़ाये की फ़ाइल पास हो गयी।
‘हक़’ की बदौलत चालू हुई पेंशन, मिला 1 लाख का बक़ायाजलगांव : जलगांव की सुमनबाई मधुकर जाधव के पति मधुकर बालाजी जाधव पौने दो साल पहले सेंट्रल रेलवे से रिटायर हुए। रिटायर होते ही वो कैंसर की चपेट में आ गये और साल भर में ही चल बसे। तभी से फैमिली पेंशन बन्द हो गयी। इसे बहाल करवाने के लिए बुज़ुर्ग सुमनबाई दस महीने से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अफ़सरों के पास गुहार लगाती दौड़ रही थीं। इससे तंग आकर उनके बेटे दीपक जाधव ने सितम्बर में ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। तब हमने बैंक के अफ़सरों को झकझोरा तो महीने भर में ही सुमनबाई की दस हज़ार रुपये की पेंशन चालू हो गयी और उन्हें एक लाख रुपये का बकाया भी मिला।
ज़ी हेल्पलाइन की मुहिम पर ख़राब एसी की रकम कम्पनी ने लौटायीनागपुर : नागपुर के रवि सोनकुसरे ने जुलाई में सैमसंग के दो टन वाला विंडो एयरकंडीशनर खरीदा। लेकिन हफ़्ते भर में ही उसमें ख़राबी आ गयी। रवि की शिकायतों पर सैमसंग ने चार महीने में दो बार एसी का कम्प्रेशर भी बदला। लेकिन ख़राबी बनी ही रही, तो तंग आकर रवि ने सैमसंग ने एसी बदलने की मांग की। लेकिन सैमसंग उसे अनसुनी ही करती तो हारकर अक्टूबर में रवि ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने उनके हक़ की ख़ातिर सैमसंग के आला अफ़सरों को झकझोरा तो दिसम्बर में सैमसंग इंडिया ने रवि को 38,500 रुपये लौटा दिये।
ज़ी हेल्पलाइन की बदौलत विजयेन्द्र को मिला दुकान का कब्जागुड़गांव : गुड़गांव के विजयेन्द्र शर्मा ने जुलाई 2012 में शहर के जेएमडी बिल्डर ग्रुप से इनोवेटिव लेजेंड हाइट्स प्रोजेक्ट में एस्योर्ड रिटर्न प्लान के तहत एक दुकान खरीदी। पचास लाख रुपये के इस सौदे में सितम्बर 2013 तक ही विजयेन्द्र को पचास हज़ार रुपये महीने का रिटर्न मिला। अगले तीन महीने तक जेएमडी बिल्डर ने दुकान का कब्ज़ा नहीं दिया। हालांकि इस दौरान कई बार विजयेन्द्र ने जेएमडी बिल्डर से शिकायत की। हारकर जनवरी में विजयेन्द्र ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने उनके हक़ को लेकर जेएमडी बिल्डर को आड़े हाथ लिया तो हफ़्ते भर में विजयेन्द्र को दुकान का कब्ज़ा दे दिया गया।
First Published: Tuesday, February 4, 2014, 14:46