ज़ी हेल्पलाइन की बदौलत रिटायर्ड रीडर को बकाया राशी मिलना तय

ज़ी हेल्पलाइन की बदौलत रिटायर्ड रीडर को बकाया राशी मिलना तय

अररिया : अररिया के राधा रमन चौधरी (70) ने 1968 में मगध यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल के साथ एमए की डिग्री हासिल की। दस साल तक प्राइवेट कॉलेजों में पढ़ाने के बाद 1978 में राधा रमन को अररिया कॉलेज में मैथिली विभाग में लेक्चरर की नौकरी मिली। दो साल बाद 1980 में बिहार सरकार ने अररिया कॉलेज का अधिग्रहण कर लिया। तभी राधा रमन की नौकरी पक्की हो गई, जो 23 साल चली। फिर 2003 में राधा रमन, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा से रीडर के पद से रिटायर हुए। लेकिन सेवानिवृत्ति के 10 साल बाद भी राधा रमन को ग्रेच्यूटी, अर्जित अवकाश, जीआईसी और वेतन का क़रीब बीस लाख रुपये का बक़ाया नहीं मिला। 2003 में रिटायरमेंट के वक़्त राधा रमन की ग्रेच्यूटी साढ़े तीन लाख रुपये बनीं। लेकिन मिले सिर्फ़ एक लाख रुपये ही।

इसी तरह अर्ज़ित अवकाश का एक लाख, 1996 से 2003 के बीच का वेतन का एरियर क़रीब दस लाख, कर्मचारी बीमा योजना का क़रीब एक लाख और पेंशन का बकाया क़रीब पौने पांच लाख रुपये फ़ाइलों में ही फंसा पड़ा है। इसके भुगतान के लिए राधा रमन ने बीते दस साल में यूनिवर्सिटी के भ्रष्ट बाबुओं से बेशुमार गुहारें लगायीं, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। 18 साल से राधा रमन को मुश्किलों ने घेर रखा है। 1996 में विश्वविद्यालय की कंगाली की वज़ह से उनका भी वेतन बन्द हो गया। राहत पैकेज़ के रूप में जो रकम मिली, उससे किसी तरह घर में चूल्हा जलता रहा। बिगड़ी माली हालत की वज़ह से बड़े बेटे बैद्यनाथ चौधरी की पढ़ाई-लिखाई चौपट हो गयी। छोटा बेटा बासुकीनाथ बड़ी मुश्किलों के साथ दिल्ली में बीसीए कर रहा है। जैसे-तैसे पांच साल पहले बड़ी बेटी की शादी की। लेकिन अब छोटी बेटी माला चौधरी की शादी की चिन्ता उन्हें खाये जा रही है। अब सत्तर पार कर चुके राधा रमन पर मधुमेह समेत बुढ़ापे की बीमारियों का काला साया है। दवाईयों का ख़र्चा भी बूते से बाहर हो चुका है। परिवार की सारी उम्मीदें उस 20 लाख रुपये के बकाये पर टिकी हैं, जिस पर दस साल से बीएनएम यूनिवर्सिटी कुंडली मारकर बैठी है। अपने इसी हक़ को लेकर हर तरफ से मायूस होने के बाद मई में राधा रमन ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी।

अररिया के राधा रमन चौधरी की तक़लीफ़ की तह में जाकर हमने पाया कि बीएनएम यूनिवर्सिटी का हाल ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ वाला है। इसीलिए उनके बक़ाये की फ़ाइल को अंजाम तक पहुंचाने में हमें भी विश्वविद्यालय के भ्रष्ट सिस्टम और आला अफ़सरों से सात महीने तक जूझना पड़ा। अब कुलपति ने राधा रमन की फ़ाइल पर पेमेंट का ऑर्डर कर दिया है। जल्द ही राधा रमन को उनके बीस लाख रुपये मिल जाएंगे। राधा रमन चौधरी के हक़ को लेकर मई में हमने विश्वविद्यालय के फाइनेंस ऑफ़िसर आरएन सिन्हा को झकझोरा। उसने डीलिंग असिस्टेंट फुलेश्वर राम को नये सिरे से अर्ज़ी देने को कहा। हक़ की मुहिम आगे बढ़ी तो पता चला कि फुलेश्वर राम रिश्वत के ब़गैर कोई फ़ाइल आगे नहीं बढ़ाता। तब हमने रजिस्ट्रार विश्वनाथ विवेक का रुख किया। महीने भर की टालमटोल के बाद विश्वनाथ ने हफ़्ते भर में राधा रमन की फ़ाइल को तैयार करके कुलपति के पास भेजने का वादा किया। फ़ाइल आगे बढ़ी तो ऑडिटर ने आपत्तियां जड़ दीं, जिसे दूर करवाने के लिए महीने भर तक हमें रजिस्ट्रार, फाइनेंस ऑफिसर और कुलपति को झकझोरना पड़ा। आखिरकार हक़ की मुहिम की वज़ह से नवम्बर में दस साल से अटकी फ़ाइल कुलपति के पास पहुंची। ऐसी शर्मनाक देरी की जो वज़ह कुलपति ने बतायी वो तो और शर्मसार करने वाली है। कुलपति की ऐसी बेबसी, खुद उन्हें ही तमाशा बना रही है।

दरअसल, जन्म से लेकर अभी तक बीएनएम यूनिवर्सिटी में यूजीसी और बिहार सरकार के अनुदान की बेहिसाब लूटपाट हुई है। इसी वज़ह से पटना हाई कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के अफ़सरों से वित्तीय अधिकार बदल दिये हैं। वहां हरेक वित्तीय निर्णय अब कुलपति, वित्त अधिकारी और रजिस्ट्रार को सामूहिक रूप से लेना होगा। लिहाज़ा, उम्मीद है कि जल्द ही राधा रमन को ना सिर्फ़ उनका बीस लाख रुपये का बक़ाया मिल जाएगा, बल्कि उनकी पेंशन भी बढ़कर 37 हज़ार रुपये हो जाएगी। मधेपुरा की भूपेन्द्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी में पसरी अंधेरगर्दी से पार पाकर राधा रमन चौधरी का हक़ तो मुक़ाम तक पहुंच गया है। लेकिन बीते दस साल में उन्होंने जो आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानी उठायी, उसका भरपायी क्या कभी हो पाएगी? ये सवाल तो अब क़ायम ही है।


70 साल के बुज़ुर्ग की बढ़ी पेंशन, 1.13 लाख रुपये का एरियर मिला

ग़ाज़ियाबाद : ग़ाज़ियाबाद के यशपाल गुप्ता (70) को मैट्रिक पास करने के बाद 1962 में भारतीय वायु सेना में एयरमैन की नौकरी मिली। 15 साल की नौकरी करके 1977 में वो कोरपोरल रैंक से रिटायर हो गये। लेकिन 2009 के बाद से यशपाल की पेंशन रिवाइज नहीं हुई। सितम्बर 2012 में केन्द्र सरकार ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ की नीति को लागू किया। लेकिन इन दोनों से भी यशपाल की पेंशन नहीं बढ़ी। उन्होंने कई बार एसबीआई की सेंट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेंटर में शिकायत भी की। लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। बैंक अधिकारी उन्हें बस बरगलाते ही रहे। यशपाल अपनी पत्नी बिन्द्रा के साथ ग़ाज़ियाबाद में रहते हैं। उनका एक बेटा रीतेश आईटीआई पास है और चंडीगढ़ में रहता है, जबकि बेटी सारिका पूणे में रहती है। बुढ़ापे की बीमारियों से जूझ रहे इन बुज़ुर्गों का पेंशन ही सबसे बड़ा सहारा है। इसीलिए भारी मायूसी के बीच दिसम्बर में उन्होंने ज़ी मीडिया से मदद मांगी। यशपाल गुप्ता की तकलीफ़ को लेकर हमने सबसे पहले एसबीआई के मॉडल टाऊन, ग़ाज़ियाबाद शाखा के मैनेज़र अनिल कुमार कटारिया को घेरा तो उसने यशपाल को नये सिरे से अर्ज़ी देने को कहा। इसी बीच हमने एसबीआई बैंक के आला अफ़सरों से चिट्ठी और ईमेल के ज़रिये जवाब-तलब किया। लेकिन बैंक ने अंधेरगर्दी दिखाते हुए पेंशन के रिवीज़न में देरी और लापरवाही का ठीकरा पीड़ित पर ही फोड़ दिया। हमें लिखित में जवाब में दिया गया। यशपाल गुप्ता की क्वालिफाइंग सर्विस का सर्टिफिकेट बैंक या सीपीपीसी, नयी दिल्ली के पास नहीं है। इस सर्टिफिकेट के बिना बैंक पेंशन रिवाइज नहीं कर सकती। लिहाज़ा, अगर उनके पास ये दस्तावेज है तो वो उसे ज़रूरी कार्रवाई के लिए भेज सकते हैं। दिसम्बर में ही यशपाल ने बैंक को सर्विस डिस्चार्ज सर्टिफिकेट मुहैया करवा दिया और जनवरी से उनकी पेंशन 6675 से बढ़कर 9797 रुपये हो गयी। उन्हें पांच साल की बकाया पेंशन का एक लाख 13 हज़ार रुपया भी मिल गया। इसी से बैंक की बदनीयती भी साफ़ भी गयी, क्योंकि पांच साल के दौरान उसने पहले कभी ये सर्टिफिकेट नहीं मांगा था।


तीन साल से पेडिंग पैन कार्ड हफ़्ते भर में मिला

ग़ाज़ियाबाद : ग़ाज़ियाबाद की सौमी मंडल ने नवम्बर 2011 में झंडेवालान, दिल्ली की फर्म अलंकित एसाइमेंट लिमिटेड के मार्फ़त पैन कार्ड के लिए अप्लाई किया। हफ़्ते भर में पैन कार्ड डाक से घर पहुंचा। लेकिन घर में ताला बन्द होने की वजह से वापस लौट गया। साल भर तक सौमी ने जब पैन कार्ड के लिए हाथ-पांव मारा तो डाक विभाग ने हाथ खड़े कर दिए। तब अलंकित एसाइमेंट लिमिटेड ने सौमी को दोबारा अर्ज़ी ली, लेकिन फिर साल भर तक पैन कार्ड नहीं मिला तो हारकर सौमी ने अक्टूबर ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने अलंकित एसाइमेंट को घेरा तो तीन हफ़्ते में सौमी को उसका पैन कार्ड मिल गया।
 

पूर्व अधिकारी को 10 लाख 33 हज़ार रुपये का भुगतान

भोपाल : भोपाल के सोमनाथ रॉय ने डेढ़ साल पहले भारत संचार निगम, इटानगर के एसडीई यानी सीनियर डिवीजनल इंज़ीनियर के पद से वीआरएस ले लिया। तभी से बीएसएनएल, शिलांग के अधिकारी पेंशन और जीपीएफ की रकम के लिए सोमनाथ को दौड़ाने लगे। साल भर की दौड़-भाग के बाद भी जब बात नहीं बनी तो जुलाई में सोमनाथ ने ज़ी हेल्पलाइन से मदद मांगी। हमने शिलांग में बैठे बीएसएनएल के आला अफ़सरों एस एच सोहिल्या और जी के चिन को झकझोरा तो सोमनाथ की फ़ाइल में हरकत हुई। फिर अक्टूबर में सोमनाथ को 10 लाख 33 हज़ार रुपये का भुगतान हो गया।

First Published: Wednesday, February 19, 2014, 18:56

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