Last Updated: Thursday, October 17, 2013, 12:49
संजीव कुमार दुबेअकल्पनीय! अविश्वशनीय! यकीन नहीं होता! ऐसे शब्द यकीनन आपके जेहन में आए होंगे जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया को दूसरे वनडे में 9 विकेट से रौंदा। ऐसा नहीं है कि भारत इसके पहले कोई मैच नहीं जीता। लेकिन इस जीत के बड़े मायने हैं। यह जीत बताती है कि टीम इंडिया नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाती है। वह घबराती नहीं। बड़े लक्ष्यों को भी आसानी से बिना किसी दबाव के हासिल करने में यकीन रखती है।
जयपुर वनडे भारत की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जीत है। क्योंकि इतना बड़ा लक्ष्य का पीछा कर भारत ने पहली बार इतनी बड़ी जीत हासिल की है। ऑस्ट्रेलियाई एवरेस्ट को भारत ने हवा में उड़ाया और मैच को लगभग सात ओवर पहले ही खत्म कर जीत हासिल कर ली।
यूं तो भारत ने राजकोट में (वर्ष 2009) श्रीलंका के खिलाफ 414 रन बनाये थे और यह मैच भी उसने जीता था। हालांकि यह बात अलग है कि श्रीलंका 411 रन बनाकर उसे हासिल करने के करीब पहुंच गया था। इसके बाद भारत ने 18 मार्च 2012 को मीरपुर में पाकिस्तान के खिलाफ 329 रनों के लक्ष्य को दो विकेट पर 330 रन बनाकर सफलतापूर्वक हासिल किया था। यानी जीत के ये दोनों अनोखे और हौसलों से भरपूर दास्तान बताते हैं कि भारतीय क्रिकेट टीम में जीत और जज्बा बरकरार है।
पुणे वनडे में भी ऑस्ट्रेलिया ने 300 से ज्यादा रन बनाए थे और उस टारगेट का भारत पीछा नहीं कर पाया था और मैच हार गया था। इस बार 360 रनों की चुनौती के बीच 99 फीसदी क्रिकेट प्रेमियों और टीम इंडिया के फैंस ने यह सोचा होगा कि लो यह मैच भी हम हार गए। सीरीज तो हाथ से गई। लेकिन वो शायद भूल गए कि क्रिकेट अनिश्चितताओं से भरा गेम हैं जहां सबकुछ और वह सब होता है जो आपकी कल्पना से परे होता है।
इस जीत में जो सबसे अहम बात देखने को मिली कि भारत ने यह मैच 9 विकेट से जीता यानी सिर्फ शिखर धवन ही आउट हुए। युवराज सिंह, धोनी, रैना, जडेजा सरीखे बल्लेबाजों को कुछ कमाल कर दिखाने का मौका मिला ही नहीं। और भारत ने 360 रन का टारगेट बगैर उनके मैदान पर उतरे ही हासिल कर लिया।
भारत की इस जीत में टीम इंडिया को `त्रिदेव` मिले। शिखर धवन, रोहित शर्मा और विराट कोहली। आम तौर पर ऐसे पहाड़ जैसे स्कोर में भारतीय क्रिकेट टीम तो क्या लगभग हर टीम लक्ष्य पीछा करने में हड़बड़ा जाती है और विकेट धड़ाधड़ गिरने लगते है जो टीम की हार की बुनियाद रखते हैं।
टीम इंडिया के `त्रिदेव` में इस बार कुछ खास नजर आया जो जीत के जज्बे से सराबोर था। शिखर और रोहित ने जब पारी की शुरुआत की तो देखते-देखते रनरेट 8 के पार चला गया । शिखर सेंचुरी से भले चूक गए लेकिन कम गेंद और कम वक्त में उन्होंने रोहित के साथ मिलकर ऐसी शानदार बुनियाद रखी जिससे जीत की आधारशिला मजबूत होती चली गई। पहले अगर ये रन नहीं बने होते तो बाद के खिलाड़ियों के लिए बनाना असंभव से कम नहीं था। शिखर गए तो टीम इंडिया के फैंस की सांसें भी रुक गई।
लेकिन कोहली इस बार विराट खेल का स्वरूप लेकर अवतरित हुए थे। उन्होंने मैदान पर चल रहे रनों की आंधी को और गति दी। चौकों-छक्कों की बरसात कर ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों की बखिया उधेड़ कर रख दी। रन और गेंदों का फासला इतना कम हो गया जीत पक्की नजर आने लगी।
भारतीय क्रिकेट टीम के स्वरूपों में बदलाव हमेशा होता रहा है। लेकिन धोनी की इस टीम की बड़ी खास बात है कि यह बड़े मौकों पर अब घुटने टेकना नहीं जानती बल्कि मुकाबला करती है, लड़ना जानती है जिसमें जज्बा आखिरकार जीत में तब्दील होता हुआ नजर आता है।
खेल में अगर देखा जाए तो सिक्के की तरह दो ही पहलू होते है। या तो हार या फिर जीत। लेकिन खिलाड़ी वही है जो हार की परवाह किए बगैर जीत के जज्बे के साथ खेलता हो। टीम वही है जो बिना किसी तनाव या घबराबट के टारगेट पर नजर रखकर खेले। भारतीय क्रिकेट टीम और उसके फैंस के लिए यकीनन यह सुखद पल है। यह जीत यह संदेश देती है कि टीम इंडिया इतने बड़े लक्ष्य का पीछा बगैर दबाव के आसानी से कर सकती है।
गुलाबी नगरी जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में हासिल हुई टीम इंडिया की यह जीत लंबे समय तक क्रिकेट फैंस को खुशियों से लबरेज करती रहेगी। यह जीत टीम इंडिया के लिए आगे और बेहतर कुछ नया और अकल्पनीय, अविश्वशनीय कर गुजरने के लिए उन्हें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।
First Published: Wednesday, October 16, 2013, 23:26