Last Updated: Friday, December 13, 2013, 14:25
सुधीर चौधरीदिल्ली के चुनावी नतीजों ने राजनीति पंडितों के माथे पर बल डाल दिए हैं। आखिर, सिर्फ एक साल पुरानी आम आदमी पार्टी ने देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी का दिल्ली में डिब्बा गुल कर दिया है। और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दिल्ली फतेह करने के बीजेपी के सपने पर भी पानी फेर दिया। आप के दिल्ली में उदय के क्या मायने हैं? पुराने धाकड़ नेताओं के इस नयी राजनीतिक ताकत को न आंक पाने की ग़लती में क्या नयी राजनीति के उभार के संकेत हैं?
यह सवाल इसलिए कि चुनाव से पहले मैं दिल्ली की उस वक्त की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और बीजेपी के सीएम पद के दावेदार डॉक्टर हर्षवर्धन से मिला था। इंटरव्यू के दौरान दोनों से लंबी बातें हुईं। इस बातचीत में मेरे लिए सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि दोनों ही नेता आम आदमी पार्टी को किसी भी मुकाबले में नहीं मान रहे थे। मुझे याद है कि आप के बारे में पूछे सवाल के जवाब में शीला दीक्षित ने कहा था- “इन लोगों के बारे में क्या बात करनी। इन्हें क्यो बेवजह पब्लिसिटी देनी। ये लोग राजनीति में बारे में जानते ही क्या हैं।“

शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थी। उनके ऊपर सत्ता का नशा हावी हो सकता है। और बहुत मुमकिन है कि इस वजह से वह जनता की नब़्ज भाँपने में कामयाब नहीं हो पायीं। लेकिन डॉक्टर हर्षवर्धन एंड टीम? वो क्यो दिल्ली की राजनीति में उभार ले रही इस ताकत को भांपने में नाकाम रहे? मुझे अच्छी तरह याद है कि हर्षवर्धन ने आप से जुड़े एक सवाल के जवाब में यहां तक कह दिया था- “मैं उनका नाम भी नहीं लेना चाहता। उन्होंने अभी किया ही क्या है।“
दिलचस्प है कि करीब ढाई दशक राजनीति में गुजारने वाले दिल्ली के दो धाकड़ नेता आम आदमी पार्टी के बारे में एक स्वर में बोल रहे थे। लेकिन, चुनावी नतीजों ने बोलना शुरु किया तो दोनों नेताओं के होश फाख्ता हो गए। दोनों के पास बोलने के लिए कुछ नहीं रह गया।
लेकिन, आप की जीत और इस ताकत को भाँपने में कांग्रेस-बीजेपी की नाकामी के मायने क्या हैं? मुझे लगता है कि आप ने जिस आम आदमी की राजनीति को बीते एक साल में जीया-उसने सिर्फ नेतागिरी झाड़ने वाले नेताओं से ऊब चुकी दिल्ली की जनता के बीच उसे गंभीर विकल्प बना दिया। कांग्रेस ने बातें की-बीजेपी ने मुद्दों पर विरोध जताया और राजनीति की लेकिन अरविंद केजरीवाल एंड टीम एक्शन में दिखायी दी। दुनिया भर में नया ट्रेंड चल रहा है मेक योर ऑन डिश और इसी तर्ज पर आप ने कई अपरिचित लोगों को झटके में राजनीति का चेहरा बना दिया। मसलन-धर्मेन्द्र कोली, जिस पर महिला से छेड़छाड़ का आरोप लगा है, वो बेरोजगार था। उसके लिए पाँच-दस हजार रुपए की कमाई जीवन का सबसे बड़ा सवाल था। लेकिन, आप ने उसे राजनीति में लाया, उस पर विश्वास जताया और डोर टू डोर कैंपेनिंग के जरिए विधायक बना दिया।
आप ने ईमानदारी की राजनीति को मुद्दा बनाते हुए बिलकुल अपरिचित लोगों को राजनीति में लाने और बिजली के खंभों पर चढ़कर कनेक्शन जोड़ने तक की नयी राजनीति की है। फिर, सोशल मीडिया ने आप के तेवरों को नयी धार दी। वोटिंग के वक्त तक ट्विटर पर अरविंद केजरीवाल के करीब 8 लाख फॉलोवर्स थे। हर्षवर्धन के महज 15 हजार और शीला दीक्षित ने तो ट्विटर को गंभीरता से लिया ही नहीं और उन्होंने इस मंच का इस्तेमाल ही नहीं किया।
दिल्ली में देश के सबसे ज्यादा सोशल मीडिया यूजर्स हैं-करीब 62 लाख। इनमें करीब 70 फीसदी 17 से 25 वर्ष की उम्र के हैं यानी बिलकुल नौजवान और शायद इनमें से कइयों ने जिंदगी में पहली बार वोट डाला। सोशल मीडिया पर आप की लहर बह रही थी। बीते एक महीने से ऐसा कोई दिन नहीं था, जब आप पार्टी से जुड़ा कोई की-वर्ड ट्रेंड नहीं किया हो। और सोशल मीडिया के जरिए आप लगातार यह संदेश देने में कामयाब हुई कि वो ईमानदारी पार्टी है, जिसने किसी भ्रष्टाचारी-बलात्कारी और हत्यारे को टिकट नहीं दी। युवाओं के मन में आप की ‘ईमानदारी’ का टैग लग गया, जिसका फायदा उन्हें मिला।
आप ने शुरुआत अच्छी की है,लेकिन सवाल भविष्य का है। जनांदोलनों से कई नेता निकले हैं। मुलायम सिंह लोहिया के चेले हैं तो नीतीश-लालू जयप्रकाश आंदोलन की उपज। लेकिन, आज उनकी नेतागिरी में कहीं से भी आंदोलन का तेवर और जेपी-लोहिया की छवि नहीं दिखती। तो क्या अरविंद केजरीवाल ऐसे तो नहीं हो जाएंगे? यही बड़ा सवाल है। भ्रष्ट होने की पहली शर्त है भ्रष्टाचार का मौका मिलना। अरविंद केजरीवाल एंड टीम अभी सत्ता में नहीं आयी है और सवाल यही है कि क्या उनकी पूरी पार्टी खुद को उस अग्निपरीक्षा में साबित कर पाएगी, जब एक के बाद एक भ्रष्टाचार के कई मौके सामने होंगे।
बहरहाल, आप के दिल्ली में उदय ने विकल्प की राजनीति के देश में उभार लेने के संकेत दे दिए हैं। यह सही है कि आप की कामयाबी हर राज्य में नहीं दोहरायी जा सकती। लेकिन, बड़े शहरों में आप और आप जैसे विकल्प पारंपरिक राजनीति और राजनेताओं से अविश्वास की वजह से खाली हो रहे शून्य को भरने के लिए आगे आ सकते हैं। भारतीय राजनीति में यह नयी करवट का वक्त है।
(लेखक ज़ी न्यूज के एडिटर हैं और आप उन्हें ट्विटर पर फॉलो कर सकते हैं-
First Published: Friday, December 13, 2013, 14:20