Last Updated: Wednesday, May 28, 2014, 10:51
वासिंद्र मिश्रसंपादक, ज़ी रीजनल चैनल्सबतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला दिन बेहद खास माना जा सकता है। मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में सार्क देशों के प्रतिनिधियों को न्योता देकर पड़ोसी मुल्कों से रिश्तों को लेकर जो गंभीरता दिखाई थी उस पर आज वो एक कदम आगे बढ़ते दिखे । उन्होंने ना सिर्फ मेहमान बनकर आए प्रतिनिधियों से मुलाकात की बल्कि संबंधित राष्ट्राध्यक्षों से उन मसलों पर भी बात की जो भारत के पड़ोसी मुल्कों से रिश्ते को लेकर अहम हैं।
नरेंद्र मोदी ने अपने इस कदम को लेकर संकेत तभी दे दिए थे जब उन्होंने शपथ ग्रहण में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को न्योता दिया था । राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात के दौरान मोदी ने एक एक कर उन सभी मसलों को छुआ जो पड़ोसी मुल्कों के साथ रिश्तों में दुखती रग बना हुआ है । मोदी ने इस बात के भी संकेत दिए कि वो पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते रखना चाहते हैं लेकिन राष्ट्र हित उनके लिए सर्वोपरि है ।

श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे से मुलाकात के दौरान नरेंद्र मोदी ने तमिलों का मसला उठाया। मोदी ने राजपक्षे से श्रीलंका में तमिलों के पुनर्वास की प्रक्रिया को तेज करने, उन्हें समानता, न्याय, सम्मान की जिंदगी देने और शांति को बढ़ावा देने की बात की तो वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ से आतंकवाद के खिलाफ कड़े रुख की मांग की तो 26/11 के जांच की प्रक्रिया तेज़ करने और दोषियों को कड़ी सज़ा दिए जाने की भी मांग की ।
इसके बाद नवाज़ शरीफ का रवैया भी काबिले तारीफ है । उन्होंने जिस तरह से मीडिया को संबोधित करते वक्त एक साथ दोनों मुल्कों की अवाम की बात की, दोनों मुल्कों के aspiration और approach की बात की उससे एक सकारात्मक रवैया झलकता है ।
ऐसे में ये कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी का पहला diplomatic exposure कामयाब रहा है । diplomacy की सबसे बड़ी खासियत यही है कि वो सामने वाले से अपनी शर्तों और अपने एजेंडे के मुताबिक बात करे, अपने intention और अपने interest को ऊपर रखकर बात करे और मौजूदा वक्त में दोनों देशों के हालात को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि इस मामले में नरेंद्र मोदी और नवाज़ शरीफ दोनों ही कामयाब हुए हैं। कहा जाता है well beginning is half done तो डिप्लोमैटिक रिश्तों को लेकर मोदी ने पहले ही दिन आधी कामयाबी हासिल कर ली है ।
नवाज़ शरीफ ने अपनी मीडिया ब्रीफिंग में लाहौर डिक्लेरेशन का जिक्र भी किया । Lahore Declaration 1999 में दोनों मुल्कों के बीच हुए द्विपक्षीय समझौते को कहा जाता है जिसमें परस्पर सहयोग की बात की गई थी जिसमें परमाणु हथियारों के अनाधिकृत और आकस्मिक इस्तेमाल पर रोक, कश्मीर जैसे पारंपरिक और गैर पारंपरिक मसलों का हल करने। 1972 के शिमला समझौते को प्रतिबद्धता से लागू करने, आतंकवाद का मुकाबला करने, मानवाधिकार की रक्षा करने और एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करने जैसे मसलों पर जोर दिया गया था । दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली को लेकर ये एक सकारात्मक कदम था लेकिन करगिल युद्ध हो जाने के बाद सद्भाव की ये कोशिश फेल हो गई।
हालांकि अब हालात काफी बदल चुके हैं । दोनों देशों की अवाम की लगभग एक जैसी समस्या है । सरहद पार भी लोग आतंकवाद, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं । भारत के साथ साथ पाकिस्तान में भी लोगों का अपनी सरकार और पॉलिटिकल सिस्टम पर भरोसे में कमी आई है । दोनों देशों की अवाम ऐसे मसायल का हल चाहती है । ऐसे में दोनों ही मुल्कों के हुक्मरानों के लिए ये ज़रूरी हो गया है कि वो सकारात्मक मुद्दों को लेकर आगे बढ़ें । peace, prosperity, co-operation और hope की बात करें ताकि अपनी अवाम का भरोसा हासिल कर सकें ।
अपनी अवाम के बदले मूड को भांपते हुए पाकिस्तान की तरफ से भी मोदी की इस पहल को सकारात्मक तरीके से लिया गया है । दोनों मुल्कों के बीच अविश्वास खत्म करने को लेकर एक आमराय बनी है । एक बार फिर सचिव स्तरीय वार्ता शुरु होने जा रही है और इसका फायदा दोनों मुल्कों की अवाम को मिल सकता है।
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First Published: Wednesday, May 28, 2014, 08:25