Last Updated: Tuesday, May 13, 2014, 17:11
बिमल कुमार 16वीं लोकसभा चुनाव के लिए बीते सोमवार को आखिरी चरण मतदान का संपन्न होने के बाद अब 16 मई के मतगणना का इंतजार है। हालांकि इस इंतजार में अब अधिक उत्सुकता नहीं बची है चूंकि मतदान खत्म होते ही विभिन्न सर्वेक्षणों, एक्जिट पोलों में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए को भारी बहुमत का रुझान दिखाया गया है। यदि इस पर यकीन करें तो बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र मोदी का अब देश का अगला प्रधानमंत्री बनना तय है। मोदी की जीत इस बार कई मायनों में अहम होगी और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के कई रिकार्ड स्वत: ध्वस्त हो जाएंगे। बहरहाल, चुनाव नतीजे कुछ घंटों के बाद सामने आएंगे और सारे समीकरण इसके बाद तय होंगे पर असल मायने में फिलहाल नरेंद्र मोदी ही `मैन ऑफ द मोमेंट्स` हैं।
यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देश भर में `मोदी लहर` के चलते इस बार रिकार्ड मतदान दर्ज किया गया। दरअसल मोदी का नाम साल 2014 में एक सियासी तूफान साबित हुआ। एक चायवाले से लेकर देश के भावी प्रधानमंत्री तक के इस सफर में वे वाकई मुकद्दर के सिकंदर साबित हुए हैं। मतदान से लेकर मतगणना तक देश भर में मोदी ही चर्चा के केंद्र में रहे और यदि परिणाम इन सर्वे के आधार पर आता है तो आगे भी मोदी ही कई सालों तक चर्चा के केंद्र में बने रहेंगे।
बीते पलों पर गौर करें तो लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते ही नरेंद्र मोदी के नाम की चर्चा इस कदर और इतनी तेज से फैलने लगी कि विरोधियों के हाथ पांव उसी समय से फूलने लगे। मोदी के पीएम उम्मीदवारी की घोषणा, प्रचार समिति का अध्यक्ष बनना और फिर इसके बाद उसके बाद के चुनावी सफरनामे में ऐसे कई अनूठे वाकये पेश आए। समय दर समय राजनीतिक क्षितिज पर मोदी उभरते ही चले गए और उसके बाद देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी `नमो नमो` गूंजने लगा।
देश में चुनाव प्रचार के दौरान सभी राजनीतिक दलों के निशाने पर मोदी ही थे। न जानें किन किन और कितने आपत्तिजनक और अमर्यादित विशेषणों से मोदी को नवाजा गया। मसलन, मोदी जहर, मोदी राक्षस, मोदी गुंडा, मौत का सौदागर, कसाई, गदहा, दंगा बाबू, दंगाबाज, हत्यारा, कुत्ते का पिल्ला आदि आदि। मगर मोदी विरोधी दलों के इन हमलों से कतई विचलित होते न दिखे और न ही इन प्रहारों से उनका आत्मविश्वास डगमगाया। इसके उलट विरोधी दलों की खींझ बढ़ती गई और मोदी अपने `विजयी पथ` पर `शेर` की मानिंद आगे बढ़ते गए। चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न सूबों के घटनाक्रमों पर गौर करें तो यह स्पष्ट है कि विरोधी दलों को मोदी की बढ़ती लोकप्रियता और जनता के बीच पैठ का अहसास हो चला था। संभवत: इसी को भांपकर विरोधियों ने मोदी पर खूब हमले किए। यह मोदी ही थे जो सभी वारों और प्रहारों को निष्फल करते चले गए। अमेठी और रायबरेली के रण को याद करें तो कांग्रेस की ओर से तरकश के सारे तीर खाली हो जाने के बाद प्रियंका गांधी को मोर्चा संभालना पड़ा। लेकिन उस समय तक काफी देर हो चुकी थी और जन जन के बीच छाए मोदी इस सबसे बेपरवाह रहे। विरोधियों की धार स्वत: कुंद होती चली गई।
चुनाव प्रचार के दौरान मोदी को मिला समर्थन कोई एक दिन, एक माह या एक साल का परिणाम नहीं है। गुजरात में बीते कुछ सालों में विकास की बयार बहाने वाले मोदी ने देश की जनता के बीच आशा की ऐसी किरण जगाई कि लोग खुद ब खुद उनके नाम के साथ जुड़ाव महसूस करने लगे। हालांकि इसके पीछे कांग्रेस की भारी विफलता इसलिए थी, क्योंकि इनके शासन में देश कमरतोड़ महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटाला चरम पर छूने लगा। आम आदमी के सामने जिंदगी के लाले पड़ने लगे। कांग्रेस के खिलाफ माहौल को मोदी ने बखूबी अपने पक्ष में मोड़ा। विकास, बेरोजगारी आदि बातों को तवज्जो देते हुए मोदी ने देशवासियों का दिल जीतना शुरू कर दिया। रोजगार, महंगाई से निजात, सुशासन आदि वायदों से जनता मोदी के नाम के साथ जुड़ने लगी।

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इसका परिणाम यह हुआ कि मोदी ने एक तरह से तीन महीने में पूरा हिंदुस्तान जीत लिया। `मोदी लहर` के बीच बीजेपी नेता कभी भी जनता को सब्जबाग दिखाते नजर नहीं आए। इसे हम यूं समझ सकते हैं कि एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा था कि हम कोई 100 दिन के एजेंडे पर नहीं चलेंगे बल्कि पूरे पांच साल तक जनता के साथ किए वायदों को पूरा करेंगे। मोदी ने लोगों का भरोसा यह कहकर जीता कि जो भी वायदे उन्होंने किए, उसे अवश्य पूरा करेंगे। जनता भी मानो मोदी के नाम पर सर्वस्व न्यौछावर कर बैठी। देश के मिजाज और मूड को मोदी ने बखूबी समझा और किसी गैरजरूरी चीज को न थोपते हुए अलग-अगल जगहों पर स्थानीय मुद्दों के साथ जनता का विश्वास जीता।
पांच सप्ताह से भी ज्यादा अवधि तक चली चुनावी प्रक्रिया में एक दशक से जारी कांग्रेस के शासन का अंत भले ही लगभग तय है, लेकिन कांग्रेस ने अपने शासनकाल में नरेंद्र मोदी को कई मामलों में अपरोक्ष तौर पर घेरने का हर यत्न किया। चाहे वो गुजरात दंगा हो, महिला जासूसी कांड हो या फर्जी मुठभेड़ का मामला हो। पर मोदी इन सब झंझावातों से निकलते हुए देश के राजनीतिक फलक पर ऐसे उभरे कि उनके सामने पूरी कांग्रेस आज धाराशायी नजर आ रही है। कांग्रेस नेताओं को अब इसमें संदेह नहीं है कि कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के हाथों से सत्ता फिसल गई है और `अबकी बार मोदी सरकार` सत्ता में विराजमान होने को है।
काशी में नामांकन के दौरान और मतदान से दो दिन पहले मोदी के नाम का आलम ही कुछ अलग नजर आया। पूरे चुनाव अभियान के दौरान बीजेपी के `हर हर मोदी, घर घर मोदी` और `अबकी बार, मोदी सरकार` के नारे ही गूंजते रहे। मोदी इस नगरी में जितने ही समय के लिए ठहरे, उतना वक्त `मोदीमय` हो गया। इस पवित्र नगरी में मोदी के प्रति चाहत ने ऐसा समां बांधा कि बीजेपी पूर्वांचल के क्षेत्रों में अपनी रणनीति में भी कामयाब नजर आई। यह मोदी का ही करिश्मा था कि बीजेपी ने हर कदम पर सटीक और सफल कदम उठाए। मोदी बनाम सभी राजनीतिक दल में परिवर्तित इस चुनाव में `नमो` के व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, दृढ़संकल्प आदि को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मोदी के मैराथन चुनावी अभियान पर गौर करें तो मोदी ने अपने धुंआधार प्रचार अभियान से लोकसभा चुनाव प्रचार का रिकार्ड ब्रेक कर दिया। मोदी ने इस दौरान देश भर में तीन लाख किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर एक तरह का रिकार्ड बना दिया। प्रचार के परंपरागत और नए तौर तरीकों के साथ कुल 5827 कार्यक्रमों में भाग लिया। संभवत: यह भारत के चुनावी इतिहास का सबसे बड़ा जनसंपर्क अभियान बन गया। मोदी ने बीते साल सितंबर महीने से अब तक 25 राज्यों में 437 जनसभाओं को संबोधित किया और 1350 3डी रैलियों में शिरकत की। 5827 सार्वजनिक कार्यक्रमों के जरिये मोदी ने करीब 10 करोड़ लोगों तक अपनी पहुंच बनाई। मोदी का यह प्रचार अभियान वाकई ‘ऐतिहासिक’ और ‘अभूतपूर्व’ है। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मोदी की ऊर्जा, क्षमता और जज्बा अतुलनीय है, जो विरोधियों पर खासा भारी पड़ा। इन सभी रैलियों, चुनावी जनसभाओं और अन्य कार्यक्रमों के जरिये मोदी ने देशवासियों के सामने भारतीय जनता पार्टी को एक सशक्त विकल्प दिया।
मोदी ने प्रचार अभियान के बीच में एक बार यह टिप्पणी की थी कि ‘मैं दौड़ रहा हूं, लोगों का प्यार मुझे दौड़ा रहा है’। भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार है कि एक नेता ने इतनी अधिक संख्या में लोगों को संबोधित किया और करोड़ों लोगों के दिलों तक दस्तक दी। वहीं, भारत के लोकत्रांतिक इतिहास में सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ इस तरह का जोश पहले कभी नहीं देखा गया। यह मोदी लहर का ही परिणाम है कि इस बार भाजपा को यादगार जीत मिलनी तय है और कांग्रेस अपने सबसे कम सीटों पर सिमटने की ओर अग्रसर है। हालांकि भारतीय राजनीति कई तरह अनिश्चितताओं से भरी है, लेकिन फिलहाल `मोदीमय` माहौल है और आगे भी यह माहौल बने रहने की पूरी उम्मीद है।
First Published: Tuesday, May 13, 2014, 17:10