Last Updated: Thursday, October 3, 2013, 18:42
वासिंद्र मिश्र संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स सत्ता और सिद्धांत में अगर किसी एक को चुनना हो तो हमारे देश के ज्यादातर नेता सत्ता को ही तरजीह देंगे। कट्टर हिंदुत्व की तरंगों पर चढ़कर भारतीय जनता पार्टी में शीर्ष पर पहुंचे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का दिल्ली में दिया गया बयान उनके भावी रणनीति और राजनैतिक दर्शन का संकेत है। नरेंद्र मोदी ने अपने राजनैतिक और सामाजिक जीवन की शुरुआत आरएसएस के कार्यकर्ता के रूप में की, और धीरे-धीरे कड़ी मेहनत और सूझ-बूझ के चलते आरएसएस सहित बीजेपी के बड़े नेताओं के चहेते बन गए।
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री के रूप में किए गए कामों को लेकर भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में माहौल बनाने में जुटी है और अब उनका प्रोजेक्शन एक कुशल प्रशासक और विकास पुरुष के रुप मे किया जा रहा है। शायद यही वजह है कि 2 अक्टूबर को दिल्ली आए नरेंद्र मोदी जब छात्रों से मुखातिब थे तो उन्होंने देवालय से पहले शौचालय बनाने की बात कही, गरीब और जरूरतमदों को मंदिर मस्जिद की सियासत से दूर रखने और वोट बैंक के तराजू पर ना तौलने की बात कही।
साल 2008 में मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात में चलाए गए अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान भी नरेंद्र मोदी ने तमाम पूजा स्थलों को सड़कों के बीच से हटवा दिया था, इसीलिए उनके दिल्ली के बयान को बहुत आश्चर्यचकित होकर देखने की ज़रूरत नहीं है। हालांकि इस अतिक्रमण हटाओ अभियान को अशोक सिंघल से मुलाकात के बाद मोदी ने रुकवा दिया था, लेकिन अब नरेंद्र मोदी भी सत्ता की राजनीति के दौर में हैं, और सत्ता हथियाने के लिए जिस तरह के हथकंडों की जरूरत पड़ती है, वो सभी हथकंडे उनके द्वारा अपनाए जा सकते हैं। ये वही बीजेपी है, जिसने मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में आंदोलन चलाया था। 1989 में बीजेपी के चुनावी मुद्दों में मंदिर निर्माण सबसे ऊपर था, बीजेपी को उस साल 85 सीटें मिली थीं। 1990 में आडवाणी ने मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाकर रथयात्रा निकाली, जिसके जरिए बीजेपी अपना वोट बैंक बढाने में कामयाब भी हुई और 1991 के आम चुनाव में 120 सीटों पर कब्जा किया।

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हालांकि एक पुरानी कहावत है, काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती क्योंकि इसके बाद भी चुनाव हुए और राम मंदिर निर्माण का मुद्दा भी गरमाया, लेकिन बीजेपी को उम्मीदों के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली, शायद बीजेपी को भी इस बात का इल्हाम हो गया है, और यही वजह है कि मंदिर मुद्दे को बैकग्राउंड में रखकर विकास और गवर्नेंस की बातें कही जा रही हैं।
नरेंद्र मोदी से मिलता-जुलता बयान आज से कई दशक पहले बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम और कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी दिए थे, लेकिन तब भारतीय जनता पार्टी ने कांशीराम और जयराम रमेश के बयानों के खिलाफ जमकर हंगामा किया था, तब भारतीय जनता पार्टी को पूजा स्थलों के नाम पर जनसमर्थन मिलने की संभावना ज्यादा थी लेकिन अब हालात अलग हैं। अब बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को विकास के मुद्दे पर सत्ता में वापसी के ज्यादा आसार दिखाई दे रहे हैं, शायद इसीलिए वो पूजा स्थलों के बजाय विकास और कुशल प्रशासन की दुहाई देते घूम रहे हैं।
बीजेपी के रणनीतिकारों को भी शायद इस बात का अंदाजा लग गया है कि अब देश की जनता बार-बार महज जज्बाती मुद्दों पर वोट देने के मूड में नहीं है, और खासतौर से देश का नौजवान तो सिर्फ और सिर्फ रोजगार और विकास को ही तरजीह दे रहा है, ऐसी स्थिति में अगर विकास और गवर्नेंस को छोड़कर जज्बाती मुद्दों को उठाया गया तो इसका राजनैतिक फायदा सामाजिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए कांग्रेस पार्टी को मिल सकता है।
First Published: Thursday, October 3, 2013, 18:28