प्याज़, पावर और पॉलिटिक्स...

प्याज़, पावर और पॉलिटिक्स...

प्याज़, पावर और पॉलिटिक्स...वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स

आखिरकार प्याज के दाम 100 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गए लेकिन देश के जिन मंत्रियों पर इसकी कीमत को काबू में रखने की जिम्मेदारी थी वो न सिर्फ संवेदनहीनता व्यक्त कर रहे हैं बल्कि लोगों के जख्मों पर नमक छिड़कने वाले बयान भी दे रहे हैं। पहले पवार ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि प्याज के दाम क्यों बढ़ रहे हैं। फिर उन्होंने कह दिया कि उन्हें नहीं पता कि दाम घटेंगे कब। अब खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने कहा है कि हमें जितना कहना है, हम कह चुके हैं। कीमतें क्यों बढ़ रही हैं, ये पता लगाना पत्रकारों का काम है। प्याज की कीमतों ने देश की सियासत पर अपना बड़ा असर डाला है। प्याज की कीमतों की वजह से कई बार तो तख्ता पलट तक हो गया।

कांग्रेस का जो मौजूदा नेतृत्व है, उसे इतिहास से सबक लेते हुए अपने राजनीतिक विरोधियों पर आरोप लगाने से बचना चाहिए। जिस तरह से सरकार को चलाने वाले लोग गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं, उसका राजनैतिक नुकसान आने वाले चुनावों में कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ सकता है। इतिहास गवाह है कि जब कभी भी जनता को Taken For Granted लिया गया है और सरकारें जनभावना के खिलाफ जाकर काम करती रही है। तब तब सत्तारुढ़ दलों को नुकसान उठाना पड़ा है।

प्याज़, पावर और पॉलिटिक्स...

देश ने वो दैौर भी देखा है जब संपूर्ण विपक्ष एक सुर से इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में लगा था, तो उस वक्त इंदिरा गांधी ने सिर्फ एक नारा दिया था, गरीबी हटाओ और उस एक नारे ने देश के राजनैतिक समीकरण को बदल दिया था और इंदिरा गांधी को दोबारा देश की सत्ता मिल गई थी। एक और दौर आया था 1980 में जब इंदिरा ने कहा था कि जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं। और पूरे देश में हुई जनसभाओं में इंदिरा गांधी प्याज की माला पहनकर घूमी थीं। जनता पार्टी की सरकार में प्याज की बढ़ी कीमतों को इंदिरा गांधी ने चुनावी मुद्दा बनाया और इसका उन्हें फायदा भी मिला। इसी फॉर्मूले को दिल्ली में शीला दीक्षित ने भी आगे चलकर अपनाया था। जब सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं और प्याज़ की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई थी। कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और सुषमा सरकार को हार का सामना करना पड़ा।

लेकिन आज के दौर में कांग्रेस के जो सरकार चलाने वाले लोग हैं, उनको शायद इतिहास की इस कड़वी सच्चाई का अंदाज़ा नहीं है या फिर वो इस कड़वी सच्चाई को देखना नहीं चाहते, समझना नहीं चाहते और ये लोग जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं और प्रशासनिक जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं।

First Published: Sunday, October 27, 2013, 13:41

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