Last Updated: Sunday, March 30, 2014, 15:51
वासिंद्र मिश्रसंपादक, ज़ी रीजनल चैनल्सआरएसएस खुद को हमेशा ही सांस्कृतिक संगठन के तौर पर पेश करता है, लेकिन ये बात किसी से छिपी नहीं है कि ये संघ का दखल ही है जो बीजेपी आज के दौर में भी ना केवल देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है बल्कि आज सत्ता की होड़ में भी शामिल है और तमाम सर्वे की रिपोर्टों के मुताबिक आगे भी है। बीजेपी को इस स्थिति में लाने में संघ के योगदान से कभी इनकार नहीं किया जा सकता जो वक्त वक्त पर हालात के हिसाब से बीजेपी की धारा को मोड़ता आया है। ऐसे वक्त में जबकि एक बार फिर चुनावी मौसम चल पड़ा है, आरएसएस अपने उसी एजेंडे में पर काम कर रहा है हालांकि मुद्दे और तरीके बदल गए हैं।
संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के सर्वे में एक बात फिर से साफ हो गई है कि संघ एक बार फिर अपनी सियासी मुहिम में खुलकर आगे आ गया है। जिसका लक्ष्य है कि नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाया जाए। इस सर्वे के जरिए ये साबित करने की कोशिश भी की गई है। संघ के मुताबिक जिन 380 लोकसभा सीटों पर उसने सर्वे कराया है वहां 300-300 लोगों से रायशुमारी की गई है, इसका मतलब साफ है कि संघ ने अपने पूरे कॉडर को एक बार फिर सक्रिय कर दिया है ताकि मोदी की राह आसान की जा सके।
वैसे ये पहली बार नहीं है जब संघ ने सियासत में इस तरह की दखल दी हो। अतीत में ऐसे कई मौके आए हैं जब संघ लीक से हटकर राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय जाहिर करता रहा है। एक दौर में राममंदिर आंदोलन के पीछे संघ की भूमिका भी इस बात को साबित करती है कि संघ का ना केवल राजनीतिक एजेंडा है बल्कि उसे साधने के लिए वो बीजेपी को मुद्दे भी देता रहा है। ये कोई छिपा हुआ रहस्य नहीं है कि राममंदिर आंदोलन के पीछे संघ की ही ताकत थी जिसके बाद बने माहौल ने आगे चलकर बीजेपी को एनडीए के तौर पर सत्ता का स्वाद पहली बार दिया। राममंदिर आंदोलन में संघ ने अपने पूर्णकालिक स्वंयसेवकों को लगाया और इनके जरिए वीएचपी का गठन कराया। इसमें अशोक सिंघल और विष्णु हरि डालमिया मूलतः संघ के ही कॉडर थे, लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद राममंदिर आंदोलन की लहर कमजोर पड़ी तो संघ को ये अहसास होने लगा कि सिर्फ राममंदिर के सहारे सत्ता तक पहुंचना मुश्किल है।
बदली परिस्थितियों और देश के बदले मिजाज के मद्देनजर 70 फीसदी युवा शक्ति, ग्लोबलाइजेशन का बढ़ता प्रभाव, रोजी रोटी और विकास का मुद्दा, गुड गवर्नेंस और एंटी करप्शन की मुहिम, पारदर्शिता की मुहिम के प्रति देश के जनमानस के बढ़ते रुझान को देखते हुए संघ ने अपनी रणनीति बदली है, और नरेन्द्र मोदी इसी बदली रणनीति के तहत पेश किए गए हैं। मोदी की मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर जो अरबो रुपए खर्च हो रहे हैं वो सब संघ के मार्गदर्शन में हो रहा है। और ये सब सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। संघ को लगने लगा है कि ग्लोबलाइजेशन, बेरोजगारी की समस्या के बीच युवा भारत का जो स्वरुप सामने आया है। इसमें अब जातीयता और साम्प्रदायकिता के रास्ते पर चलने से बहुत ज्यादा राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला। शायद इसीलिए नरेन्द्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी की घोषणा के बाद मोदी ने जिन 200 रैलियों को संबोधित किया है। उसमें कट्टरता और हिन्दुत्व सरीखे मुद्दे गायब रहे हैं। और शायद यही वजह है कि कट्टर छवि वाले नेताओं जैसे लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, और विनय कटियार जैसे नेताओं को हाशिए पर डाल दिया गया है।

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संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में प्रकाशित सर्वे रिपोर्ट पर अगर बारीकी से गौर किया जाए तो उसमें भी संघ के बदले नजरिए और सोच की झलकियां मिलती हैं। संघ परिवार की ओर से कराए गए सर्वे में काफी चालाकी और खूबसूरती से रामजन्मभूमि बनाम विकास का मुद्दा रखा गया है। इससे पहले संघ के पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखा जाए तो हमेशा ही बहस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद बनाम छद्म राष्ट्रवाद, पंथनिरपेक्षता बनाम छद्म पंथनिरपेक्षता और जातीयता बनाम सामाजिक समरसता जैसे मुद्दों पर बहस हुआ करती थी। लेकिन अब संघ परिवार ने शायद एनडीए वन की तरह निहायत विवादित और कट्टर मुद्दों से कन्नी काटने का फैसला किया है। ये मानते हुए कि ऐसे मुद्दों के सहारे बहुत दूर तक जाना मुश्किल है।
इस कड़वी सच्चाई के पीछे संघ की ओर से होने वाली वो प्रातःकालीन शाखाएं भी हैं जिनमें बताया जाता है कि इनकी संख्या और इनमें शामिल होने वाले लोगों की तादाद में रिकॉर्ड गिरावट आई है। जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजेपी के एक राष्ट्रीय अधिवेशन में ऐलान किया था कि `हमारी हार का सबसे बड़ा कारण नियम अनुशासन और मूल्यों का पालन करते हुए राजनैतिक खेल में हिस्सा लेना है जबकि हमारे विरोधी राजनीति के इस खेल में नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए आगे बढ़ते रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर अब हमको भी सत्ता की दौड़ में शामिल होकर शीर्ष तक पहंचना है तो हमे भी वही सब हथकंडे अपनाने होंगे जो हमारे विरोधी हमारे खिलाफ अपनाते रहे हैं।`
इसके बाद अटल जी की अगुवाई में एनडीए का गठन हुआ था और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार हुआ जिसमें कॉमन सिविल कोड, रामजन्मभूमि और धारा 370 जैसे मुद्दों को अलग रखा गया। अब एक बार फिर सत्ता की दौड़ में शामिल बीजेपी और उसका पैतृक संगठन संघ शायद अटल जी के फॉर्मूले को लेकर ही आगे बढ़ने का मन बना चुका है।
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First Published: Sunday, March 30, 2014, 15:50