सचिन की कहानी, फैन की जुबानी

सचिन की कहानी, फैन की जुबानी

सचिन की कहानी, फैन की जुबानीअमित कनौजिया

जब भी सचिन के यादगार करियर के आगाज़ की बात होती है तो अक्सर लोग कराची टेस्ट की बात करते हैं। उनकी 15 रन की साहसिक पारी की बात करते हैं जो कराची टेस्ट में उन्होने इमरान खान, वसीम अकरम और वकार यूनिस की कहर बरपाती बाउंसर का सामना करते हुए बनाए लेकिन बतौर क्रिकेट फैन मुझे सचिन तेंदुलकर को पहली बार खेलते देखने का मौका 16 दिसम्बर 1989 में भारत-पाकिस्तान के बीच पेशावर वनडे में मिला। ये मैच कुछ कारणों से निर्धारित ओवर्स का नहीं हो सका। ये वो दौर था जब हम तक मैच देखने का एक ही ज़रिया था। दूरदर्शन, सुबह से टीवी पर टकटकी पर लगाए बैठे थे कि कब मैच शुरू हो और कब हम श्रीकांत और अज़हर जैसे खिलाड़ियों की बेहतरीन बैटिंग देखे। ख़ैर ऊपर वाले की नज़र इनायत हुई और छोटा ही सही प्रदर्शनी मैच देखने का मौका मिला। पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 150 से ज्यादा का स्कोर का बनाया। अब बारी थी, टीम इंडिया के टारगेट हासिल करने की।

भारतीय बल्लेबाज़ों ने लड़ख़ड़ाहट भरी शुरूआत की, विकेट्स के पतझड़ के बीच। सफेद हेलमेट पहने हाथों में बल्ला घुमाते हुए, घुंघराले बालों का गोरा मगर छोटे कद का लड़का। क्रीज़ पर पहुंचा विकेट के दूसरे छोर पर श्रीकांत थे। दिल-दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, ये लड़का कैसे भारत को जीत दिलाएगा। सचिन ने संभलकर लेकिन तेज़ शुरुआत तो की लेकिन दिल में ये ख्याल बरकरार था कि श्रीकांत शायद बल्ले से कुछ कमाल दिखाए लेकिन जल्द ही 16 साल के तेंदल्या ने सारी शंकाओं को झटके से दूर कर दिया। दिग्गज़ लेग स्पिनर अब्दुल क़ादिर के एक ओवर में 28 रन बनाकर सचिन ने हम सबको एक झटके में अपना फैन बना दिया और जीत की उम्मीदें श्रीकांत से हटकर अब सचिन से आ टिकी थी।

सचिन ने क़ादिर के अलावा दूसरे पाकिस्तानी गेंदबाज़ी की भी जमकर ख़बर ली लेकिन सचिन की 18 गेंदों पर 53 रन की तूफानी पारी भी भारत की जीत नहीं दिला सकी। मैच पाकिस्तान ने जीता लेकिन सरहद के दोनों पार दिल जीतने में तेंदल्या कामयाब रहे। उसके बाद 16 साल का तेंदल्या कब क्रिकेट का भगवान बना और कब उनकी तुलना डॉन ब्रैडमैन से होने लगे। उस दौर से दुनिया वाक़िफ है लेकिन शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि 1989 में भारतीय टीम के पाकिस्तान दौरे पर ही कपिल देव ने सचिन के हुनर को देखते हुए एक शर्त लगाई थी।

कपिल देव ने कहा था..`अगर तुमने (सचिन) इंटरनेशनल क्रिकेट में 10 साल पूरे कर लिए तो मैं तुम्हें 10 हज़ार रुपए दूंगा`। कपिल देव को शायद नहीं मालूम था कि वो जिस शख्स से शर्त लगा रहे। उसके पास गुरू रमाकांत आचरेकर के एक रुपये के न जाने कितने सिक्के है। खैर कपिल देव तो उस शर्त की बात को भूल गए लेकिन मास्टर नहीं भूले। आखिर भूलते भी कैसे ,सामने वो इंसान खड़ा था जिसकी कप्तानी में टीम इंडिया ने 1983 में वर्ल्ड चैंपियन बनीं और उस जीत के बाद सचिन का भारत के लिए खेलने का ख्वाब जुनून में बदल गया।

10 साल बाद 1999 में न्यूज़ीलैंड टीम भारतीय दौरे पर थी। ये वो दौर था, जब सचिन तेंदुलकर टीम के कप्तान और कपिल देव कोच थे। अहमदाबाद टेस्ट ड्रॉ हो चुका था और टेस्ट सीरीज़ का दूसरा पड़ाव कानपुर का ग्रीनपार्क स्टेडियम था। टीम इंडिया ने इस मैच में शानदार जीत दर्ज कर सीरीज़ में पहली जीत दर्ज की। मैच ख़त्म होने के बाद सचिन ने सीधे कपिल पाजी का रुख किया और उनको वो पुरानी शर्त याद दिलाई और 10 हज़ार रुपए वसूले।

ये किस्सा महज़ शर्त या पैसों का नहीं है। ये कहानी है, उस आत्मविश्वास की और खुद पर भरोसे की जिसकी बदौलत सचिन क्रिकेट की दुनिया के भगवान बने। ये भी महज़ एक इत्तेफाक है कि 15 नवम्बर 1989 में इंटरनेशनल क्रिकेट में कदम रखने वाले सचिन तेंदुलकर 24 साल बाद नवम्बर 2013 में ही क्रिकेट के मैदान पर अलविदा कह देंगे लेकिन वो पीढ़ी जिसने सचिन को देखकर ही क्रिकेट खेलना शुरू किया । क्रिकेट में दिलचस्पी ली , वो आने वाली पीढ़ियों को बताएंगे कि एक था मास्टर जिसने बल्ले के दम पर पूरी दुनिया पर राज किया।

(लेखक ज़ी मीडिया में खेल पत्रकार हैं।)

First Published: Friday, October 11, 2013, 00:33

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