Last Updated: Wednesday, November 20, 2013, 21:26
वासिंद्र मिश्रसंपादक, ज़ी रीजनल चैनल्सक्या इस देश में कानून अंधा है, क्या हमारा संविधान किसी की भी निजी जिंदगी में झांकने का अधिकार देता है। क्या इस देश में निजता कानून के दायरे में सिर्फ खास लोग ही आते हैं, क्या चंद खास लोगों को ही राइट टू प्राइवेसी का इस्तेमाल करने का हक है। इन सब मसलों का जिक्र इसलिए और जरूरी हो गया है क्योकि इस चुनावी मौसम में अचानक एक बहस छिड़ गई है और हाल फिलहाल इस बहस की शुरुआत हुई एक बड़े साहेब, उनके एक मंत्री और एक लड़की की जासूसी की खबरों के साथ।
इस खबर पर तफ्सील से जाने के बजाय इस मुद्दे की गंभीरता पर बात होनी जरूरी है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि जब किसी हाईप्रोफाइल शख्स का इस तरह का मामला सामने आता है और बात से बात आगे बढ़ने लगती है तो कहा जाने लगता है कि ये किसी की प्राइवेसी का उल्लंघन हो रहा है। इस देश में कई ऐसे मामले है जहां सार्वजनिक जीवन में रहने वाले लोग अचानक खुद को प्राइवेट समझने लगते हैं और इसी प्राइवेसी की दुहाई देकर खुद को खास बताते हुए आम लोगो से अलग साबित करने लगते हैं।
बीते कुछ दिनों में निजता का मसला सुर्खियों में है। इसकी शुरुआत हुई है एक ऑडियो टेप के सामने आने से जिसमें एक लड़की के बारे में एक प्रदेश के मंत्री और आला अधिकारी की बातचीत है और अगर ये ऑडियो टेप सही है तो हैरान करता है। इस टेप में रिकॉर्ड बातचीत के मुताबिक उस लड़की का चलना, उठना, बैठना, किसी के साथ मुलाकात करना जैसी हर बात का जिक्र है। अब इसी बात पर की बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं, आखिर क्यों समाज के एक खास तबके को इस बात का अहसास नहीं है कि इस देश में लागू हर कानून सबके लिए जरूरी है। आखिर क्यों जो राइट टू प्राइवेसी उनके लिए है वहीं राइट इस देश के हर खास ओ आम के लिए भी है? आखिर क्यों किसी व्यक्ति विशेष की बीमारी की जानकारी को उसकी निजता का अधिकार बताकर आम लोगों से छिपाया जाता है जबकि वो शख्श देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक शख्सियत है।

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कुछ और उदाहरणों का जिक्र करें तो, मसलन एनडी तिवारी की अवैध संतान का मामला, नीरा राडिया और रतन टाटा की बातचीत के टेप का मामला, अमर सिंह और अभिषेक मनु सिंघवी की विवादित सीडी। नारायण दत्त तिवारी को छोड़ दें तो इन सभी मामलों में अदालत ने सीडी को पब्लिक होने से बचा लिया। मसला इन लोगों की निजता का था, चाहे वो रतन टाटा हों, अमर सिंह हों या फिर अभिषेक मनु सिंघवी इन सभी लोगों ने अदालत का दरवाजा खटखटाकर अपनी निजता के उल्लंघन की बात कहकर सीडी पर स्टे ले लिया। हालांकि एनडी तिवारी अपने बेहद निजी मामले पर खुद की छीछालेदर होने से नहीं बचा पाए।
ऐसे में सवाल ये उठता है क्या भारत के हर आम नागरिक को ये अधिकार मिला हुआ है और अगर नहीं है तो कहां है निजता का अधिकार, कहां है समानता का अधिकार, क्या भारत का हर नागरिक संविधान के प्रीएम्बल की हर बात मानता है? और ऐसे में क्या हम कह सकते हैं कि भारत में रूल ऑफ लॉ है क्या हम अपने लोकतंत्र का सम्मान करते हैं। क्या जिस देश से हमने डेमोक्रेसी का आइडिया लिया क्या लोकतंत्र के मामले में हम उनकी तरह डेमोक्रेसी का सम्मान करते हैं? क्या प्राइवेसी के मामले में ऐसा नहीं लगता कि आम आदमी स्लेव डायनेस्टी में जी रहा है और मेडिएवल एरा में लौट गया है। क्या हम ऐसे में गर्व से कह सकते हैं कि हम दुनिया की सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जीते हैं?
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First Published: Wednesday, November 20, 2013, 21:26