मोदी के मैजिक का सीक्रेट

मोदी के मैजिक का सीक्रेट

मोदी के मैजिक का सीक्रेट वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स

एक पुरानी कहावत है कि लहरों के साथ तो कोई भी चल लेता है....लेकिन असल तैराक वो है जो लहरों को चीर कर आगे बढ़ता है...बचपन में वडनगर के तालाब में मगरमच्छों से लड़ते हुए मंदिर पर पताका फहराने की कहानी मोदी के बारे में कई बार कही और सुनी गई है... लेकिन ये बात 52 साल पहले की है...52 साल बाद मोदी ने खतरों से खेलते हुए रास्ता बनाने की अपनी उसी अदा को दोहराया है....तमाम एग्जिट पोल्स की रिपोर्ट्स जिन नतीजों का अनुमान लगा रही हैं उससे ये साफ है कि मोदी को दिल्ली के ताज तक पहुंचने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी है...जाहिर है अगर ऐसा हुआ तो इतिहास बनना तय है और चर्चा इस बात की भी होगी कि आखिर नरेन्द्र मोदी के लिए वो क्या फॉर्मूला रहा जिसने मोदी को चुनावी सियासत के सिर्फ 14 सालों में शिखर तक पहुंचा दिया, आखिर क्या है मोदी मैजिक का सीक्रेट।

तमाम एग्जिट पोल्स के आंकड़े ये गवाही दे रहे हैं कि देश में मोदी मैजिक चल गया है...अगर ये सच है तो फिर यकीनन उन वजहों की पड़ताल जरूरी है जिसके चलते मोदी का फैक्टर मैजिक में तब्दील हुआ...या यूं कहें कि लहर से सुनामी में बदल गया...सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ....जिसने महज 14 साल की चुनावी सियासत में मोदी को देश के सर्वोच्च पद का दावेदार बना दिया।

मोदी ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा तो सीधे मुख्यमंत्री का पद मिला...और पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा तो सीधे शीर्ष पद के दावेदार बन गए...सियासत में ऐसा नसीब शायद ही किसी को हासिल होता हो...लेकिन यहां बात सिर्फ किस्मत पर छोड़ दी जाए तो ये गैरवाजिब अन्याय होगा मोदी के उस सतत परिश्रम और रणनीति के साथ जब मोदी ने बिना अपनी निजी जिन्दगी की परवाह करते हुए पूरी जिंदगी बिता दी।

दरअसल, मोदी नाम की लहर के निर्माण की प्रक्रिया में मोदी के मैजिक से जुड़े तमाम सवालों के जवाब छिपे हैं...वो प्रक्रिया जिसने ना सिर्फ बीजेपी के मृतप्राय पड़े संगठन में जान फूंक दी...बल्कि एक ऐसे चेहरे के सहारे सियासी दांव खेला जिसने तमाम विवादों से जूझते हुए अपनी उस कमजोरी को अपनी ताकत बना ली जिसके सहारे विरोधी ये उम्मीद पाले बैठे थे कि कम से कम हिन्दुस्तान की सियासत में परम्परावादी तरीकों से बनने वाली रणनीति में ये चेहरा कारगर साबित नहीं होगा...लेकिन कम से कम फिलहाल जो संभावनाएं बनती दिख रही हैं उनमें विरोधियों की तमाम रणनीतियां हवा हो चुकी हैं।

दरअसल, मोदी मैजिक के सीक्रेट को समझने के लिए मोदी के अतीत पर गौर करना होगा..वो अतीत जो आडवाणी की ऐतिहासिक रथयात्रा से जुड़ा है...जिसमें सारथी बने थे नरेन्द्र मोदी...वो अतीत जो मुरलीमनोहर जोशी की कन्याकुमारी से श्रीनगर की यात्रा से जुड़ा है जिसमें मोदी जोशी की जोड़ी ने लाल चौक पर तिरंगा फहराया था...वो अतीत जो 1995 की उस सांगठनिक क्षमता से जुड़ा जिसके चलते मोदी ने पहली बार गुजरात में केशुभाई पटेल के नेतृत्व में बनी सरकार के लिए बिसात बिछाई थी..वो अतीत जिसमें मोदी के अथक परिश्रम ने उन्हें संघ और पार्टी नेतृत्व का इतना प्रिय बना दिया कि 2001 में जब गुजरात में बीजेपी पर सियासी संकट गहराया तो उससे निपटने के लिए मोदी को आगे कर दिया गया।

दरअसल, मोदी के इस अतीत में ही वर्तमान की पृष्ठभूमि का अक्स दिखता है...चौबीसों घंटे बिना थके बिना रूके मेहनत करने का माद्दा...जिसे संघ ने हवा दी...2004 में मिली बीजेपी की करारी शिकस्त ने अगर संघ की सोशल इंजीनियरिंग का रास्ता खोला तो इसके लिए संघ के रडार पर आए सिर्फ नरेन्द्र मोदी...एक पिछड़े वर्ग के चेहरे, एक हिन्दुत्व के पैरोकार के चेहरे, एक विकास पुरुष के चेहरे और एक कभी ना थकने वाले निष्ठावान कार्यकर्ता के चेहरे के तौर पर...संघ के लिए मोदी उसके एजेंडे के हिसाब से फिट थे...तो संघ ने भी सीधी दखल शुरू कर दी...महाराष्ट्र के एक लो प्रोफाइल नेता नितिन गडकरी को बीजेपी का अध्यक्ष बनाना दरअसल संघ का लिटमस टेस्ट था जिसमें दिल्ली में बैठे पुराने धुरंधरों के लिए खतरे की घंटी पहले ही बजा दी थी...शायद गडकरी की कंपनी पूर्ति में कथित तौर पर गड़बड़ियों के आरोप और नितिन गडकरी का इस्तीफा नहीं हुआ होता तो मोदी की उम्मीदवारी के ऐलान के लिए अक्टूबर 2013 का इंतजार नहीं करना पड़ता...लेकिन जो भी हुआ वो संघ के रणनीति के मुताबिक था।

राम लहर में पूरी ताकत लगाने के बाद भी बीजेपी को खिचड़ी सरकार बनाने पर अगर मजबूर होना पड़ा तो इसका मतलब संघ को पता था...इसका मतलब था क्षेत्रीय ताकतों के वर्चस्व को तोड़े बगैर एजेंडा पूरा नहीं हो सकता...संघ को ये बात समझ में तो काफी पहले आ गई थी...लेकिन माया, मुलायम, नीतीश, लालू जैसे क्षेत्रीय धुरंधरों की ताकत का तोड़ उसे नही मिल रहा था...और जब तोड़ मिला तो लहर आई...लहर सुनामी में बदली और सबकुछ वैसे ही हुआ जैसी रणनीति बनाई गई थी।

2014 का चुनाव कई मायनों में अहम है...इस बार मतदान का भी रिकॉर्ड बना है...इस बार हर वोट बैंक में सेंध लगी है...मोदी में अगर पिछड़ों का स्वाभिमान दिखा है तो अतिपिछड़ों पर मायावती जैसे क्षत्रपों के एकाधिकार को चुनौती भी मिली है...विकास के रोडमैप को अगर नई पीढ़ी ने स्वीकारा है तो हिन्दुत्व के कॉकटेल ने उन कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया है जो बीजेपी के कद पर हावी हुए एनडीए के दौर में उपेक्षित महसूस कर रहे थे...सही मायनों में अगर देखें तो मोदी मैजिक का सीक्रेट दरअसल वो प्लानिंग है...जिसे तैयार भले ही संघ ने किया था...लेकिन इसके लिए शायद मोदी से बेहतर और कोई चेहरा नहीं था।

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First Published: Tuesday, May 13, 2014, 20:43

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