बदलाव नहीं किया तो कांग्रेस का भविष्य नहीं : सत्यव्रत

बदलाव नहीं किया तो कांग्रेस का भविष्य नहीं : सत्यव्रत

बदलाव नहीं किया तो कांग्रेस का भविष्य नहीं : सत्यव्रत45 साल से लटका लोकपाल बिल पास हो चुका है। इस बिल को लेकर सभी सियासी दलों में सहमति बनाने में राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी ने अहम रोल निभाया। इस सेलेक्ट कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर सत्यव्रत चतुर्वेदी के सामने कई मुश्किलें आईं। आखिरकार सभी सियासी दलों में लोकपाल बिल को लेकर कैसे सहमति बन पाई। सियासत की बात में ज़ी रीजनल चैनल्स के संपादक वासिंद्र मिश्र ने सत्यव्रत चतुर्वेदी से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत के कुछ प्रमुख अंश --

वासिंद्र मिश्र : अलग-अलग धड़ों में बंटे राजनैतिक दलों को आप एक मंच, एक प्वाइंट पर आम राय बनाने में कामयाब रहे। कैसे मुमकिन हुआ ये सब ?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : इस मामले में शायद यही एक सूत्र था जिसने मुझे आगे बढ़ने में काफी मदद की, आरंभिक दिनों में आपको याद होगा हम लोग विद्यार्थी हुआ करते थे तो हमें बताया जाता था कि जब पर्चा हल करने जाओ तो सबसे सरल प्रश्न को पहले हल करो, और जो सबसे कठिन प्रश्न हो उसको सबसे अंत में छोड़ दो, ये फॉर्मूला यहां बड़ा काम आया। हमलोगों ने, सबने बैठकर पहले तो इस बात पर गंभीरता से चिंतन किया कि लोकपाल बिल बने या न बने, लेकिन आज समूची की समूची राजनैतिक जमात की विश्वसनीयता पर इस देश के लोगों की नज़र है, वैसे भी इस विश्वसनीयता को काफी आघात लग चुके हैं। क्या हम तैयार हैं हैं लोगों की नजर मे पूरी तरह अविश्वसनीय हो जाने के लिए.... ये सवाल किसी एक दल या व्यक्ति का नहीं था, राजनीतिक जमात की विश्वसनीयता मतलब लोकतंत्र की विश्वसनीयता, देश में लोकतंत्र अविश्वसनीय हो जाए, इस व्यवस्था से लोगों की आस्था उठ जाए ये बहुत बड़ा प्रश्न था।


वासिंद्र मिश्र : पॉलिटीशियन की क्रेडिबिलिटी खत्म हो जाएगी तो लोकतंत्र की क्रेडिबिलिटी खत्म हो जाएगी, इसके पीछे कहीं ना कहीं अन्ना हजारे का आंदोलन और दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम ने दबाव का काम किया ?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : मैं यूं कहूंगा कि अन्ना हजारे एक उतप्रेरक की भूमिका में जरूर थे। जो विषय लगभग पृष्ठभूमि में चला गया था, कई वर्षों से, उस विषय को मुख्य धारा में लाने का काम तो अन्ना हजारे ने जरूर किया। लेकिन एक लंबे अरसे से देश में राजनैतिक व्यवस्था और लोकतंत्र और इस लोकतांत्रिक प्रणाली के भीतर काम करने वाली संस्थाओं, दोनों की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो गए थे, जो हमसब की चिंता का विषय था।


वासिंद्र मिश्र : समाजवादी पार्टी का विश्वास हासिल क्यों नहीं कर पाए? क्या कारण था ?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : मुझे अफसोस ये है कि समाजवादी पार्टी इस बिल को पारित करने में हमारी सहयोगी नहीं बन पाई, लेकिन जहां तक सेलेक्ट कमेटी का सवाल है समाजवादी पार्टी के वरिष्ठतम नेता उसके सदस्य थे और जो सर्वसम्मत रिपोर्ट हमने पेश की उसपर उनके हस्ताक्षर हैं।


वासिंद्र मिश्र : आपको क्या लग रहा है कि हाउस में उन्होंने क्यों विरोध किया ?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : अब मैं ये नहीं कह सकता कि क्यों उन्होंने विरोध किया, मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट बनाने में, उसपर चर्चा में, निर्णय लेने में उनकी सक्रिय सहभागिता रही है


वासिंद्र मिश्र : अभी पिछले दिनों 4 राज्यों में चुनाव हुए हैं, वैसे तो 5 राज्यों में हुए, लेकिन 4 सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हुए, जहां पर हम कह सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है, उस चुनाव के परिणामों के बाद भी आपने अपनी राय जाहिर की थी, उसको लेकर काफी विवाद भी हुआ, कुछ लोगों ने कहा कि आपने अपने रिलेटिव्स को भी चुनाव हरवा दिया, अपने क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी को हरवा दिया, छत्तरपुर में, आपको क्या लगता है कि ये जो कांग्रेस की इतनी शर्मनाक हार हुई, उसके पीछे क्या कारण रहे ?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : मेरा मानना ये है कि हमें कुछ निर्णय समय पर लेने चाहिएं, अच्छे से अच्छा निर्णय अगर गलत समय पर लिया जाए तो उसका प्रभाव भी दूसरा होगा। दूसरी बात ये है कि कांग्रेस पार्टी हो या अन्य राजनैतिक दल, अब तो मिशन वाली भावना रही नहीं। बहुत कम लोग बचे हैं जो मिशनरी भावना से राजनीति में काम करते हैं, सब यहां पर अपने करियर के बारे मे सोच रहे हैं, और आदमी का अपना निजी एजेंडा अपनी पार्टी और देश के एजेंडे से बड़ा होता है। कुछ नेता जब पार्टी से लंबा कद अपना मानने लगे और राजनैतिक अहंकार हमारा इतना बड़ा हो जाए तो आम जनता को स्वीकार नहीं होता। राजनीति में जनता एक बार भ्रष्ट आदमी को स्वीकार कर लेगी लेकिन अहंकारी आदमी को स्वीकार नहीं करती। बदलाव नहीं किया तो कांग्रेस का भविष्य नहीं : सत्यव्रत

वासिंद्र मिश्र : आप पर भी आरोप लगता है कि आपको जो बात पार्टी फोरम मे कहनी चाहिए वो आप पब्लिक में बोलते हैं । मध्य प्रदेश का रिजल्ट आया, आपने सार्वजनिक तौर पर बोल दिया कि फलां-फलां की वजह से हारे ....

सत्यव्रत चतुर्वेदी : पार्टी फोरम में ये बातें मैनें पिछले दो वर्षों में बार-बार कहीं हैं, लेकिन जब परिणाम सार्वजनिक हो रहे हैं, हंसी जब हमारी सार्वजनिक हो रही हैं तो कुछ बातें तो सार्वजनिक कहनी ही पड़ेंगी।


वासिंद्र मिश्र : आपको उम्मीद है कि पार्टी आलाकमान इन खामियों को, कमजोरियों को, दूर करने के लिए सीरियस है ? क्या ऐसे नेताओं पर किसी का नियंत्रण लगाने का काम किया जाएगा?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : इनके अलावा हमारे सामने विकल्प और हैं भी क्या? अगर हमने ऐसे नहीं किया तो फिर आने वाले समय में हमारे लिए कोई भविष्य नहीं होगा।


वासिंद्र मिश्र : आपको लगता नहीं कि यूपी, बिहार, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, जैसे राज्य जो कभी कांग्रेस के मेरुदंड थे, हिंदीभाषी राज्यों में जहां कांग्रेस को सबसे ज्यादा समर्थन मिलता था, आज अगर देखें तो सबसे लचर स्थिति इन्हीं राज्यों में है...

सत्यव्रत चतुर्वेदी : ये दुर्भाग्य है ...आत्मचिंतन करना होगा, आत्म निरीक्षण करना होगा, और अब केवल कॉस्मेटिक सर्जरी से काम नहीं चलेगा, अब तो कार्डिएक सर्जरी करनी पड़ेगी...


वासिंद्र मिश्र : आम चर्चा होती रहती है कि इन राज्यों के आपके पार्टी के सहयोगी मिलते हैं, नेता मिलते हैं, दिल्ली में सरकार बनाने के लिए, सरकार चलाने के लिए । जिस तरह से अलग-अलग राज्यों में कांग्रेस पार्टी की तरफ से क्षेत्रीय दलों से समझौते किए गए कि दिल्ली में सरकार चलती रहे, बची रहे, ताकि उसके लिए तमिलनाडू की पार्टी 2जी घोटाला कर दे, बिहार के नेता चारा घोटाला कर दें, यूपी के नेता NRHM घोटाला कर दें या पुलिस भर्ती घोटाले में शामिल हो जाएं... बड़े घोटालेबाज, क्षेत्रीय दलों से जिस तरह से आत्मसम्मान का समझौता कांग्रेस ने किया...दिल्ली में सरकार की गणेश परिक्रमा दिखी, तो क्या इसे आप कांग्रेस की दुर्दशा का कारण नहीं मानते ...

सत्यव्रत चतुर्वेदी : स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा तो राजनीति में सबसे बड़ा राजनैतिक दल आपके सामने आएगा, पसंद हो या न हो लेकिन जब जिम्मेदारी किसी राजनैतिक दल पर होती है तो उपलब्ध विकल्पों में से ही आपको साथी चुनना होता है, हमारी अपनी भी कुछ सीमाएं होती हैं, सैद्धांतिक और नीतिगत। अब हम किसी सांप्रदायिक दल को अपने साथ शामिल नहीं कर सकते। हम हमेशा से सैद्धांतिक रूप से हमारे विरोधी रहने वाले दलों से समझौता नहीं कर सकते ऐसे में जो मध्यवर्गीय दल हैं हमारे सामने, विकल्प वहीं तक सीमित हो सकता है। कई बार हमने अच्छे नेता और दल पसंद किए, कई बार जैसे हैं वैसे ही काम चलाते हैं। कांग्रेस की अगर खुद की शक्ति इतनी हो कि उसको दूसरे दलों से परेशानी ना हो, ये आदर्श स्थिति है। उसके लिए जरुरी है कि कांग्रेस अपनी नीतियों पर फिर से काम करे।


वासिंद्र मिश्र : चतुर्वेदी जी...हमलोग बात कर रहे थे कि 2014 का चुनाव अब आने वाला है और आप भी ये मान रहे हैं कि जो नीतियां, जो कार्यक्रम 1950 में थे या 50 साल पहले थे, उसमें अब काफी बदलाव की जरुरत है, इसको देखते हुए आपको लगता है कि 2014 का चुनाव positive issues पर लड़ा जाएगा ? उदारहण के तौर पर महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, या सुशासन, कुशासन या फिर एक बार जाति, संप्रदाय, क्षेत्रियता को मुद्दा बनाकर 2014 का चुनाव लड़ा जाएगा ।

सत्यव्रत चतुर्वेदी : देखिए राजनीतिक दलों के तो अपने एजेंडे होते हैं, लेकिन शायद हम इस बात को महसूस करने में असफल रहे हैं, कि अधिकांश जनता का भी अपना एजेंडा होता है। वो कोई बड़ा ऑरगनाइज्ड एजेंडा हो, ऐसा शायद ना दिखे, लेकिन उसके चिंतन की एक अपनी लहर होती है। लोग अब इस बात पर चुनाव लड़ना चाहते हैं और चुनाव में इस बात पर फैसला करना चाहते हैं, कि वो किसे सबसे अधिक विश्वसनीय मानते हैं । ये तमाम मुद्दे, सुशासन , कुशासन, विकास, ये irrelevant नहीं हो सकते हैं कभी, लेकिन क्षेत्रीय मुद्दों को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता, जातिवाद का प्रभाव आज भी है। हम बिहार में, उत्तर प्रदेश में, अनेक राज्यों में हम देख रहे हैं, ध्रुवीकरण इसी आधार पर होते हैं, तो इन चीजों को पसंद करें या ना करें, लेकिन ये वास्तविकताएं हैं और उसे नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता । अगले चुनाव में मुख्यत: लोग इस बात पर निर्णय करेंगे कि हम उन्हें किस तरह ये भरोसा दिला सकें कि हम ईमानदार हैं और जो एजेंडा हम दे रहे हैं उसके लिए भी हम ईमानदार हैं ।


वासिंद्र मिश्र : आपको लगता है कि केजरीवाल, अन्ना हजारे की जो क्रेडिबिलटी है, राजनतिक क्रेडिबिलटी या आम जनता में जो उनके प्रति भरोसा है, वो किसी भी राजनीतिक दल से ज्यादा है ?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : जिसे आप क्रेडिबिलटी कह रहे हैं, मैं उसे क्रेडिबिलटी नहीं मानता, जनता ने एक विकल्प खोजने की कोशिश की है, उस विकल्प को स्थापित होने में अभी शुरुआती दौर है । स्थापित होगा, नहीं होगा, क्रेडिबल रहेगा, नहीं रहेगा, ये समय बताएगा । जो अभी परंपरागत राजनीतिक दल और सस्थाएं हैं उनकी विश्वसनीयता जरुर खंडित हुई है, वो चाहे कांग्रेस हो, चाहे भारतीय जनता पार्टी हो और चाहे वामदल की पार्टी हो, सबने कहीं ना कहीं अपना विश्वास खोया है। उस विश्वास को सथापित करने के लिए हमे रणनीति बनानी होगी और हमे प्राथमिकताओं के बारे में अब कोई भ्रम नहीं पालना होगा...जो भ्रम में रहेगा, वो इसका खामियाजा जरुर भुगतेगा ।


वासिंद्र मिश्र : जनता की राय से मेनिफेस्टो बनाने की जो कवायद शुरु हुई है..क्या आप ये जो बदली हुई रणनीति है इसे उसका एक हिस्सा मानते हैं ?

सत्यव्रत चतुर्वेदी : एक अच्छी पहल है, शुरुआत है और गैर पारंपरिक है। जो अभी तक होता नहीं था, इसे हम अगर सफलतापूर्वक पूरा कर सकें और इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों की अगर हम सहभागिता जोड़ सके, तो ये एक जबरदस्त प्रयोग सिद्ध हो सकता है।

First Published: Sunday, December 22, 2013, 15:59

comments powered by Disqus