सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा

सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा

शेखर आनंद त्रिवेदी
ज़ी मीडिया

हाल के वर्षों में जिस तरह सोशल मीडिया के जरिए लोग एक दूसरे से जुडे हैं उतनी तेजी से सूचनाओं का आदान प्रदान और प्रतिक्रियाओं का दौर भी चला है.....हर छोटी से छोटी बात लोगों की जानकारी में है....और उस पर बड़ी से बड़ी शख्सियत की टिप्पणी सार्वजनिक है....ये माना कि अपने गांव मोहल्ले कालोनी सोसाइटी की खुसुर फुसुर जानना किसी हिन्दुस्तानी की दैनिक क्रिया हो सकती है....लेकिन जानकारियों और प्रतिक्रियाओं की सुनामी उठना ये बताता है....कि बहुत कुछ था और है जो ना जाने कब में उमड़ने, घुमड़ने और उबलने को बेचैन था.....उसे सोशल मीडिया का चूल्हा मिला तो बातें अब पकने लगी हैं....

आज की नौजवान पीढ़ी अपने बुजुर्गों से ये सुनते हुए बड़ी हुई थी....कि कांग्रेस की सरकार जब जब देश में बनी तब तब मंहगाई और भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया....इस बार उसने ना सिर्फ इसे अपनी आंखों से देखा....बल्कि हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी नौजवान आबादी इसका शिकार हो गई.....और उसे अपनी बात रखने का जो तरीका...जो माध्यम सामने मिला....उससे उसने सरकार को रौंदना शुरु कर दिया...

सत्ता के नशे में चूर हमारे और आपके ही चुने हुए ऐसे नुमाइंदे जो दरअसल ना सिर्फ सरकार चला रहे हैं...ऐसी मुखर आलोचना सुन कर लगभग बिलबिला उठे.....नतीजा कभी सोशल मीडिया पर बैन लगाने की कोशिश हुई....कभी ऐसी गिरफ्तारियों का दौर चला जिस पर बाद में सरकार को ही अपने कदम वापस खींचने पड़े....और तो और अपने खिलाफ कुछ ना सुनने की जिद पाले बैठी दिल्ली की कांग्रेसी सरकार ने एक योग शिविर में आधी रात को लाठियां तक बरसा दीं...लेकिन ऐसे लोकतांत्रिक अवसरों को अलोकतांत्रिक तरीके से बाकायदा दमन चक्र चला कर कुचलने वाली सरकारों को जनता ने चुनाव में सबक सिखा दिया....एक बार फिर सरकार....स्वतंत्र अभिव्यक्ति संचार पर शिकंजा कसने की नाकाम कोशिश कर चुकी है....जो ये बताने के लिए काफी है कि लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए नुमाइंदों में कुछ तानाशाह सेंधमारी कर रहे हैं।

First Published: Monday, April 7, 2014, 16:13

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