काशी की कसौटी पर...

काशी की कसौटी पर...

काशी की कसौटी पर...वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स

लोकसभा चुनाव पास आते ही राजनैतिक गर्मी बढ़ रही है और इसके साथ ही काशी देश समेत पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बना हुआ है... वजह है बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का वाराणसी से चुनाव लड़ना... काशी Religious tourism, cultural heritage और दुनिया के प्राचीनतम शहर के रूप में मशहूर है... काशी की आबोहवा में संस्कृति, आध्यात्म और विद्वता सतत महसूस की जा सकती है... और अक्सर काशी इन्हीं चीजों की वजह से जानी जाती है... लेकिन इन दिनों काशी की चर्चा नरेंद्र मोदी के वहां से चुनाव लड़ने को लेकर ज्यादा हो रही है।

दिलचस्प बात ये है कि नरेंद्र मोदी ने अभी तक वहां से नामांकन पत्र भी दाखिल नहीं किया है... बावजूद इसके उनके समर्थकों की तरफ से शुरू किया गया कैंपेन इतना विवादित हो गया कि मोदी को खुद ट्वीट करके अपने समर्थकों से संयम बरतने और काशी के लोगों की भावनाओं का आदर करने की अपील करनी पड़ी...सबसे ज्यादा विवाद हर-हर मोदी, घर-घर मोदी नारे को लेकर हुआ... वाराणसी में मोदी समर्थकों ने ये नारा ठीक उसी तरह लगाना शुरू किया जिस तरह हर-हर महादेव का नारा लगाया जाता है... लिहाजा काशी के धर्माचार्यों और काशी के रहने वाले लोगों की आस्था को ठेस पहुंची और विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि बीजेपी के चोटी के नेताओं समेत, नरेंद्र मोदी तक को, पब्लिक प्लेटफॉर्म पर ये कहना पड़ा कि हर हर मोदी नारा न लगाया जाए... काशी के बारे में एक कहावत मशहूर है...`रांड सांड सीढ़ी संन्यासी, इनसे बचै तो सेवै काशी`।

इस कहावत का मतलब बनारस में ठगी की पराकाष्ठा से है... मतलब ये कि काशी में विद्वता, संस्कृति, कला हर चीज की पराकाष्ठा है तो ठगी की भी है... दरअसल काशी में इतने सारे गुण हैं कि जो भी यहां आता है वो किसी ना किसी रूप में प्रभावित हुए बिना नहीं रहता और जो प्रभावित करने के विचार से आता है उसे काशी की आबोहवा प्रभावित कर देती है... और वो ठगे से रह जाते हैं... काशी के लोगों ने हज़ारों साल से अपनी cultural, intellectual, religious, historical सुपरमैसी को बनाए रखने की कोशिश की है...काशी का अल्हड़पन पूरी दुनिया में मशहूर है... लेकिन ये भी सच है कि यहां विद्वानों, महापुरुषों, साहित्यकारों और कलाप्रेमियों की जितनी बड़ी तादाद काशी में है उतनी शायद ही कहीं और है... शायद यही वजह है कि बाहर से आने वाले लोग यहां आकर काशी के मुरीद हो जाते हैं।

ऐसे में जब ये शहर चुनावी माहौल को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा में है और देश की सभी पॉलिटिकल पार्टियों की नजर इस सीट पर है और जब 2014 के रण में यहां का मुकाबला दिलचस्प होने जा रहा है तो देखना ये होगा कि काशी की अल्हड़ जनता किसके साथ कैसे पेश आती है क्योंकि काशी ऐसी जगह है जहां आदिगुरु शंकराचार्य को भी चैलेंज किया गया था और चैलेंज करने वाले ब्राह्मण के साथ 8 दिनों तक आदिगुरु का शास्त्रार्थ चलता रहा तब तक, जब तक उस ब्राह्मण को अहसास नहीं हो गया कि वो किसके साथ शास्त्रार्थ कर रहा है... काशी वो जगह है जहां राजा हरिश्चंद्र को डोमराजा की सत्ता स्वीकार करनी पड़ी थी... काशी ही वो जगह है जहां शैव परंपरा को भी चुनौती का सामना करना पड़ा था जिसके समानान्तर बौद्ध परंपरा का विकास हुआ था ऐसे में देखना ये है कि क्या अब यहां से एक नई परंपरा की शुरुआत होगी ?

लेकिन काशी का एक दूसरा पक्ष भी है जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है...वो है काशी में विकास की कमी... काशी में दुनिया भर से लोग आते हैं... काशी को मिनी भारत कहा जाता है क्योंकि यहां देश के लगभग हर संस्कृति के लोग रहते हैं लेकिन इसके बावजूद यहां विकास के नाम पर कुछ नहीं है... सैकड़ों साल पुरानी तंग गलियों में आज भी कोई बदलाव नहीं है... घाटों पर भीड़ के बीच गंदगी नज़र आती है... सड़कें बुरी हालत में हैं... लगभग साल भर लोग यहां जाम से जूझते हैं... तंग गलियों में दुकानें अटी पड़ी हैं जिनके ठीक नीचे खुले नाले बहते हैं... गंगा की गंदगी तो एक मुद्दा है ही... ऐसे में जब ये सीट नरेंद्र मोदी के चुनाव लड़ने की वजह से काफी अहम हो गई है तो काशी के लोगों की उम्मीद है कि शायद इस बार यहां से चुन कर जो भी व्यक्ति जाएगा वो काशी के Integrated और all round development की बात करेगा।

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First Published: Tuesday, March 25, 2014, 18:56

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