Last Updated: Tuesday, February 18, 2014, 19:29
वासिंद्र मिश्रसंपादक, ज़ी रीजनल चैनल्सतेलंगाना को लेकर जो कुछ भी हो रहा है उससे लग रहा है कि कांग्रेस इसे एक मुद्दा बनाकर वोट के लिए कुछ भी करने को तैयार है। उत्तर भारत में अपना वोट बैंक खिसकता देख कांग्रेस ने दक्षिण भारत में अपनी पैठ बनाने के लिए तेलंगाना की चाल चली है। वाइएसआर रेड्डी के बाद किरण रेड्डी को सत्ता सौंपने का पॉलिटिकल ब्लंडर कर चुकी कांग्रेस तेलंगाना के बहाने खुद को रिवाइव करना चाहती है। पिछले दो बार से कांग्रेस ने तेलंगाना को ही मुद्दा बनाकर चुनाव जीता है। तेलंगाना की मांग पचास के दशक से की जा रही है और इसके लिए हर साल विरोध प्रदर्शन भी होता रहा है। ऐसे में सवाल ये है कि कांग्रेस ने तेलंगाना को आखिरी रूप देने के लिए यही वक्त क्यों चुना?
दक्षिण में वाइएसआर रेड्डी कांग्रेस का चेहरा माने जाते थे। वाइएसआर रेड्डी गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक थे। एनटी रामाराव के बाद वाइएसआर रेड्डी ने ही कांग्रेस को आंध्र प्रदेश की राजनीति में जिंदा किया लेकिन वाइएसआर रेड्डी की अचानक मौत होने के बाद कांग्रेस ने कमान किरण रेड्डी के हाथों सौंप दी। नतीजा ये हुआ कि वाइएसआर रेड्डी के बेटे अपने रिश्तेदारों और समर्थकों के साथ पार्टी से अलग हो गए। जब किरण रेड्डी कांग्रेस की हिली हुई नींव को मजबूती देने में फेल रहे तो अलग तरह की राजनीति शुरू हो गई। जगनमोहन रेड्डी को टैंटरहुक पर रखने के लिए आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज कराया गया। सवाल ये उठते हैं कि क्या जगनमोहन रेड्डी के पास संपत्ति रातों रात आ गई थी और नहीं तो जब टीडीपी को हटाकर वाइएसआर रेड्डी की अगुआई में कांग्रेस की सरकार बनी तब क्या उनका परिवार भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं था।
पिछले कुछ दिनों में वाइएसआर कांग्रेस के नाम से पार्टी बनाकर जगनमोहन रेड्डी ने साउथ इंडिया में कांग्रेस को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उपचुनावों में कांग्रेस को पटखनी देने में वो कामयाब भी रहे हैं जबकि किरण रेड्डी अपनी तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस की साख नहीं बचा पाए हैं। ऐसे में अपना खोया जनाधार पाने के लिए कांग्रेस कोई भी हथकंडा अपनाने और किसी भी हद तक जाने को तैयार है। इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ दिनों में तेलंगाना का मसला देश की राजनीति में सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है ताकि दक्षिण में विरोधी राजनीतिक पार्टियों को कमजोर किया जा सके और इस कोशिश में बीते कुछ दिनों में देश के संविधान, संसद और संगठन के नियम कायदों की धज्जियां उड़ाई गई हैं।

|
---|
तेलंगाना विधेयक जैसे किसी भी बिल पर काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स का कलेक्टिव (सामूहिक) फैसला होता है! अब भले ही तेलंगाना बिल लोकसभा में पास हो गया हो लेकिन इस पर हुए विरोध ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं! मसलन इस बिल पर हुआ फैसला क्या काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स का नहीं था और अगर था तो फिर उसी काउंसिल के कुछ सद्स्य इसका विरोध कर संसदीय प्रणाली का मज़ाक क्यों उड़ा रहे थे! और अगर उनके ऐतराज़ के बाद भी तेलंगाना बिल लाया गया तो उन मंत्रियों ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया और अगर उन्हें ऐतराज़ नहीं था और फिर भी वो विरोध कर रहे थे तो प्रधानमंत्री ने उन्हें बर्खास्त क्यों नहीं किया।
इन घटनाओं से एक बार फिर साबित हो गया है कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेतृत्व की कार्यशैली ऑटोक्रेटिक है, ठीक वैसी ही जैसी श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में होती थी। कहा जाता है कि उस वक्त कैबिनेट का एजेंडा पहले से तय होता था मंत्री सिर्फ उस पर साइन किया करते थे। सोनिया, राहुल या फिर प्रधानमंत्री भले ही कम बोलते हों लेकिन इनका रवैया वही है। भले ही कनविक्शन में कमी आ गई हो लेकिन आज भी वही हो रहा है।
ऐसे में इससे पार्टी का फायदा हो या ना हो लेकिन पिछले कुछ दिनों में हुए घटनाक्रम ने संसदीय कार्यप्रणाली पर और हेल्दी डेमोक्रेसी (स्वस्थ प्रजातंत्र) पर एक बदनुमा दाग जरूर लगा दिया है और इससे अराजक तत्वों को मौका मिल रहा है कि वो अपने हिसाब से संविधान की व्याख्या कर सकें और गैरसंवैधानिक कामों को सही ठहरा सकें।
आप लेखक को टि्वटर पर फॉलो कर सकते हैं
First Published: Tuesday, February 18, 2014, 19:28