Last Updated: Sunday, January 1, 2012, 17:52

नई दिल्ली : सरकार तथा भारतीय रिजर्व बैंक के लिए आर्थिक मोर्चे पर दिक्कतें नये साल में भी समाप्त नहीं होने जा रही हैं और आर्थिक मंदी से निपटना तथा रुपये में गिरावट को थामना उसकी शीर्ष प्राथमिकताओं में रहेगा। हालांकि 2011 में इन दोनों के लिए सिरदर्दी बनी रही मुद्रास्फीति आने वाले महीनों में शायद दिक्कत खड़ी नहीं करे।
वैश्विक कारणों से खड़ा हुआ आर्थिक संकट 2012 को एक तरह से सौगात में मिला है और सरकार के कंधों पर आर्थिक सुधारों को गति देने तथा निवेशकों के मनोबल को बढाते हुए नीतिगत मोर्चे पर पंगुता के बोझ को उतार फेंकने की महत्ती जिम्मेदारी होगी।
वर्ष 2011 की शुरूआत काफी सकारात्मक रही थी जबकि मार्च 2011 को समाप्त तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि आर्थिक सर्वेक्षण (2011) में 2011-12 में वृद्धि दर लगभग नौ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था।
लेकिन जून (तिमाही) आते आते वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत और जुलाई सितंबर में 6.9 प्रतिशत रह गई। अक्तूबर-दिसंबर के आंकड़े अभी नहीं आए है लेकिन उनके भी बेहतर रहने का कोई संकेत नहीं है।
वृद्धि दर में नरमी से चिंतित एचडीएफसी चेयरमैन दीपक पारेख सहित कई अन्य प्रमुख उद्योगपतियों ने सरकार को खुला पत्र लिखा जिसमें नीतिगत मोर्चे पर पंगुता पर चिंता जताई। पत्र में हालात से निपटने के लिए मजबूत कदम उठाने की जरूरत रेखांकित की गई।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हालांकि इन आलोचना को खारिज करते हुए उद्योगपतियों पर आरोप लगाया कि वे सरकार की आलोचना करते हुए निराशा फैला रहे हैं। लेकिन यह भी तथ्य है कि वित्त मंत्रालय तथा रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर अनुमान को घटाकर लगभग 7.5 प्रतिशत कर दिया जो 2010-11 में 8.5 प्रतिशत थी। (एजेंसी)
First Published: Sunday, January 1, 2012, 23:24