Last Updated: Tuesday, September 18, 2012, 20:12

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव आज 2जी मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के समक्ष उपस्थित हुए और कहा कि वह वित्त मंत्रालय के उस विवादास्पद नोट से सहमत नहीं थे जिसके अनुसार वित्तमंत्री पी. चिदंबरम 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी पर जोर दे सकते थे।
सुब्बाराव ने स्पेक्ट्रम आवंटन के कारण घाटा होने की बातों को भी खारिज कर दिया। सुब्बाराव पूर्व वित्त सचिव के रूप में समिति के समक्ष हाजिर हुए। उन्होंने समिति को बताया कि वे वित्त मंत्रालय द्वारा 25 मार्च 2011 को प्रधानमंत्री को भेजे उस नोट से सहमत नहीं थे जिसमें कहा गया कि पहले आओ पहले पाओं के आधार पर स्पेक्ट्रम आवंटन के बजाय चिदंबरम 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी पर जोर दे सकते थे।
नोट के अनुसार चिदंबरम ने 30 जनवरी 2008 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा के साथ बैठक में कहा, वे स्पेक्ट्रम के प्रवेश शुल्क या आय हिस्सेदारी के लिए फिलहाल मौजूदा प्रणाली में बदलाव नहीं चाह रहे। सुब्बाराव 30 अप्रैल 2007 से चार सितंबर 2008 तक वित्त सचिव रहे। माना जाता है कि सुब्बाराव ने स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं होने के कारण होने वाले घाटे के मुद्दे पर कहा कि सरकारी खजाने को कोई नुकसान नहीं हुआ और हुआ भी तो यह केवल अनुमानित है।
समझा जाता है कि सुब्बाराव ने यह भी कहा कि दूरसंचार विभाग के 29 नवंबर 2007 के पत्र का जवाब देने में उनकी तरफ से जानबूझकर देरी नहीं हुई। इस पत्र में सूचित किया गया कि एकीकृत पहुंच व्यवस्था के लिये प्रवेश शुल्क को मंत्रिमंडल के निर्णय के आधार पर वर्ष 2003 में ही अंतिम रुप दे दिया गया।
सुब्बाराव ने कहा कि उन्होंने इस पत्र के बारे में वित्त मंत्री को लाइसेंस आवंटित होने से एक दिन पहले, 9 जनवरी 2008 को जानकारी दे दी थी। वामपंथी दलों और द्रमुक के कुछ सदस्यों न जब उनसे यह जानना चाहा कि उन्होंने लाइसेंस आवंटन के केवल एक दिन पहले ही क्यों वित्त मंत्री को जानकारी दी, जवाब में उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय को नहीं पता था कि लाइसेंस 10 जनवरी को दिये जाने हैं। कुछ सदस्यों ने वित्त मंत्री को पत्र की जानकारी देने में 40 दिन की देरी पर भी सवाल उठाये। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, September 18, 2012, 20:12