Last Updated: Monday, December 3, 2012, 15:05

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह को उसकी दो कंपनियों में पैसा लगाने वाले निवेशकों को 27,000 करोड़ रुपए की राशि न लौटाने पर सोमवार को लताड़ लगाई।
मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सहारा इंडिया रीयल एस्टेअ कापरेरेशन लिमिटेड (एसआईआरईसीएल) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कापरेरेशन लिमिटेड (एसएचआईसीएल) से कहा कि वे मंगलवार तक बताएं कि एक सप्ताह के अंदर वे अपने निवेशकों को पूरी राशि वापस कर सकेगी या नहीं।
आमतौर पर बहुत सौम्य दिखने वाले न्यायमूर्ति कबीर ने उच्चतम न्यायालय के आदेश पर अमल न करने पर सोमवार को इन कंपिनयों के खिलाफ कुछ कड़े शब्दों का उपयोग किया। उन्होंने कहा कि इन कंपनियों की याचिका कतई सुनवाई लायक नहीं है।
पीठ ने कहा ‘अपकी मंशा डगमग है। आपका हर कदम डगमगा रहा है। हम अपने आदेश की व्याख्या आपकी सुविधा के हिसाब से नहीं कर सकते।’
सहारा की दो कंपनियों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने पूरी राशि के भुगतान कर पाने में कंपनी की विफलता को उचित ठहराने की कोशिश कर रहे थे। पीठ ने उन्हें यह कह कर चुप करा दिया कि ‘आप ऐसे अपने ऐसे काम को न्यायोजित बता रहे हैं जिसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है।’ बावजूद इकसे पीठ ने दोनों कंपनियों को यह बताने के लिए मंगलवार तक का समय दिया कि वे वे पैसा वापस कर सकते हैं या नहीं।
बाजार नियामक सेबी ने भी सहारा की याचिका का विरोध किया गया। सेबी की ओर से कहा गया कि उसने पहले ही सहारा के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर रखी है। सेबी ने कहा कि उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। हालांकि पीठ ने कहा कि उसे ऐसे आम लोगों की ज्यादा चिंता है जिन्होंने इन कंपनियों में अपना धन लगाया है।
पीठ ने कहा ‘यदि आप चाहते हैं हम उन्हें जेल भेज दें तो हम उन्हें भेज देंगे लेकिन हमें आम आदमी की पूंजी की चिंता है।’ इस बहस के दौरान न्यायमूर्ति कबीर ने उस वक्त रोश में आ गए जबकि सहारा समूह की दूसरी कंपनी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी बीच में अपना तर्क पेश करने को खड़े हो गए। न्यायमूर्ति करीब ने रोहतगी को बैठने का निर्देश देते हुए कहा ‘यह कोई तरीका नहीं है। आपका पक्ष हार रहा है तो आपको बीच में कूदने का अधिकार नहीं है।’ (एजेंसी)
First Published: Monday, December 3, 2012, 12:21