Last Updated: Tuesday, March 27, 2012, 14:55
नई दिल्ली : अर्थव्यवस्था की ऊंची विकास दर हासिल करने और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने तेल की कीमतों में कमी लाने के लिए इ’धन पर कर कम करने के कोई संकेत नहीं दिए। उन्होंने घरेलू आभूषणों पर उत्पाद शुल्क कम करने के बारे में विचार करने को तो कहा लेकिन आयातित सोने पर शुल्क कटौती की किसी संभावना से साफ इनकार किया। इससे पहले उन्होंने कहा कि वैश्विक स्थिति को देखते हुए उनके पास कोई जादुई चिराग नहीं है जो वह भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को बदल दें।
वित्त मंत्री ने कहा कि निगमित कंपनियों से प्रत्यक्ष कर वसूली भी कम है क्योंकि निर्यात कम होने के कारण जो माहौल पैदा हुआ है, उसमें अधिकांश कंपनियों का मुनाफा कम हुआ है। सरकार की आय बढाने के लिए मुखर्जी ने कहा कि ऐसे निवेशकों के कर अदायगी से बचने की प्रवृत्ति को रोकना होगा, जो मारिशस और कर की अन्य पनाहगाहों का रास्ता अपनाते हैं जबकि उन देशों में उनके कार्यालय तक नहीं हैं। अधिकांश पते उनके चार्टर्ड एकाउण्टेंट या कर परामर्शकों के हैं। अधिकांश के तो उन देशों में वाजिब कारोबार ही नहीं हैं।उन्हें कर देना पडेगा। आयातित सोने पर प्रस्तावित शुल्क बढोतरी के विरोध में पिछले 12 दिन से देश भर के सर्राफा व्यवसायी हडताल कर रहे हैं लेकिन मुखर्जी ने आज उन्हें कोई राहत नहीं दी।
अपनी वरीयताओं का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा कि उनके तीन उद्देश्य हैं। नौ प्रतिशत की उच्च विकास दर हासिल करना, मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना और राजकोषीय घाटे को ऐसी सीमाओं में रखना, जहां उसे संभाला जा सके। उन्होंने कहा कि आसमान छूते तेल के दाम, अमेरिका और यूरोप में आर्थिक संकट से देश की अर्थव्यवस्था अछूती नहीं रह सकती। उन्होंने कहा कि परिस्थितियों के अनुसार उन्होंने सर्वोत्तम बजट पेश करने का प्रयास किया है। मुखर्जी ने यह भी कहा कि स्पष्ट जनादेश नहीं होने के कारण सरकार को अपने सभी सहयोगियों के नजरिये का ख्याल रखना पडता है। उन्होंने कहा कि इन सबके बावजूद मुद्रास्फीति का 22 प्रतिशत से आठ प्रतिशत आ जाना संतोष की बात कही जा सकती है।
बढती महंगाई और राजकोषीय घाटे के लिए वित्त मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल की उंची कीमतों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने पेट्रोल की कीमतों में बढोतरी के सरकार के फैसले को जायज ठहराया। दुनिया आर्थिक संकट से गुजर रही है। हमें इसे हल्की बातचीत का विषय नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उंची विकास दर हासिल करने के लिए कृषि क्षेत्र का विकास जरूरी है। हमें घरेलू मांग तेज करनी होगी और ऐसा तभी होगा, जब कृषि क्षेत्र में जबर्दस्त विकास हो।
अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को ठीक करने की आवश्यकता जताने वाले विभिन्न सदस्यों को मुखर्जी ने शायद यह कहते हुए संदेश देने की कोशिश की कि विश्व के जो हालात इस समय चल रहे हैं, उन्हें देखते हुए उनके पास कोई जादुई चिराग नहीं है, जो वह इसे ठीक कर लें। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंदी और बाजार के उतार चढाव को अर्थव्यवस्था के खराब प्रदर्शन की वजह बताया। साथ ही कहा कि निर्यात में कमी की वजह से भी इस पर असर पडा है।
(एजेंसी)
First Published: Tuesday, March 27, 2012, 20:25