Last Updated: Monday, June 4, 2012, 14:37

मुंबई : मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा से पहले रिजर्व बैंक ने आज कहा कि आर्थिक वृद्धि में गिरावट और वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में कमी के कारण मुद्रास्फीति का दबाव कम होने से मौद्रिक नीति में ढील देने की गुंजाईश बन सकती है। इस बयान से लगता है कि केंद्रीय बैंक नीतिगत ब्याज दरों में कमी कर सकता है।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर सुबीर गोकर्ण ने यहां कहा, वृद्धि दर उम्मीद से कुछ कम है और इसका मुख्य मुद्रास्फीति पर अनुकूल और शमनकारी प्रभाव हो सकता है। उन्होंने कहा, कच्चे तेल का भाव भी उम्मीद से कहीं अधिक घटा है। ये दो ऐसी वजहें हैं जिनसे थोड़ी गुंजाईश (मौद्रिक नीति में ढील देने की) दिखती है। केंद्रीय बैंक 18 जून की 2012-13 की मौद्रिक नीति की पहली मध्य तिमाही समीक्षा की घोषणा करने वाला है।
आरबीआई ने 17 अप्रैल को घोषित 2012-13 की सालाना मौद्रिक नीति में अपनी अल्पकालिक ब्याज दर (रेपो दर) 0.50 फीसदी घटा कर आठ फीसद कर दिया था ताकि कारोबार के लिए बैंकों का कर्ज सस्ता हो सके।
विनिर्माण और कृषि क्षेत्र में खराब प्रदर्शन के बाद भारत की वृद्धि 2011-12 की चौथी तिमाही में घटकर 5.3 फीसद पर आ गई जो पिछले नौ साल की न्यूनतम तिमाही आर्थिक वृद्धि दर है। इसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2011-12 की वृद्धि दर घटकर 6.5 फीसद पर आ गई जो 2010-11 में 8.4 फीसद थी।
हालांकि थोकमूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति गत अप्रैल के महीने में इससे पिछले महीने के 6.9 फीसद से बढ कर 7.23 फीसद हो गई थी।
इस बीच चीन और अमेरिका के आर्थिक आंकड़ों में नरमी के संकेत तथा स्पेन को लेकर यूरो मुद्रा वाले क्षेत्र में सरकारी ऋण के संकट के फिर गहराने की आशंकाओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिर कर पिछले आठ महीनों में पहली बार 100 डालर प्रति बैरल से नीचे आ गयी हैं। (एजेंसी)
First Published: Monday, June 4, 2012, 14:37