एसएंडपी ने किया आगाह, घट सकती है भारत की रेटिंग

एसएंडपी ने किया आगाह, घट सकती है भारत की रेटिंग

एसएंडपी ने किया आगाह, घट सकती है भारत की रेटिंगनई दिल्ली : वैश्विक रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) ने शुक्रवार को चेताया कि वह भारत की वित्तीय साख घटाकर ‘जंक’ (निवेश नहीं करने लायक) श्रेणी में डाल सकती है। एजेंसी का कहना है यदि सरकार सुधारों को आगे बढ़ाने और राजकोषीय व चालू खाते के घाटे पर अंकुश लगाने में नाकाम रहती है, तो भारत की रेटिंग घट सकती है।

फिलहाल नकारात्मक परिदृश्य के साथ भारत की ‘बीबीबी माइनस’ रेटिंग को बरकरार रखते हुए एसएंडपी ने कहा है कि अगले 12 माह में भारत की रेटिंग घटने की संभावना कम से कम तीन में एक यानी 33 फीसदी के बराबर है। एसएंडपी ने बयान में कहा, ‘यदि हम यह पाते हैं कि सरकार सुधारों की धीमी रफ्तार से आर्थिक वृद्धि के उस स्तर तक नहीं पहुंचा जा सकेगा जो हमें इस दशक की शुरुआत में देखने को मिली थी, तब ऐसी स्थिति में रेटिंग घट सकती है।’

ट्रिपल बी नकारात्मक निवेश श्रेणी में सबसे निचली रेटिंग है और यदि रेटिंग में और कमी की जाती है तो यह जंक की स्थिति में पहुंच जाएगी। ऐसे में भारतीय कंपनियों के लिए विदेशों से सस्ता ऋण जुटाना मुश्किल हो जाएगा। एसएंडपी के ऋण विश्लेषक ताकाहिरा ओगावा ने कहा, ‘भारत में रेटिंग के मोर्चे पर सबसे बड़ी अड़चन उच्च राजकोषीय घाटा और सरकार पर भारी कर्ज का बोझ है। हालांकि सरकार ने सितंबर, 2012 के बाद से नए ढांचागत सुधार किए हैं और सार्वजनिक खर्च को नियंत्रित किया है।’

एसएंडपी ने हालांकि कहा कि भारत में धीमी वृद्धि की एक वजह समय के साथ होने वाली चक्रीय स्थिति भी है। लेकिन श्रम और उत्पाद बाजार सख्त होने और उचित बुनियादी ढांचे के अभाव में देश की मध्यम अवधि की वृद्धि संभावनाएं प्रभावित हुई हैं। इसने कहा है कि निवेश पर मंत्रिमंडलीय समिति का बुनियादी ढांचा और बिजली परियोजनाओं से लालफीताशाही दूर करने की पहल के बावजूद निवेश बढ़ाने को लेकर समिति की सफलता अनिश्चित है।

पिछले महीने एसएंडपी के प्रतिनिधियों के साथ बैठक में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने रेटिंग उन्नयन की वकालत की थी। उनका कहना था कि सरकार ने राजकोषीय घाटे पर अंकुश तथा निवेश को प्रोत्साहन के लिए कदम उठाए हैं। एसएंडपी ने कहा कि भारत की दीर्घावधि की वृद्धि संभावनाओं और उसका ऊंचा विदेशी मुद्रा भंडार वृद्धि को बढ़ावा देने वाला है, लेकिन ऊंचा राजकोषीय घाटा तथा सरकार पर कर्ज का भारी बोझ इसके रास्ते की बाधा है।

ओगावा ने कांफ्रेंस कॉल के जरिये कहा, ‘चालू वित्तवर्ष में हम 6 फीसदी की वृद्धि दर की उम्मीद कर रहे हैं। हाल के समय में मुद्रास्फीति नीचे आई है।’ यह पूछे जाने पर कि नकारात्मक परिदृश्य में बदलाव कैसे आ सकता है, ओगावा ने कहा, ‘यदि सरकार मौजूदा सुधारों के एजेंडा को जारी रखती है, भूमि विधेयक, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे सुधारों को आगे बढ़ाती है, राजकोषीय और चालू खाते के घाटे में कमी लाती है तथा सब्सिडी कम करती है, तो इससे परिदृश्य में उल्लेखनीय बदलाव हो सकता है।’ (एजेंसी)

First Published: Friday, May 17, 2013, 18:39

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