Last Updated: Thursday, March 14, 2013, 18:21
नई दिल्ली : पूंजी जुटाने के लिए बैंकों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते बैंकों के लिये ऊंचे ब्याज मार्जिन को बचाए रखना मुश्किल होता जा रहा है। करीब चार साल पहले जहां बैंकों का कर्ज और जमा पर ब्याज मार्जिन सात से आठ प्रतिशत तक था वहीं इन दिनों यह घटकर मात्र सवा से डेढ़ प्रतिशत रह गया।
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम के एक अध्ययन के अनुसार ऊंचा ब्याज मार्जिन बैकों के लिए अब बीते समय की बात हो गई है। एक तरफ जहां बैंकों की विभिन्न कर्जों में फंसी राशि यानी एनपीए अनुपात बढ़ता जा रहा है वहीं दूसरी तरफ बैंकों का सावधि जमा दिया जाने वाला और कर्ज पर लिए जाने वाले ब्याज दरों के बीच का फासला कम होता जा रहा है।
एसोचैम के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के समक्ष वर्ष 2000-01 से लेकर 2010-11 के बीच जमा और कर्ज की ब्याज दरों में इतना कम फासला कभी नहीं रहा। हालांकि, 2010-11 के बाद यह लगातार कम होता चला गया और एक समय केवल 0.50 प्रतिशत रह गया था।
उद्योग जगत ब्याज दरों में कमी की मांग कर रहा है। लेकिन बैंकिंग उद्योग के मामले में स्थिति बेहतर नहीं लग रही है। आर्थिक वृद्धि को तेज करने के लिए ब्याज दरों में कमी की मांग जोर पकड़ती जा रही है, उच्चस्तर से नीचे आई मुद्रास्फीति की स्थिति को देखते हुए भी केन्द्रीय बैंक ब्याज दरों में कमी ला सकता है। ऐसे में यह बैंकों की क्षमता पर ही निर्भर करेगा कि वह जमा पर ब्याज दरों में कटौती कर सकते हैं अथवा नहीं। (एजेंसी)
First Published: Thursday, March 14, 2013, 18:21