खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम सरकारी खजाने पर बोझ : अर्थशास्त्री

खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम सरकारी खजाने पर बोझ : अर्थशास्त्री

नई दिल्ली : अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लागू करने से सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ेगा और सरकार का व्यय अनुमान से कहीं अधिक होगा।

योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन ने कहा, ‘इसमें सभी तत्वों पर पहले ही गौर किया जा चुका है। निश्चित रूप से सरकारी खजाने पर कुछ बोझ बढ़ेगा। केंद्र सरकार जो अब कर रही है, कई राज्य पहले ही इसे कर चुके हैं।’ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश की दो तिहाई जनता को एक से तीन रपये किलो के सस्ते दाम पर हर महीने पांच किलो अनाज का कानूनी हक देने के लिए अध्यादेश लाने का आज फैसला किया।

खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के अमल में आने पर यह 1,25,000 करोड रपये की सरकारी सहायता वाला दुनिया का इस तरह का सबसे बडा कार्यक्रम होगा। इसके तहत देश की 67 प्रतिशत आबादी को लगभग 6.2 करोड़ टन चावल, गेहूं तथा मोटा अनाज सस्ते दाम पर उपलब्ध होगा।

एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरूआ ने कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक से सरकारी खजाने पर अनुमान से कहीं अधिक बोझ बढ़ेगा। साथ ही आपूर्ति को लेकर भी चिंता है। अभीक बरूआ ने कहा, ‘मुझे दो कारणों को लेकर चिंता है। पहला डिलीवरी तथा दूसरा सरकार पर इसका राजकोषीय प्रभाव। मेरे हिसाब से इसके कारण सरकार पर बोझ अनुमान से कहीं अधिक पड़ेगा।’ उन्होंने कहा कि इसके अलावा गोदाम तथा अन्य संबद्ध चीजों पर अतिरिक्त खर्चा आएगा। वितरण मामले में सार्वजनिक जनवितरण प्रणाली में कालाबजारी का मामला जुड़ा है।

सेन ने कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक पर पिछले दो-तीन साल से विचार किया जा रहा था और इसमें कुछ भी नया नहीं है। इस बीच, उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा कि निश्चित रूप से इससे सरकार के वित्त पर दबाव बढ़ेगा लेकिन यह आबादी के बड़े हिससे को महंगाई से राहत देगा। उद्योग मंडल ने कहा, ‘इस साहसिक निर्णय के लिये सरकार की सराहना की जानी चाहिए। हालांकि इससे सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।’ (एजेंसी)

First Published: Wednesday, July 3, 2013, 23:16

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