Last Updated: Tuesday, July 23, 2013, 20:29

नई दिल्ली : गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के राजकाज के आलोचक रहे नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्यसेन ने कहा है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और अल्पसंख्यक अधिकारों के मामले में पीछे रहने के बावजूद कारोबार और ढांचागत सुविधाओं के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने वाले गुजरात से भी सीख ली जा सकती है। सेन ने इसके साथ ही यह भी कहा है कि केरल, तमिलनाडु और यहां तक कि हिमाचल प्रदेश से इससे भी बड़ी सीख ली जा सकती है। उन्होंने कहा कि सबसे तेजी से जिस राज्य में बदलाव दिखाई दे रहा है वह केरल है।
सेन ने कल शाम यहां अपनी नई पुस्तक को विमोचन करते हुये कहा, यहां पूरी तरह से विविधतापूर्ण अनुभव दिखाई देते हैं। यहां कारोबार के क्षेत्र में गुजरात जैसे कुछ बहुत अच्छे अनुभव मिलते हैं तो वहीं उसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, स्त्री पुरष समानता और इससे जुड़ी सार्वजनिक नीतियों में काफी खराब रिकार्ड भी जुड़ा है। सेन ने लेखक और अर्थशास्त्री जॉन ड्रेजे के साथ मिल कर लिखी गयी अपनी नई पुस्तक में आधुनिक भारत के उपलब्धियों पर गौर किया है। इसमें दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र को सफलता के साथ बनाये रखने का उल्लेख है तो दूसरी तरफ इस बात को लेकर बहस भी छेड़ी है कि देश की विकास रणनीति मूलरूप से ही दोषपूर्ण दिखाई देती है।
लेखक ने पुस्तक में इस बात को रेखांकित किया है कि भारत ने मानव क्षमता की केंद्रीय भूमिका को नजरदांज किया है- और यह उपक्षा इसके अपने आप में लक्ष्य तथा प्रगति के साधन दोनों रूपों में की गयी है। सेन ने इस मामले में केरल का उल्लेख करते हुये कहा कि इस राज्य ने शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के मामले में अच्छा काम किया है और आज भारत के धनी राज्यों में से एक है।
अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार से सम्मानित सेन का कहना है कि यह भारत के प्रत्येक हिस्से से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है, यहां हर हिस्से से एक सबक मिलता है। यहां तक कि गुजरात में भी यह सही साबित होता है। हम गुजरात से भी कुछ सबक ले सकते हैं, इस राज्य का हालांकि, अल्पसंख्यकों में सुरक्षा की भावना और धर्मनिरपेक्षता के रास्ते पर चलने के मामले में रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है। लेकिन बाजार एवं आर्थिक विस्तार के क्षेत्र में यहां भी सीखने के लिये कुछ है। सेन के समावेशी वृद्धि के आर्थिक माडल की एक अन्य ख्यातिप्राप्त अर्थशास्त्री जगदीश भगवती कटु आलोचना करते रहे हैं। सेन के माडल में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं पर सरकार से बड़े पैमाने पर खर्च की अपेक्षा रहती है।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जगदीश भगवती जिस आर्थिक मॉडल की बात करते हैं उसके अनुसार केवल उच्च आर्थिक वृद्धि के जरिये ही गरीबी कम की जा सकती है।
पुस्तक विमोचन समारोह में सेन ने भगवती को आड़े हाथों लिया। सेन ने कहा कि उन्होंने धन के पुनर्वितरण की हिमायत कभी नहीं की जिसका मतलब होता है अमीर से ले कर गरीब को दो। उन्होंने कहामैं धनी लोगों से लेकर संसाधनों को गरीबों में वितरित करने के पुनर्वितरण की बात नहीं करता हूं, मैंने इसके बारे में कभी नहीं कहा, गरीबों को अगर कुछ चाहिये तो उनहें शिक्षा, स्वास्थ्य, साक्षरता के क्षेत्र में सार्वजनिक सेवायें उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता है।
अर्थशास्त्री ने कहा कि इसकी काफी कुछ संभावना रहती है कि पत्रकार उन्हें ठीक से नहीं समझ पाते। मैं अब इस सच्चाई का अभ्यस्त हो चुका हुं कि मैं किसी बैठक में क्या कहता हूं, अगले दिन मुझे समाचारपत्र में यह शीषर्क दिखाई देता है कि ‘अमत्ये सेन ने कहा कि आर्थिक वृद्धि उपयुक्त नहीं है। आर्थिक वृद्धि महत्वपूर्ण है लेकिन हम इस बात को लेकर भी काफी चिंतित हैं कि वृद्धि कैसे हासिल हुई। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, July 23, 2013, 20:29