Last Updated: Tuesday, August 13, 2013, 15:36

मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को केंद्रीय बैंक के नियमन के दायरे से बाहर लेकर उन्हें एकीकृत वित्तीय प्राधिकरण के तहत लाने के प्रति आगाह किया है।
सुब्बाराव ने कहा कि इस तरह कदम वित्तीय स्थिरता की अवधारणा के खिलाफ है और इससे मौद्रिक नीति का असर कम होगा।
गवर्नर ने कहा कि बैंकों, एनबीएफसी तथा अन्य जमा लेने वाली इकाइयों के बीच अंतर संबंध होता है। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति को प्रभावी रखने तथा वित्तीय बाजार को स्थिर रखने के लिए इनका नियमन केंद्रीय बैंक द्वारा किया जाना चाहिए।
सुब्बाराव ने यहां उद्योग मंडल फिक्की द्वारा आयोजित दो दिन के सालाना बैंकिंग सम्मेलन ‘एफआईबीएसी’ को संबोधित करते हुए कहा, ‘एक ही नियामक रिजर्व बैंक द्वारा एकीकृत नियमन जरूरी है, क्योंकि बैंकों और जमा लेने वाली गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के बीच मजबूत अंतर संबंध होता है। इसके अलावा मौद्रिक नीति को प्रभावी रखने, बैंकों के ऋण सृजन के लिए एनबीएफसी जैसे संस्थानों का नियमन केंद्रीय बैंक द्वारा किया जाना चाहिए।’
इस तरह के कदम के प्रति अपनी आपत्ति की वजह बताते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि 2008 के वित्तीय संकट की वजह गैर बैंकों या छद्म बैंकों की ऋण गतिविधियां थीं, जो नियमन के दायरे से बाहर थे। उन्होंने कहा कि इसी वजह से वह चाहते हैं कि रिजर्व बैंक बैंकों और गैर बैंकिंग इकाइयों दोनों का नियमन करे। सुब्बाराव का पांच साल का कार्यकाल 4 सितंबर को पूरा हो रहा है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, August 13, 2013, 15:36