Last Updated: Saturday, September 7, 2013, 15:35
सेंट पीटर्सबर्ग : समूह 20 के नेताओं ने वैश्विक व्यापार और निवेश के रास्ते में आने वाली अड़चनों और रुकावटों को दूर करने का संकल्प दोहराया है। जी20 देशों ने इस दिशा में प्रगति की समयसीमा 2016 तक बढ़ा दी। विकसित और विकासशील देशों के इस समूह की यहां हुई दो दिवसीय बैठक में इस बात को स्वीकार किया गया कि संरक्षणवाद से आर्थिक मंदी और व्यापार में कमी का जोखिम बढ़ा है।
सम्मेलन की समाप्ति पर जारी 27 पृष्ठ के घोषणापत्र में सभी देशों ने नये संरक्षणवादी उपायों को वापस लेने का अपना संकल्प दोहराया है। जी20 के नेताओं ने संकल्प लेते हुये कहा है इस संकल्प के साथ हम विश्व व्यापार संगठन के जरिये संरक्षणवादी गतिविधियों में और कमी लाने पर जोर देते हैं। जी20 ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सभी सदस्यों को मौजूदा मतभेदों को समाप्त कर व्यापार सुविधाओं और कृषि एवं विकास जैसे कुछ मुद्दों पर लचीलापन दिखाते हुये दिसंबर में बाली में होने वाली डब्ल्यूटीओ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में संतुलित और सकारात्मक परिणाम पर पहुंचने का आह्वान किया है।
घोषणापत्र में कहा गया है इससे दोहरा विकास एजेंडा को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी और यह बहुपक्षीय व्यापार के उदारीकरण में महत्वपूर्ण कदम होगा। बाली सम्मेलन में बनने वाली इस सहमति से बाद के सम्मेलनों में नये विश्वास का माहौल बनेगा।
घोषणापत्र में जी20 ने संकल्प लिया है कि वह घरेलू आर्थिक वृद्धि के लिये जो भी नीतियां अपनायेंगे वह वैश्विक वृद्धि और वित्तीय स्थिरता को भी समर्थन देने वाली होंगी। वह इस बात का ध्यान रखेंगे कि उनकी नीतियों का असर दूसरे देशों पर नहीं पड़े। शिखर सम्मेलन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस विचार से सहमति जताई कि विकसित देशों में वर्ष 2008 के आर्थिक संकट के बाद जारी मौद्रिक प्रोत्साहन नीतियों से वापसी का रास्ता दुनिया के दूसरे देशों का ध्यान रखते हुये व्यवस्थित ढंग से तय किया जाना चाहिये।
घोषणापत्र में कहा गया है, पिछले पांच साल में जी20 की समन्वित कारवाई वित्तीय संकट से निपटने और विश्व अर्थव्यवस्था को सुधार के रास्ते पर लाने में काफी महत्वपूर्ण रही। इसमें कहा गया है लेकिन हमारा काम अभी पूरा नहीं हुआ है, जी20 देशों को आधुनिक इतिहास के इस सबसे बड़े और लंबे संकट से निकलने का टिकाउ हल तलाशना होगा और इसके लिये संयुक्त प्रयास करने होंगे। घोषणापत्र में दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि की नींव मजबूत करते हुये दुनिया में आर्थिक सुधारों के लिये गतिविधियां तेज करने को कहा गया है। उच्च आर्थिक वृद्धि और रोजगार के अवसर पैदा करने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि दूसरे देशों को नुकसान पहुंचाकर वृद्धि हासिल करने वाली नीतियों से बचा जाना चाहिये।
गैर-परंपरागत मौद्रिक नीति सहित मौद्रिक नीतियों में तालमेल बिठाने की नीति से हाल के वषोर्ं में वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को जो समर्थन मिला है हम उसकी पुष्टि करते हैं और मौद्रिक नीतियों को वापस लेने के जोखिम और नकारात्मक प्रभावों के प्रति हम सजग बने रहेंगे।
घोषणा पत्र में कहा गया है, हम दोहराते हैं कि वित्तीय प्रवाह और विनिमय दर में अत्यधिक उतार चढाव आर्थिक और वित्तीय स्थायित्व पर बुरा असर डाल सकता है जैसा कि हाल में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के देशों में देखा गया। जी20 देशों ने एक बार फिर बाजार आधारित विनिमय दर प्रणाली की तरफ और तेजी से बढ़ने के प्रति प्रतिबद्धता जताई और कहा कि यह तत्कालीन बुनियादी कारकों को परिलक्षित करने वाली होनी चाहिये। इसमें अधिक विसंगति से बचा जायेगा।
उन्होंने कहा कि वह आपसी प्रतिस्पर्धा के तहत मुद्राओं के ज्यादा से अवमूल्यन नहीं करेंगे और किसी खास विनिमय दर के लक्ष्य को लेकर काम नहीं करेंगे। सभी तरह की संरक्षणवादी गतिविधियों से दूर रहेंगे और बाजारों को खुला रखा जायेगा।
जी20 नेताओं ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष आठ मुख्य चुनौतियों की पहचान की। ये हैं : कमजोर वृद्धि, विशेष कर युवावर्ग मे उच्च बेरोजगारी को देखते हुये कई देशों में अधिक समावेशी आर्थिक वृद्धि की आवश्यकता।
: यूरोप में वित्तीय बाजार के बिखराव के मद्देनजर बैंकिंग यूनियन को निर्णायक ढंग से लागू करने की चुनौती ।
: दुनिया की कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाओं में धीमी वृद्धि। कुछ मामलों में इसकी वजह पूंजी प्रवाह में उतार चढाव, कठिन वित्तीय परिस्थिति और उपभोक्ता वस्तुओं के दाम में घटबढ तथा ढांचागत चुनौतियों है।
: आंतरिक जटिलताओं और आंशिक तौर पर बाजार में अनिश्चितता के चलते कई देशों में निजी निवेश उम्मीद से कम।
: कुछ देशों में उंचा लोक रिण और उसकी वहनीयता पर ध्यान देने की जरूरत। विशेषतौर पर उन देशों में जहां सकल घरेलू उत्पाद के समक्ष अनुमानित और वास्तविक रिण काफी उंचा है, उनमें अगले कुछ सालों में सुधारों को समर्थन दिया जाना चाहिये।
: विकसित देशों में आर्थिक वृद्धि में मजबूती आने के साथ पूंजी प्रवाह में उतार चढाव और मौद्रिक नीति में बदलाव की संभावना।
: वैश्विक मांग की स्थिति अभी पूरी तरह से संतुलित नहीं है, और : वित्तीय नीतियों पर परिचर्चा को लेकर अनिश्चितता बरकरार घोषणापत्र में कहा गया है कि इन चुनौतियों का हल ढूंढना होगा ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत, टिकाउ और संतुलित वृद्धि के रास्ते पर लाया जा सके। (एजेंसी)
First Published: Saturday, September 7, 2013, 15:35