Last Updated: Monday, February 20, 2012, 09:02
वाशिंगटन: अमेरिका के एक पूर्व राजनयिक ने कहा है कि अमेरिका जहां एक तरफ ईरान को अलग-थलग करने के लिये अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट करने में लगा है वहीं ईरान से तेल आयात जारी रखने का भारत का फैसला अमेरिका के मुंह पर तमाचा है।
अमेरिका के राजनीतिक मामलों के पूर्व उप विदेश मंत्री निकोलस बर्न्स ने समसामयिक पत्रिका द डिप्लोमैट में लिखा है, ‘हम जैसे उन लोगों के लिये यह दुखद खबर है जिन्होंने भारत के साथ संबंध बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। यह पिछले तीन अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रयासों को भी झटका है जिन्होंने भारत सरकार के साथ करीबी तथा रणनीतिक संबंध स्थापित करने की कोशिश की।’ भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार को अमली जामा पहनाने में बर्न्स बुश प्रशासन के प्रमुख सूत्रधार थे।
पत्रिका में आज प्रकाशित लेख में बर्न्स ने कहा है, ‘‘ईरान मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ भारत का अलग रूख अपनाना अमेरिका के मुंह पर न केवल तमाचा है बल्कि यह अमेरिका की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़ा करता है।’ भारत ने ईरान से तेल आयात कम करने से मना कर दिया। वह अपने कुल तेल आयात में से 12 प्रतिशत के लिये ईरान पर निर्भर है।
हाल ही में बर्न्स ने द बोस्टन ग्लोब में अपने लेख में यह दलील दी थी कि अमेरिका को भारत के साथ महत्वकांक्षी, दीर्घकालीन रणनीतिक संबंधों को लेकर प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।
उन्होंने लिखा था, ‘मैं दोनों देशों के लिये इसके महत्व को समझता हूं।’ बर्न्स ने कहा ‘ईरान मामले में भारत का असहयोगी रवैया, अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते के क्रियान्वयन में गतिरोध और इसके बाद अब भारत सरकार सक्रिय तौर पर अमेरिका के साथ जो रणनीतिक रिश्ते बनने चाहिये थे उसमें भी बाधा खड़ी कर रही है।’
बर्न्स ने कहा कि राष्ट्रपति बराक ओबामा तथा पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने कई मौकों पर भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिये अपनी प्रतिबद्धतायें जताई लेकिन दुर्भाग्य से भारत ने ओबामा और बुश की पेशकश के जवाब में वैसी गर्मजोशी नहीं दिखाई।
(एजेंसी)
First Published: Tuesday, February 21, 2012, 12:29