'दरों में कमी राजकोषीय घाटे पर निर्भर' - Zee News हिंदी

'दरों में कमी राजकोषीय घाटे पर निर्भर'



नई दिल्ली : वृद्धि दर को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण सस्ता करने की मांग के बीच योजना आयोग ने शुक्रवार को कहा कि रिजर्व बैंक की ब्याज दर को कम करने की कोई भी पहल मुख्य तौर पर सरकार की राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने की क्षमता पर निर्भर करेगी।

 

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने यहां एसोचैम के सम्मेलन में कहा कि ब्याज दर मुख्य तौर पर इस पर निर्भर करेगा कि राजकोषीय घाटे का क्या होता है। चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.6 फीसदी के बराबर होने की उम्मद है जबकि बजट में अनुमान लगाया गया था कि यह जीडीपी के 4.6 फीसद के बराबर होगा।

 

केंद्रीय बैंक ने 24 जनवरी को मौद्रिक नीति की पिछली तिमाही समीक्षा में नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) आधा फीसद घटाकर 5.5 फीसदी कर दिया था। इससे बैंकों के पास रिण देने के लिए अनिरिक्त 32,000 करोड़ रुपए की नकदी मिल गई थी। आरबीआई में मार्च 2010 के बाद से प्रमुख ब्याज दरों में 13 बार बढ़ोतरी कर चुका है।
अहलूवालिया ने यह भी कहा कि भारत में दीर्घकालिक ब्याज दरों का निर्णय इस आधार पर होगा कि राजकोषीय घाटे का क्या होता है और विदेश से आने वाले धन की स्थिति क्या होती जिससे आम नकदी प्रभावित होगी।

 

उन्होंने बढ़ते चालू खाते का घाटे (कैड) पर चिंता जाहिर की और कहा, क्या भारत जीडीपी के तीन फीसद के बराबर कैड का बोझ वहन कर सकता है जो 15 अरब डालर के सालाना प्रवाह के बराबर है?  चालू खाते का घाटा विदेशों के साथ दैनिक लेन देन में धन की कमी को दर्शाता है जो इस साल जीडीपी के 3.6 फीसदी तक जा सकता है। अहलूवालिया ने कहा कि अब विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) जैसे सभी स्रोतों से आने वाला धन चालू खाता घाटे की भरपाई करेगा। अभी ऐसी इसकी संभावनाओं पर फैसला नहीं किया जा सकता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत अधिक अनिश्चितता है।

 

चालू खाते का घाटा बढने के बारे में इसी तरह की चिंता इससे पहले बुधवार को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष सी रंगराजन ने भी इसी तरह का विचार व्यक्त किया है और कहा कि इसे दो से ढाई फीसद तक सीमित रखना चाहिए।

(एजेंसी)

First Published: Friday, February 24, 2012, 20:12

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