Last Updated: Friday, August 19, 2011, 11:46
बेंगलूरु : इन्फोसिस को महज 20 साल में विश्व की शीर्ष आईटी कंपनियों में शुमार करने वाले एन आर नारायण मूर्ति शनिवार को कंपनी के अध्यक्ष पद से मुक्त होंगे. हालांकि उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि वह संगठन को दिशानिर्देश देने के लिए उपलब्ध होंगे. मूर्ति अपनी भूमिका केवी कामत को सौंपेंगे जो मई 2009 से इन्फोसिस के निदेशक मंडल में स्वतंत्र निदेशक के तौर पर नियुक्त हैं.
एस डी शिबूलाल कंपनी के नए मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक होंगे और एस गोपालकृष्णन इन्फोसिस के कार्यकारी सह अध्यक्ष होंगे. कंपनी के मौजूदा मुख्य कार्याधिकारी जो कंपनी के सह संस्थापक भी हैं, को कार्यकारी सह-अध्यक्ष के तौर पर प्रोन्नत किया गया है. अध्यक्ष के तौर पर मूर्ति का मुक्त होना कंपनी से उनके औपचारिक संबंध खत्म होने जैसा होगा लेकिन वह मानद चेयरमैन के तौर पर संगठन का दिशानिर्देश देते रहेंगे.
मूर्ति ने इससे पहले कहा ‘मैं मानद चेयरमैन कहलाऊंगा. मेरे पास एक कमरा होगा और यदि मैं चाहूं तो इसका मैं उपयोग कर सकता हूं, लेकिन शिष्टाचार के लिहाज से मेरा किसी भी मुद्दे पर कोई दखल नहीं होगा.
नारायण मूर्ति ने 1981 में छह अन्य इंजीनियरों के साथ मिलकर पुणे में इन्फोसिस की स्थापना की थी और अपने स्टाक विकल्प योजनाओं के जरिए हजारों को करोड़पति बनाया. कुल 10 बटा 10 क्षेत्रफल के कमरे और मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति से उधार लिए गए 10,000 रुपए के निवेश से इन्फोसिस की शुरूआत हुई थी. अब इसकी आय बढ़कर 27,000 करोड़ रुपए हो गई.
मूर्ति 21 साल तक इन्फोसिस के संस्थापक मुख्य कार्याधिकारी रहे और इसके बाद मार्च 2002 में सह-संस्थापक नंदन निलेकणि ने उनकी जगह ली.
20 अगस्त, 1946 को कर्नाटक में जन्मे मूर्ति ने 1967 में मैसूर विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री (बीई) ली. वे भी एम टेक करने 1969 में आईआईटी कानपुर गए.
मूर्ति की सोच और कारोबारी समझ ने कंपनी को नई उंचाई तक पहुंचाया। 1983 में इन्फोसिस भारतीय बाजार में सूचीबद्ध हुई और बाद में 1999 में न्यूयार्क के नस्दक में सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय कंपनी बनी. मूर्ति के बारे में टाइम मैगजीन ने कहा ‘‘ यदि किसी को भारत के फलते-फूलते आईटी क्षेत्र का जनक कहा जा सकता है तो वह एन आर नारायण मूर्ति हैं जिन्होंने छह अन्य सॉफ्टवेयर इंजीनियर के साथ मिलकर 1981 में इन्फोसिस टेक्नोलाजी की स्थापना की थी.’
मूर्ति को सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का भी मौका मिला लेकिन उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शामिल होने की पेशकश ठुकरा दी. उन्हें तब यह लगा था कि इन्फोसिस को उनकी ज्यादा जरूरत है. अब वे अपनी उर्जा अगली पीढी के भारतीय उद्यमियों को संवारने और उन्हें मदद करने पर केंद्रित करना चाहते हैं.
First Published: Friday, August 19, 2011, 17:17