Last Updated: Monday, July 30, 2012, 16:18

नई दिल्ली: मुद्रास्फीति की उंची दर के साथ साथ अब मानसून की कमी को देखते हुये रिजर्व बैंक के लिये ब्याज दरों में कटौती का कदम उठाना मुश्किल हो सकता है। अर्थव्यवस्था में गतिविधियां बढ़ाने के लिये नीतिगत दरों में कटौती को जरुरी माना जा रहा है। उद्योग जगत रिजर्व बैंक से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद लगाये बैठा है।
हालांकि, बैंकरों को उम्मीद है कि आरबीआई कल होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में आरक्षित नकद अनुपात में आधा फीसद कमी कर सकता है लेकिन उंची मुद्रास्फीति को देखते हुये केंद्रीय बैंक के लिए उद्योग की मांग पर ध्यान देना संभव नहीं लगता। मुद्रास्फीति सात फीसद से उपर है जो कि इसके संतोषजनक स्तर से काफी उपर है।
इसके अलावा बारिश की अनिश्चितता से आवश्यक जिंसों की कीमत पर दबाव पड़ सकता है। देश में औसतन बारिश अब तक 21 फीसद कम हुई है।
आरबीआई गवर्नर डी. सुब्बाराव मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा पेश करेंगे और यदि उनके मुद्रास्फीति, राजकोषीय व चालू खाता के घाटे के बारे में दिए गए हाल के बयानों को संकेत माना जाए तो इस बार कुछ ज्यादा फेर-बदल की गुंजाइश नहीं है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर नौ साल के न्यूनतम स्तर 6.5 फीसद रही है जबकि थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति जून में 7.25 फीसद रही। खुदरा मुद्रास्फीति 10.02 फीसद के आस-पास है।
आरबीआई ने 16 जून को हुई बैठक में मुख्य दरें और सीआरआर अपरिवर्तित रखी। इस बीच सुब्बाराव ने हाल ही में कहा था कि केंद्रीय बैंक उच्च ब्याज दरों और वृद्धि में नरमी के बीच संबंध का अध्ययन करेगा।
इधर, बैंकों ने कहा कि उन्हें सीआरआर में आधा फीसद कमी की उम्मीद है जो फिलहाल 4.75 फीसद है। हालांकि, रेपो दर में कमी की उम्मीद नहीं है जो आठ फीसद है। (एजेंसी)
First Published: Monday, July 30, 2012, 16:18