Last Updated: Tuesday, July 31, 2012, 13:32

मुंबई: रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई जारी रखते हुये नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है पर बैंकों के पास नकदी की स्थिति में सुधार लाने के लिये बैंकों पर सरकारी प्रतिभूतियों में अनिवार्य निवेश की न्यूनतम सीमा को उनकी जमाओं के एक प्रतिशत घटा दिया है।
रिजर्व बैंक ने ऋण एवं मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा करते हुये आज चालू वित्त वर्ष के आर्थिक वृद्धि के अनुमान को घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया जो पहले 7.3 प्रतिशत रखा गया था।
केंद्रीय बैंक ने सांविधिक तरलता अनुपात को एक प्रतिशत घटाकर 23 प्रतिशत कर दिया। एसएलआर के तहत बैंकों को अपनी जमा का एक हिस्सा ऐसे सरकारी बांडों में निवेश करना कानूनी तौर पर अनिवार्य होता है जिन्हें जब मर्जी हो नकदी में भुनाया जा सकता है। रिजर्व बैंक द्वारा इसमें कमी लाने से बैंकों के पास अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी। यह व्यवस्था 11 अगस्त से प्रभावी होगी।
रिजर्व बैंक ने बैंकों को अल्पकालिक उधार वाली रेपो दर को 8 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। इसके अनुसार रिवर्स रेपो दर 7 प्रतिशत के पूर्ववत स्तर पर बनी हुई है। बैंकों के नकद आरक्षित अनुपात में भी कोई बदलाव नहीं किया गया और यह 4.75 प्रतिशत पर रखा गया है। सीआरआर में बैंकों को अपनी कुल जमा का यह अनुपात नकदी के तौर पर रिजर्व बैंक के पास जमा रखना होता है।
रिजर्व बैंक गवर्नर सुब्बाराव ने पहली तिमाही समीक्षा में कहा ‘निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था को सतत् उच्च आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर आने के लिये मौद्रिक नीति का ध्यान फिलहाल मुद्रास्फीति पर है । इस समय नीतिगत दरों को कम करने से आर्थिक वृद्धि को जरुरी प्रोत्साहन नहीं बल्कि मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ेगा।’ बैंक ने हालांकि, एसएलआर को कम किया है लेकिन इससे स्थिति में ज्यादा बदलाव आने की उम्मीद नहीं है क्योंकि बैंकों की एसएलआर होल्डिंग्स पहले ही 30 प्रतिशत के आसपास है।
रिजर्व बैंक ने इससे पहले 16 जून को जारी मध्य तिमाही समीक्षा में भी ब्याज दरों में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया था।केन्द्रीय बैंक ने मौद्रिक समीक्षा में यूरो क्षेत्र के बाहरी जोखिम और अमेरिका में वित्तीय खींचतान के अलावा उपभोक्ता मूल्यों को लेकर छाई अनिश्चितता, मानसून की कमी और चालू खाते के साथ साथ वित्तीय घाटा मौद्रिक नीति के लिये जोखिम बने हुये हैं।
केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि घरेलू बचत के जरिये वित्तीय घाटे को पूरा करने से निजी क्षेत्र का निवेश कम होता जायेगा और इससे आर्थिक वृद्धि भी प्रभावित होगी। समाप्त वित्त वर्ष 2011-12 में चालू खाते का घाटा पिछले 30 साल के उच्चस्तर 4.2 प्रतिशत पर पहुंच गया। एक साल पहले 2010.11 में यह 2.7 प्रतिशत पर था।
जहां तक वित्तीय घाटे की बात है सरकार राजकोषीय घाटे को भी 4.6 प्रतिशत के बजट में अनुमानित लक्ष्य के दायरे में नही रख पाई और यह बढ़कर 5.9 प्रतिशत तक पहुंच गया। रिजर्व बैंक ने सरकार को सलाह दी है कि उसे उर्वरक और ईंधन सब्सिडी को नियंत्रण करते हुये उसे जीडीपी के दो प्रतिशत के दायरे में रखना चाहिये।
केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि वह बाजार में नकदी की स्थिति को संतोषजनक बनाये रखने के लिये खुले बाजार में हस्तक्षेप करता रहेगा। बैंक ने पहली तिमाही में वित्तीय तंत्र में 86,000 करोड़ रुपये की नकदी डाली। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, July 31, 2012, 13:32