Last Updated: Thursday, July 5, 2012, 18:58

सिंगापुर: भारत का आर्थिक संकट मुख्य तौर पर खुद पैदा किया हुआ है जो नीतिगत फैसले लेने में असमर्थता और सुधार के कारण सामने आया है। इस स्थिति में बदलाव 2014 में होने वाले आम चुनाव से पहले संभव नहीं है।
वैश्विक वृहत्-आर्थिक अनुसंधान परामर्श संस्था कैपिटल इकानामिक्स की रपट में कहा गया है, ‘स्थिति में बहुत जल्दी सुधार हुआ तो भी 2014 में होने वाले आम चुनाव से पहले नहीं होगा।’ रपट में 2014 के बाद भी सुधार होगा या नहीं इस बारे में संदेह प्रकट किया गया है।
इसमें कहा गया कि भारत का आर्थिक प्रदर्शन बहुत कम हुआ है क्योंकि इस साल की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 5.3 फीसद के नौ साल के निम्नतम स्तर पर आ गई है। रपट में कहा गया है कि भारत की समस्या के लिए वैश्विक माहौल में नरमी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
इसमें कहा गया ‘‘हमारा मानना है कि पहली तिमाही में वृद्धि दर सालाना आधार पर पांच फीसद से बहुत नीचे चली गई।’ नरमी में प्रमुख भूमिका निवेश में गिरावट की रही जो पिछली तीन तिमाहियों में सालाना स्तर पर घटकर शून्य से 1.9 फीसद कम हो गया जबकि 2010 की आखिरी तिमाहियों में निवेश दहाई अंक के स्तर पर था। वृद्धि की संभावना भी कम है।
कंपनी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष के दौरान 6.3 फीसद की वृद्धि पर आम सहमति बनी है जबकि इस साल की शुरूआत में 7.8 फीसद की वृद्धि दर का अनुमान जाहिर किया गया था।
रपट में कहा गया ‘ वृद्धि कम होने के साथ भारत का राजकोषीय घाटा बढ़ गया है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 फीसद तक और चालू खाते का घाटा 3.7 फीसद के बराबर हो गया है।’ हालांकि थोकमूल्य आधारित मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन अब भी यह 7.5 फीसद पर है जो बहुत उंचा स्तर है। (एजेंसी)
First Published: Thursday, July 5, 2012, 18:58