Last Updated: Sunday, April 22, 2012, 07:29
नई दिल्ली : आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार रिजर्व बैंक ने आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये ब्याज दरों में आधा फीसद कमी कर ‘बोल्ड’ कदम उठाया है लेकिन इस रफ्तार पर ब्रेक का झटका नहीं लगे इसके लिये सरकार के स्तर पर राजकोषीय घाटे को कम करने और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित कर महंगाई पर अंकुश रखना जरुरी है।
रिजर्व बैंक ने 17 अप्रैल को जारी वाषिर्क मौद्रिक नीति में अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने और वित्तीय लागत कम करने के उद्देश्य से बैंकों के साथ लेनदेन की रेपो और रिवर्स रेपो दरों में आधा प्रतिशत कटौती कर दी। केन्द्रीय बैंक के इस कदम के बाद बैंकों ने कर्ज पर ब्याज दरों में कमी के साथ सावधि जमा पर भी ब्याज दर में कमी लानी शुरु कर दी।
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम के बैंकिंग एवं वित्तीय क्षेत्र के वरिष्ठ सलाहकार ज्योतिर्मय जैन ने भाषा से कहा ‘कर्ज काफी महंगा हो गया, इससे उद्योगों की लागत काफी बढ़ गई, आर्थिक वृद्धि पर भी इसका असर हुआ, इसलिये रिजर्व बैंक ने बोल्ड कदम उठाया है, लेकिन इसके साथ ही सरकार के स्तर पर राजकोषीय मजबूती के लिये सरकारी खर्च पर अंकुश लगाना जरुरी है। बढ़ती सब्सिडी चिंता का विषय है।’
पीएचडी वाणिज्य एवं उद्योग मंडल के मुख्य अर्थशास्त्री एस.पी. शर्मा ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा ‘‘रिजर्व बैंक का कदम स्वागत योग्य है, रेपो दरें घटने और ब्याज दरों में कमी से कारोबारी धारणा में सुधार होगा, लेकिन मुद्रास्फीति को लेकर अभी भी चिंता बरकरार है। प्रोटीन आधारित खाद्य पदार्थ जैसे दूध, अंडा, मीट, मछली के दाम काफी उंचे हैं, सब्जियां भी महंगी हैं। ऐसे में खाद्य मुद्रास्फीति का खतरा बरकरार है, इस पर ध्यान देने की जरुरत है।
पूंजी बाजार विशेषज्ञ अशोक कुमार अग्रवाल का कहना है ‘ रिजर्व बैंक ने रेपो दर को आधा प्रतिशत कम करके सचमुच चकित किया है, इससे खराब धारणा में बदलाव आयेगा, लागत उंची हो रही थी, ब्याज दर घटने से रीएल्टी, आटो और दूसरे क्षेत्रों को राहत मिलेगी। (एजेंसी)
First Published: Sunday, April 22, 2012, 12:59