Last Updated: Thursday, October 27, 2011, 14:49
नई दिल्ली : घरेलू मांग भारतीय अर्थव्यवस्था की काफी मदद कर रही है लेकिन यूरोप के ऋण संकट और अमेरिका के आर्थिक हालात में सुधार की लड़खड़ाती स्थिति से मिल रहे संकेत चिंताजनक हैं।
उद्योग संगठन ऐसोचैम ने गुरुवार को कहा कि हालांकि दूसरी तिमाही के नतीजों से संकेत मिलता है कि भारतीय कंपनियों की स्थिति अच्छी है लेकिन वैश्विक वित्तीय संकट कै फैलाव से विकासशील देशों में वृद्धि पर दबाब की आशंका बढ़ रही है।
विभिन्न क्षेत्रों की 87 कंपनियों के दूसरी तिमाही के नतीजो से स्पष्ट है कि घरेलू खपत पर भी उच्च ब्याज दर और कच्चे माल की बढ़ती लागत का असर पड़ रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक मार्च 2010 से लगातार सख्त मौद्रिक नीति के रास्ते पर चल रहा है और तब से अब तक ब्याज दरों में पौने चार फीसदी बढ़ोतरी की जा चुकी है।
ऐसोचैम ने कहा कि इसके अलावा नए निवेश को सरकार की आरे से मंजूरी मिलने में देरी होती है। ऐसोचैम महासचिव डी एस रावत ने कहा, कुछ दीर्घकालिक चिंता है जिस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, आईटी और आईटी से जुड़ी दूसरी सेवाओं का कारोबार करने वाली कंपनियों के अमेरिका और यूरोप के साथ होने वाले कारोबार में गिरावट के स्पष्ट संकेत नहीं हैं लेकिन कीमतें या तो गिरी हैं या फिर स्थिर बनी हुई हैं। उद्योग संगठन ने कहा कि यूरोप की वृहत्-आर्थिक मुश्किलें भारतीय कंपनियों पर दबाव डाल रही हैं।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, October 27, 2011, 20:21