Last Updated: Sunday, July 15, 2012, 18:53
नई दिल्ली : यूरोप का मौजूदा ऋण संकट बैंकों की अति सक्रियता और जरूरत से अधिक कर्ज के कारण पैदा हुआ है और यह भारत के लिए एक सबक है। प्रमुख उद्योग मंडल एसोचैम की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, यह बात अब कही जा रही है कि बहुत ज्यादा वित्त वृद्धि के लिए अनुकूल नहीं है। निचले स्तर पर बड़े आकार की वित्तीय प्रणाली उच्च उत्पादकता को बढ़ावा देती है लेकिन एक समय के बाद ज्यादा बैंकिंग तथा ऋण, वृद्धि को धीमा करता है।
सरकार हालांकि, वित्तीय समावेशी पर ज्यादा जोर दे रही है लेकिन अध्ययन में इसको लेकर सरकार को आगाह भी किया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत अधिक उधार, सीमा से अधिक नकदी, बहुत अधिक जटिलता तथा बहुत अधिक लालच सभी यूरोपीय संकट के लिए जिम्मेदार हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि सामाजिक सुरक्षा के संदर्भ में पश्चिमी तथा भारतीय अर्थव्यवस्थाओं का तुलना करना दिलचस्प है।
रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी देशों में काफी अधिक सामाजिक सुरक्षा से इन देशों में बचत न के बराबर है और इससे ऐसे जीवन को प्रोत्साहन मिला जो उनके साधन से बाहर है।
एसोचैम के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप उन देशों में निवेश कम हुआ तथा सरकार का राजस्व घटा।
रिपोर्ट के अनुसार हालांकि विकसित देशों का इरादा सही था लेकिन वे उच्च कर्ज तथा कम वृद्धि के जाल में फंस गये। पर भारत में उच्च बचत है जो देश की प्रमुख ताकत है। पर उसकी समस्या राजकोषीय घाटा, उच्च मुद्रास्फीति, रुपये पर दबाव तथा कर्ज की लागत है। इन सबके कारण आर्थिक वृद्धि की गति धीमी हुई है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 15, 2012, 18:53