Last Updated: Tuesday, September 3, 2013, 19:19

मुंबई : रुपये में जारी गिरावट और आर्थिक सुस्ती के बीच रघुराम राजन वृहस्पतिवार को रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभालेंगे। पद संभालते ही उन्हें उंची मुद्रास्फीति और सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था की समस्या से जूझना होगा।
वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री, 50 वर्षीय राजन, दुव्वुरी सुब्बाराव से कार्य-भार ग्रहण करेंगे जिनका रिजर्व बैंक गवर्नर के पदा पर पांच साल का कार्यकाल कल समाप्त हो रहा है।
राजन पहले ही कह चुके हैं कि उनके पास देश की चुनौतियों से निपटने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है बल्कि वह उनसे एक-एक करके निपटेंगे।
सुब्बाराव के वृद्धि को दाव पर लगा कर मुद्रास्फीति नियंत्रण पर जोर देने की नीति में सरकार का बहुत अधिक दखल नहीं रहा। राजन ने कल वित्त मंत्रालय में अपने कार्यकाल के आखिरी दिन संवाददाताओं से कहा था, हमारे पास बहुत से विचार हैं। यह सिर्फ विदेशी विनिमय का सवाल नहीं है बल्कि वित्तीय समावेश और वृद्धि का सवाल है। मुझे लगता है कि हमें बहुत काम करना है। अर्थव्यवस्था में चुनौतियां हैं। इन चीजों में रातों रात काबू नहीं पाया जा सकता। कोई जादू की छड़ी नहीं है। लेकिन निश्चित तौर पर कई समस्याओं का समाधान है जिस पर आरबीआई काम कर सकता है। उन्होंने कहा, हम एक वक्त पर एक काम करेंगे। सुनिश्चित करना होगा कि हर रोज यह आगे बढ़े। पिछले साल अगस्त में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त राजन के पास आईएमएफ के कार्य करने का अनुभव भी है।
अपनी बेबाकी के लिए जाने जानेवाले राजन आरबीआई के 23वें गवर्नर होंगे। 2008 के वित्तीय संकट की भविष्यवाणी करके वे उन्होंने विश्व भर में प्रशंसा अर्जित की। उन्होंने 2005 में वित्तीय बाजारों के बारे में एक एक भाषण में उभरते वित्तीय संकट की आशंका जाहिर की थी जो 2008 में सच साबित हुई। प्रधानमंत्री के मानद आर्थिक सलाकार रहे राजन ने आईआईएम अहमदाबाद और आईआईटी-दिल्ली पढ़ाई की है। उन्होंने पिछले साल वित्त मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर कौशिक बसु की जगह ली थी। ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि राजन रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा के पक्ष में नहीं है हालांकि अगले महीने होने वाली मध्य-तिमाही समीक्षा होगी।
मुख्य रूप से सोने के आयात में कमी से पहली तिमाही में कैड में सुधार के कुछ संकेत मिले हैं। हालांकि सीरिया के घटनाक्रम के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ने के कारण इस फिर पर दबाव बढ़ेगा। सरकार और आरबीआई को मौजूदा वित्त वर्ष में चालू खाते के घाटे को कम कर 70 अरब डालर पर लाने के लिए जद्दो-जहद करनी पड़ेगी जो पिछले साल 88.2 अरब डालर पर था। कच्चे तेल के आयात में बढ़ोतरी का कैड पर दबाव होगा।
सुब्बाराव पांच साल के भारी चुनौतियों भरे कार्यकाल के बाद कल विदा हो रहे हैं । इस दौरान शुरू में ही वैश्विक वित्तीय संकट का भी दौर आया जससे प्रभाव से भारत को बचाना एक बड़ी चुनौती थी। उनकी सख्त मौद्रिक नीति की जहां कुछ लोगों ने आलोचना की और उसे आक्रामक बताया वहीं उनके प्रशंसकों ने कहा कि सुब्बा राव ने केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का प्रदर्शन करते हुए सरकार के सामने स्वतंत्र रप से विचार प्रस्तुत किये। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, September 3, 2013, 16:47