Last Updated: Thursday, May 9, 2013, 13:50

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने तेल कंपनी केयर्न इंडिया के अधिग्रहण के लिए अनिल अग्रवाल के नेतृत्व वाले वेदांता समूह और केयर्न के बीच 8.5 अरब डालर के सौदे में दखल देने से इंकार कर दिया है। न्यायालय ने सौदे के खिलाफ दायर जनहित याचिका खारिज कर दी है।
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और दीपक मिश्रा की पीठ ने गुरुवार को अपने निर्णय में कहा कि इस सौदे के बारे में भारत सरकार और सरकारी कंपनी ओएनजीसी ने जो फैसला किया, वह बाकायदा सोच विचार कर किया गया था। न्यायालय संबद्ध पक्षों के ऐसे व्यावसायिक निर्णय के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर सकता। न्यायालय ने यह भी कहा है कि इस सौदे के पीछे कोई इतर कारण नहीं है।
यह याचिका बेंगलूर के अरुण कुमार अग्रवाल की ओर से दायर की गयी थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि केयर्न समूह और ओएनजीसी के बीच अनुबंध में एक धारा यह भी थी कि यदि केयर्न समूह केयर्न इंडिया में अपने शेयर बेचना चाहेगा तो उसे इसकी पेशकश सबसे पहले ओएनजीसी से पूछना पड़ेगा, पर सरकार और ओएनजीसी ने अपने इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि इस सौदे के बारे में सार्वजनिक उपक्रम और सरकार का फैसला इतर कारणों से लिया गया और उसके सार्थक पहलुओं पर गौर नहीं किया गया।
अग्रवाल ने दावा किया था कि केयर्न के शेयर बेचने की पेशकश पर इंकार का पहला अधिकार (आरओएफआर) ओएनजीसी को था। ओएनजीसी के इंकार के बाद ही केयर्न समूह केयर्न इंडिया में अपने शेयर और पक्ष को बेच सकता था। केयर्न इंडिया ब्रिटेन के केयर्न एनर्जी समूह की सहायक कंपनी है। भारत में इसकी मुख्य परियोजना राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र में है।
केयर्न एनर्जी ने 16 जून 2010 को ब्रिटेन में पंजीकृत वेदांता समूह के साथ शेयर बिक्री का समझौता 16 जून 2010 को किया था। इसके तहत केयर्न ने कंपनी में अपनी बहुलांश हिस्सेदारी वेदांता को 8.5 अरब डालर में बेचने का करार किया। इस करार से पहले ओएनजीसी को केयर्न की ओर से बिक्री की पेशकश नहीं की गयी थी। (एजेंसी)
First Published: Thursday, May 9, 2013, 12:44