वोडाफोन टैक्‍स केस में आयकर विभाग को झटका - Zee News हिंदी

वोडाफोन टैक्‍स केस में आयकर विभाग को झटका



ज़ी न्‍यूज ब्‍यूरो

 

नई दिल्‍ली :सुप्रीम कोर्ट ने बांबे हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर वोडाफोन केस में आयकर विभाग को बड़ा झटका दिया है। वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग को भारत के आयकर विभाग के साथ कानूनी लड़ाई में बड़ी सफलता मिली है।

 

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक दूरगामी महत्व के निर्णय में बंबई हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें वोडाफोन को दूरसंचार कंपनी हचिसन से भारत में उसके मोबाइल सेवा कारोबार को खरीदने के सौदे को लेकर 11,000 करोड़ रुपए का आयकर अदा करने का आदेश दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाड़िया की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने आज व्यवस्था दी कि विदेश में पंजीकृत कंपनियों के बीच विदेश में हुए सौदे पर कर लगाना भारत के आयकर विभाग के क्षेत्राधिकार में नहीं हैं।

 

मुख्य न्यायाधीश कपाड़िया और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार के निष्कर्ष से सहमत जताते हुए न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन ने एक अलग आदेश में कहा कि भारत से बाहर गठित कंपनियों (वोडाफोन और हचिसन) के भारत से बाहर हुए सौदे का भारत के कर विभाग से कोई संबंध नहीं है। न्यायमूर्ति राधाकृष्णन ने कहा कि इसम मामले में  कि आयकर अधिनियम की धारा 163 के उपबंध 1(सी) के तहत वोडाफोन का कोई दायित्व नहीं बनता है।

 

अदालत ने आयकर विभाग से कहा कि न्यायालय के अंतरिम आदेश के अनुरूप वोडाफोन द्वारा जमा किए गए 2,500 करोड़ रुपये को चार फीसदी की ब्याज के साथ दो महीने के भीतर कंपनी को वापस कर दिया जाए। इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने वोडाफोन द्वारा दी गई 8,500 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी को भी चार हफ्तों के भीतर वापस करने का निर्देश दिया है। वोडाफोन ने हालांकि मई 2007 में 11.2 अरब डालर के सौदे में नीदरलैंड और केमैन द्वीप की कंपनियों के जरिए हांगकांग के हचिसन के समूह से हचिसन-एस्सार लिमिटेड में 67 फीसद हिस्सेदारी खरीदी थी।

 

वोडाफोन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकीलों में एक अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हम कोर्ट के आदेश से खुश हैं। न्यायालय ने इस मामले की गहनता से छान-बीन की और निष्कर्ष पर पहुंचा। नतीजा जो भी हो यह भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए बड़ी विजय है। वोडाफोन ने सितंबर 2010 में बंबई हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि यह सौदा भारतीय आयकर विभाग के क्षेत्राधिकार में आता है।

 

आयकर विभाग ने कहा कि इस सौदे के जरिए भारत में पूंजीगत लाभ कमाया गया इसलिए वोडाफोन को कर का भुगतान करना होगा और एक कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि उसे वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग के प्रतिनिधि करदाता क्यों नहीं माना जाए। वोडाफोन ने इस नोटिस को बंबई उच्च न्यायालय में यह कहते हुए चुनौती दी कि शेयरों का हस्तांतरण भारत से बाहर किया गया है और इस यह सौदा भारत के आयकर विभाग के अंधिकार क्षेत्र में नहीं आता। दिसंबर 2008 में हाईकोर्ट इस अपील को खारिज कर दिया जिसे वोडाफोन ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।

 

हाईकोर्ट ने भी जनवरी 2009 में वोडाफोन की अपील को खारिज कर दिया और आयकर विभाग को निर्देश दिया कि इस बात का फैसला करने कि यह सौदा उसके क्षेत्राधिकार में आता है या नहीं। उच्चतम न्यायालय ने हालांकि साथ में यह भी व्यवस्था दी थी कि यदि वोडाफोन को इस विषय पर आयकर विभाग के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने की छूट होगी। साथ ही कहा कि इस मामले में कानून के प्रश्न हमेशा उठाए जा सकते हैं।

 

वोडाफोन ने 14 सितंबर 2010 को उच्चतम न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर 2010 को जारी अंतरिम आदेश में उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ स्टे देने से इनकार कर दिया था। नवंबर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने वोडाफोन से कहा कि वह सुनवाई शुरू होने से पहले 2500 करोड़ रुपए जमा करे और 8,500 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी दे। न्यायालय यह भी कहा कि यदि मामला वोडाफोन के पक्ष में जाता है कि सरकार को ब्याज समेत वोडाफोन को यह राशि वापस करने होगी। उच्चतम न्यायालय ने तीन अगस्त 2011 केा इस मामले की सुनवाई शुरू की थी और 19 अक्तूबर 2011 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

First Published: Saturday, January 21, 2012, 09:46

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