Last Updated: Wednesday, December 14, 2011, 07:55

नई दिल्ली : विश्व अर्थव्यवस्था के बदतर हो रहे हालात से चिंतित वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि सरकार के पास नरमी से निपटने के विकल्प सीमित हैं। दिल्ली आर्थिक सम्मेलन में उन्होंने कहा कि विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं विशेष तौर पर यूरोप की अर्थव्यवस्थाएं आक्रामक राजकोषीय और मौद्रिक तरीके अख्तियार करने के बावजूद 2008 के आखिर में आई नरमी से उबर नहीं पाई हैं और यह कठिन दौर से गुजर रही है।
मुखर्जी ने कहा कि आक्रामक राजकोषीय और मौद्रिक तरीके अख्तियार करने के बावजूद यह (नरमी) उत्पन्न हुई है। नीति निर्माताओं के लिए यह गंभीर समस्या है। आने वाले दिनों में इससे उभरते हालात से निपटने के विकल्प सीमित हो जाएंगे। भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2011-12 की दूसरी तिमाही के दौरान घटकर 6.9 फीसदी रह गई जो पिछले साल की समान अवधि में 8.4 फीसद थी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में बरकरार अनिश्चितता और घरेलू दिक्कतों के बीच सरकार पिछले सप्ताह चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया है जो बजट के समय के नौ फीसद के अनुमान से काफी कम है।
साल 2008 में जब आर्थिक नरमी आई थी तो भारत ने भी अन्य देशों की तरह घरेलू उद्योग को वाह्य झटकों से उबरने के लिए उद्योग व्यवसाय को 1.86 लाख करोड़ रुपये या सकल घरेलू उत्पाद के तीन फीसदी के बराबर प्रोत्साहन पैकेज दिया था। आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति की समीक्षा से कुछ ही दिन पहले मुखर्जी का यह बयान आया है।
रुपये की गिरावट के संबंध में मुखर्जी ने कहा कि 2008 के वैश्विक संकट के मद्देनजर भारत में अत्यधिक पूंजी आई जिससे रुपए में मजबूती आई थी। हालांकि उन्होंने कहा ‘कि यूरो क्षेत्र में संकट सामने आने की वजह से यह फिलहाल चिंता का विषय हो गया है।
इसने ऐसी (पूंजी प्रवाह में) तेजी की प्रक्रिया पलट दी है, जिससे मुद्रा में उतार-चढ़ाव तेज हुआ है, पिछले कुछ महीनों में डालर के मुकाबले रुपये में भारी गिरावट आई है। रुपया आज के शुरुआती कारोबार में 52 पैसे लुढ़ककर 53.75 के ऐतिहासिक रूप से निम्नतम स्तर पर पहुंच गया।
उच्च मुद्रास्फीति के उच्च स्तर पर बरकरार रहने के बारे में वित्त मंत्री ने कहा कि यह पिछले कुछ साल से प्रमुख नीतिगत चिंता का विषय है। उन्होंने हालांकि इस बात पर संतोष जताया कि खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आ रही है। खाद्य मुद्रास्फीति 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई जबकि 22 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के दौरान यह 12.21 फीसदी के स्तर पर थी। मुखर्जी ने कहा कि वाह्य मांग की कमी के कारण भारतीय निर्यात की वृद्धि दर में कमी आई है, जिससे चालू खाता घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का करीब तीन फीसदी हो गया है।
(एजेंसी)
First Published: Monday, December 19, 2011, 15:19