खराब फॉर्म से उबरने के लिए सचिन ने नहीं खेले थे अपने पसंदीदा शॉट

खराब फॉर्म से उबरने के लिए सचिन ने नहीं खेले थे अपने पसंदीदा शॉट

खराब फॉर्म से उबरने के लिए सचिन ने नहीं खेले थे अपने पसंदीदा शॉटनई दिल्ली : सचिन तेंदुलकर का न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट श्रृंखला में तीन बार बोल्ड होना भले ही उनकी आलोचना का सबब बन गया हो लेकिन यह चैम्पियन क्रिकेटर अपने बल्ले से जवाब देने के फन में माहिर है और एक बार तो खराब फॉर्म से निजात पाने के लिये उन्होंने आस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने पसंदीदा शाट्स ही नहीं खेले।

यह बात है 2003-04 के आस्ट्रेलिया दौरे की। पहले तीन टेस्ट में सचिन 16.40 की औसत से सिर्फ 82 रन बना सके थे। मीडिया ने एक बार फिर इस महान बल्लेबाज की काबिलियत पर उंगली उठाई लेकिन इससे बेपरवाह सचिन ने चौथे टेस्ट में जो पारी खेली, वह उनकी मानसिक दृढता और परिपक्वता की नजीर बन गई।

सचिन ने तय कर लिया था कि वह ऑफ स्टम्प से बाहर जाती गेंदों को नहीं खेलेंगे। ना कवर ड्राइव लगायेंगे और ना ही अपना पसंदीदा स्ट्रेट ड्राइव। वह 10 घंटे 13 मिनट और 436 गेंद की अपनी मैराथन पारी में इस निर्णय पर अडिग रहे और बनाये नाबाद 241 रन। इसमें उन्होंने अधिकांश रन लेगसाइड पर बनाये।

इस पारी को अपनी सर्वश्रेष्ठ मानने वाले सचिन ने बाद में कहा था, मैं अपने सर्वश्रेष्ठ शतकों मं6 इस पारी को शीर्ष पर रखूंगा। मैं पूरी पारी में अनुशासित बना रहा। पिछले कुछ मौकों पर शाट्स के चयन में मुझसे गड़बड़ी हुई लिहाजा मैने कुछ स्ट्रोक्स नहीं खेलने का फैसला किया था। सचिन के इस शतक और पिछले 23 बरस के स्वर्णिम कैरियर में बने रिकॉर्ड 100 अंतरराष्ट्रीय शतकों का लेखा जोखा पेश किया है खेल पत्रकार धर्मेंद्र पंत ने अपनी किताब ‘ सचिन के सौ शतक में।

नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित इस किताब में सचिन की सिडनी में नाबाद 241 रन , पर्थ में 114 रन की पारी, चेन्नई में नाबाद 155 रन और बेंगलूर में 214 रन की पारी समेत कई यादगार पारियां शामिल हैं । तेंदुलकर को भले ही अपने सौवें अंतरराष्ट्रीय शतक के लिये एक साल इंतजार करना पड़ा लेकिन 15 नवंबर 1989 से लेकर अब तक के उनके कैरियर में रनों का अंबार लगाना और तिहरे अंक तक पहुंचना उनके लिये कठिन नहीं रहा । यही वजह है कि उन्हें ‘रन मशीन’ की संज्ञा दी गई ।

क्रिकेट पंडित उनके एक मैच या श्रृंखला में नाकाम रहने पर गाहे बगाहे उन्हें संन्यास की सलाह दे डालते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनके बल्ले से रन अभी भी उसी शिद्दत से निकल रहे हैं। बकौल सचिन, जिस दिन सुबह सोकर उठने पर मेरे लिये कोई लक्ष्य नहीं रहेगा और मुझे बल्ला पकड़ने का मन नहीं करेगा, मैं खुद खेल को अलविदा कह दूंगा। लेखक ने इस किताब में तेंदुलकर के हर शतक की पृष्ठभूमि का प्रभावपूर्ण चित्रण किया है। इसमें मैच का दबाव और माहौल भी पेश किया गया है जिससे मौजूदा पीढी के क्रिकेटप्रेमियों को भारतीय क्रिकेट में सचिन रमेश तेंदुलकर के योगदान का बोध होगा।

स्कूल जाने की उम्र में पाकिस्तान जैसी तूफानी गेंदबाजों से भरी टीम के सामने क्रिकेट के मैदान पर अपने कैरियर की शुरूआत करने वाले तेंदुलकर ने पहला टेस्ट शतक 14 अगस्त 1990 में इंग्लैंड के खिलाफ लगाया था । पहला वनडे शतक उन्होंने सितंबर 1994 में कोलंबो में लगाया। वनडे में दोहरा शतक जमाने वाले वह दुनिया के पहले बल्लेबाज बने।
सचिन के पहले शतक की कहानी भी कम रोचक नहीं है । भारत जब आजादी की 43वीं वषर्गांठ मनाने की तैयारी में जुटा था, तब 17 बरस का यह मासूम हजारों मील दूर अंग्रेजों के खिलाफ उनकी धरती पर क्रिकेट का ककहरा सीख रहा था। डेवोन मैल्कम, एंगस फ्रेजर जैसे तूफानी गेंदबाजों का सामना करते हुए तेंदुलकर ने छठे नंबर पर दबाव के हालात में यह शतक बनाया। तेंदुलकर ने जब क्रीज पर कदम रखा तब तक नवजोत सिंह सिद्धू, रवि शास्त्री, दिलीप वेंगसरकर और मोहम्मद अजहरूद्दीन आउट हो गए थे। तेंदुलकर के आने के बाद कपिल देव भी आउट हो गए। अब ढाई घंटे का खेल बचा था और इंग्लैंड को मैच जीतने के लिये चार विकेट चाहिये थे। मैदान पर थे सचिन और मनोज प्रभाकर। दोनों ने सातवें विकेट के लिये 160 रन जोड़कर मैच ड्रा कराया।

तेंदुलकर ने अपना 100वां अंतरराष्ट्रीय शतक 16 मार्च 2012 को ढाका में बांग्लादेश के खिलाफ बनाया जबकि 99वां शतक 12 मार्च 2011 को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नागपुर में बनाया था। बीच में कई बार वह शतक के करीब पहुंचे लेकिन उस जादुई आंकड़े को छू नहीं सके । दबाव बढता जा रहा था और शेर ए बांग्ला स्टेडियम पर आखिरकार वह ऐतिहासिक पारी देखने को मिली जिसका खुद तेंदुलकर को बेताबी से इंतजार रहा होगा।

बाद में उन्होंने कहा भी, मेरे सभी शतकों में यह सबसे मुश्किल शतक था। मैं जहां जाता , लोग इसी की चर्चा करते। होटल, रेस्त्रां या कहीं भी। लोग यह भूल जाते थे कि मैने 99 शतक बनाये हैं। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, September 4, 2012, 12:58

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