Last Updated: Thursday, September 22, 2011, 17:11
नई दिल्ली : अपनी कप्तानी से क्रिकेट जगत में अमिट छाप छोड़ने वाले मंसूर अली खां पटौदी ने भारतीय क्रिकेट में नेतृत्व कौशल की नई मिसाल और नए आयाम जोड़े थे. वह पटौदी ही थे जिन्होंने भारतीय खिलाड़ियों में यह आत्मविश्वास जगाया था कि वे भी जीत सकते हैं.
पटौदी का जन्म भले ही 5 जनवरी 1941 को भोपाल के नवाब परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने हमेशा विषम परिस्थितियों का सामना किया. चाहे वह निजी जिंदगी हो या फिर क्रिकेट. 11 साल के जूनियर पटौदी ने क्रिकेट खेलनी शुरू भी नहीं की थी कि ठीक उनके जन्मदिन पर उनके पिता और पूर्व भारतीय कप्तान इफ्तिखार अली खां पटौदी का निधन हो गया था.
इसके बाद जब पटौदी ने जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलना शुरू किया तो 1961 में कार दुर्घटना में उनकी एक आंख की रोशनी चली गयी. इसके बावजूद वह पटौदी का जज्बा और क्रिकेट कौशल ही था कि उन्होंने भारत की तरफ से न सिर्फ 46 टेस्ट मैच खेलकर 34.91 की औसत से 2793 रन बनाये बल्कि इनमें से 40 मैच में टीम की कप्तानी भी की. वह भारत के पहले सफल कप्तान थे. उनकी कप्तानी में ही भारत ने विदेश में पहली जीत दर्ज की. भारत ने उनकी अगुवाई में नौ टेस्ट मैच जीते.
टाइगर के नाम से मशहूर पटौदी की क्रिकेट की कहानी देहरादून के वेल्हम स्कूल से शुरू हुई थी, लेकिन अभी उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया था कि उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद जूनियर पटौदी को सभी भूल गये. इसके चार साल बाद ही अखबारों में उनका नाम छपा जब विनचेस्टर की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया. अपने पिता के निधन के कुछ दिन ही बाद पटौदी इंग्लैंड चले गये थे. वह जिस जहाज में सफर कर रहे थे उसमें वीनू मांकड़, फ्रैंक वारेल, एवर्टन वीक्स और सनी रामादीन जैसे दिग्गज क्रिकेटर भी थे. वारेल को तब पता नहीं था कि वह जिस बच्चे से मिल रहे हैं दस साल बाद वही उनके साथ मैदान पर टॉस के लिये उतरेगा.
नेतृत्व क्षमता उनकी रगों में बसी थी. विनचेस्टर के खिलाफ उनका करियर 1959 में चरम पर था जबकि वह कप्तान थे. उन्होंने तब स्कूल क्रिकेट में डगलस जार्डिन का रिकार्ड तोड़ा था. पटौदी ने इसके बाद दिल्ली की तरफ से दो रणजी मैच खेले और दिसंबर 1961 में इंग्लैंड के खिलाफ फिरोजशाह कोटला मैदान पर पहला टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला. कोलकाता में अगले मैच में उन्होंने 64 रन बनाये. उनके करारे शॉट से दर्शक तब झूमने लगे थे. भारत ने आखिर में यह मैच 187 रन से जीता था. चेन्नई में फिर से उन्होंने 103 रन की पारी खेलकर खुद को मैच विजेता साबित किया था. इस पारी में उन्होंने 14 चौके और दो छक्के लगाये थे.
वेस्टइंडीज दौरे में वह मांसपेशियों में खिंचाव की समस्या से जूझते रहे लेकिन तीसरे और चौथे टेस्ट मैच में उन्होंने 48 और 47 रन की दो जुझारू पारियां खेली थी. इसके बाद 1964 में इंग्लैंड टीम के भारत दौरे के शुरू में वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाये, लेकिन दिल्ली में उन्होंने नाबाद 203 रन की पारी खेलकर इसकी भरपायी कर दी जो उनका उच्चतम स्कोर भी है. ऑस्ट्रेलियाई टीम जब तीन मैच के लिये भारतीय दौरे पर आयी तो पटौदी ने अपने पिता की तरह इस टीम के खिलाफ अपने पहले टेस्ट मैच में शतक जड़ने का अनोखा रिकार्ड बनाया. यह बेहद यादगार पारी थी. उन्होंने जिस तरह से विवियर्स और मार्टिन जैसे गेंदबाजों के खिलाफ दबदबे से बल्लेबाजी की उसकी मिसाल आगे भी युवा क्रिकेटरों के सामने दी जाती रही. अगले टेस्ट मैच में उन्होंने 86 और 53 रन की दो जानदार पारियां खेली और भारत को नाटकीय जीत दिलायी.
उनके करियर का सबसे यादगार दौर 1968 में भारत का न्यूजीलैंड दौरा था. भारत ने तब पहली बार विदेशी सरजमीं पर टेस्ट मैच और टेस्ट श्रृंखला 3-1 से जीती थी. पटौदी 1969 तक भारतीय टीम के कप्तान रहे. इसके बाद वह विभिन्न कारणों से टीम का हिस्सा नहीं बन पाये. उन्हें हालांकि फिर से 1973 में टीम में वापसी का मौका मिला और फिर उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ पांच मैचों में कप्तानी की थी. इन मैचों में हालांकि उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया.
संन्यास लेने के बाद उन्होंने 1993 से 1996 तक आईसीसी मैच रेफरी की भूमिका भी निभायी. वह दो टेस्ट और दस वन डे में मैच रेफरी रहे. उन्हें 2008 में इंडियन प्रीमियर लीग की संचालन परिषद में शामिल किया गया था. उन्होंने 2010 में यह पद छोड़ दिया था. उन्होंने पिछले साल के शुरू में बीसीसीआई पर भुगतान नहीं करने का मामला भी दर्ज किया था. पटौदी को 1964 में अर्जुन पुरस्कार और 1967 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. उन्होंने भारतीय सिने तारिका शर्मिला टैगोर से 1969 में शादी की थी और उनके तीन बच्चे सैफ अली खान, सोहा अली खान और सबा अली खान हैं.
First Published: Thursday, September 22, 2011, 22:41