VVIP पहरे की भेंट चढ़ी आम आदमी की हिफाजत

VVIP पहरे की भेंट चढ़ी आम आदमी की हिफाजत

VVIP पहरे की भेंट चढ़ी आम आदमी की हिफाजतसंजीव कुमार दुबे

वीआईपी,वीवीआईपी सुरक्षा का मसला कोई नई बात नहीं। सरकार के नजरिए से यह जरूरी होता है कि वह आम आदमी की बजाय सबसे पहले वीआईपी और वीवीआईपी लोगों को सबसे पहले सुरक्षा प्रदान करने की बात सोचती है। लेकिन जब यह मामला देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में पहुंचता है तो सरकार के हाथ-पांव फूल जाते है। सरकार को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया जाता है।

केंद्र और राज्य सरकारों से इसका जवाब मांगा जाता है कि ये सरकारें वीआईपी,वीवीआईपी सुरक्षा पर कितना खर्च कर रही है। जाहिर सी बात है कि सुप्रीम कोर्ट के इस प्रकार के ब्यौरा को मांगने से साफ है कि खास आदमी को सुरक्षा देने के क्रम में आम आदमी असुरक्षित होता चला जा रहा है। आम आदमी असुरक्षित होता जा रहा है जिसका सीधा संबंध समाज में अपराध के ग्राफ के बढ़ने से भी है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यह सिलसिला लंबा है जब आदमी की सुरक्षा पर बहस-मुबाहिसा छिड़ता है लेकिन आम आदमी को इसका तनिक भी फायदा नहीं होता।

पिछले दिनों दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह सूचना दी थी कि राजधानी दिल्ली में विशिष्टि व्यक्तियों की सुरक्षा में 8049 पुलिसकर्मी तैनात हैं जिन पर सालाना 341 करोड़ रुपए खर्च आता है। राज्य सरकार के मुताबिक विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा के लिये चालू वित्त वर्ष में उसका कुल बजट 3,41,24,32,000 रुपए है जिसमें से 38,48,76,000 रुपए राष्ट्रपति भवन पर खर्च होते हैं। कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये 63,985 कर्मी तैनात हैं जबकि अपराधों की रोकथाम और जांच के काम में 3448 कार्मिक तैनात हैं। इसी प्रकार यातायात व्यवस्था में 5847 और राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा के लिये 844 कर्मी तैनात हैं।

गुजरात की बात करें तो राज्य में 238 अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों और 2002 के 163 दंगा पीड़ितों तथा गवाहों को राज्य में पुलिस सुरक्षा मिली है। इनकी सुरक्षा पर राज्य सरकार ने 30 करोड़ रुपए खर्च किये हैं। प्रदेश में सिर्फ मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडिया को ही जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त है।

राज्य में 67 व्यक्तियों को एक्स, वाई,जेड, जेड प्लस और 172 व्यक्यिों को अन्य वर्गो में व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान की गयी है। इसके अलावा 2002 के दंगों के 163 पीड़ितों तथा गवाहों को भी व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान की गयी है। राज्य सरकार ने एक फरवरी, 2012 से 31 जनवरी, 2013 की अवधि में इस मद में 30,71,88,000 रुपए खर्च किये हैं।

देश के विभिन्न राज्यों में मंत्रियों और तमाम वीआईपी लोगों की सुरक्षा पर होने वाले बेहिसाब खर्च पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतराज जताया था। जहां सरकार 800 लोगों के पीछे एक सुरक्षा कर्मी तैनात करती है, वहीं एक वीआईपी के पीछे तीन जवान तैनात किए जाते हैं।

यूपी सरकार करीब 1500 वीआईपी की सुरक्षा पर 120 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर रही है। आधिकारिक आकड़ों के अनुसार इस सुरक्षा व्यवस्था में 2913 पुलिसकर्मियों को लगाया गया है।

दिल्ली में अगर आप सुरक्षा का हाल-चाल लेंगे तो आपको मालूम होगा कि यहां वीआईपी और वीवीआईपी सुरक्षा चक्र को पुख्ता करने के बाद आम आदमी के लिए कुछ बचता ही कहा है।

दिल्ली में वीआईपी सुरक्षा का हाल

- 376 विशिष्ट लोगों को सुरक्षा
- 8,049 पुलिसकर्मी तैनात
- कुल 63,985 पुलिसकर्मी तैनात
- वीआईपी सुरक्षा पर 341 करोड़ रुपये खर्च हुए इस साल

दिल्ली पुलिस की सुरक्षा यूनिट में 7205 पुलिसकर्मी तैनात हैं। राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा के लिए 844 पुलिसकर्मी तैनात हैं। जिन लोगों को आतंकवादी संगठनों, नक्सली संगठनों के अलावा रुढि़वादी गुटों से जान का खतरा है उन्हें सरकार द्वारा जेड प्लस, जेड, वाई व एक्स श्रेणी की सुरक्षा मुहैया जाती है। इन लोगों में नेता व सरकारी मशीनरी से जुड़े लोग दोनों शामिल हैं।

इसके अलावा उन लोगों को भी सुरक्षा मुहैया कराई जाती है जिन्हें कोई धमकी तो नहीं है लेकिन वह ऐसे दफ्तर में तैनात हैं जहां जनहित में लिए गए निर्णय से वह किसी व्यक्ति या समूह के निशाने पर आए हों। इसके अलावा किसी भी व्यक्ति की जान को खतरा महसूस होने पर भी उसको सुरक्षा प्रदान की जाती है। सुरक्षा पाए लोगों को सुरक्षा की जरूरत की समय समय पर समीक्षा की जाती है। एक बात और कि इन सभी आंकड़ों में हर साल इजाफा होता चला जाता है जिससे आम आदमी को मिल रहा छोटा सा सुरक्षा चक्र और कमजोर होता चला जाता है।

वीआईपी और वीवीआईपी ये दो ऐसे सुरक्षा के चक्र है जिनपर सुरक्षा को लेकर हर खर्च किए जाते हैं,कोई लापरवाही नहीं बरती जाती लेकिन जब आम आदमी की बात आती है तो उसे सिर्फ आश्वासन मिलता है क्योंकि वीआईपी और वीवाईपी सुरक्षा देने के बाद उनके लिए कुछ बचेगा ही नहीं।

हालांकी नेता और सरकारी महकमे के बड़े लोगों को सुरक्षा देना कोई गलत नहीं है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि उन्हें सुरक्षा देने के दबाव और प्राथमिकता में सरकार आम लोगों को नजरअंदाज कर रही है और आम आदमी हर पल असुरक्षित होता चला जा रहा है। सवाल अब भी वही कि क्या आम आदमी किसी लम्हें में खुद को सुरक्षित महसूस करेगा ? या फिर आम आदमी की सुरक्षा भगवान के भरोसे ही रहेगी।

First Published: Tuesday, February 19, 2013, 15:08

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