अल्पसंख्यकों को आरक्षण का लॉलीपॉप - Zee News हिंदी

अल्पसंख्यकों को आरक्षण का लॉलीपॉप

रामानुज सिंह



केंद्र सरकार ने 22 दिसंबर, 2011 को ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरियों में 4.5 फीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी है। यह आरक्षण एक जनवरी 2012 से लागू मानी जाएगी। अल्पसंख्यकों के लिए यह आरक्षण, ओबीसी कोटे के 27 फीसदी आरक्षण में से काट कर 4.5 फीसदी दिया जाएगा।

 

सरकार का यह फैसला अगले साल पांच राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के चुनाव की तारीखों की घोषणा से ठीक दो दिन पहले आया। उत्तर प्रदेश देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है। जहां अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) की संख्या बहुतायत में है। यहां के मतदाता देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करते हैं। इसलिए देश के प्रमुख राजनैतिक दल यहां के चुनाव को काफी गंभीरता से ले रहे हैं।

 

कांग्रेस अल्पसंख्यक आरक्षण के जरिये राज्य में अपनी खोई ताकत वापस लाना चाहती है। समाजवादी पार्टी ने इस आरक्षण को नाकाफी बताते हुए इसे मुस्लिमों के साथ छल करार दिया। प्रदेश की सत्तासीन पार्टी बहुजन समाज पार्टी इस फैसले से पेशोपेश में है। भाजपा ने सरकार के इस फैसले को कांग्रेस का खतरनाक राजनीतिक खेल बताया। जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि यह निर्णय उत्तरप्रदेश में चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया है। उन्होंने केन्द्र को चुनौती दी कि वह सच्चर आयोग और रंगनाथ मिश्रा समिति की सिफारिशों को लागू करके दिखाए। माकपा ने केंद्र के फैसले को अपर्याप्त और दिखावटी करार देते हुए अल्पसंख्यकों को 15 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के लिए संविधान संशोधन करने की मांग की।

 

वाकई सरकार द्वारा देर से उठाया गया यह सराहनीय कदम है। आजादी के 64 साल बाद चुनावी राजनीति के बहाने ही सही देश में रह रहे अल्पसंख्यकों की याद तो सरकार को आई। लेकिन कोटे के भीतर कोटे का खेल सचमुच ओबीसी के तहत आने लोगों के साथ धोखा है।

 

ओबीसी के लोगों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण का नुकसान देकर सरकार ने समाज में एक खाई पैदा की है। एक तो पहले से ही समाज कौम-कौम और जाति-जाति में बंटकर आपसी भाईचारे को भूलता जा रहा है। किसी को रोटी का टुकड़े देकर फिर उससे छीनना उचित नहीं है।

 

यह भी सत्य है कि अल्पसंख्यकों में भी पिछड़ी जातियां की आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक स्थिति अच्छी नहीं है। उन्हें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण मिलना चाहिए। सरकार अगर सही मायने में इनकी तरक्की चाहती है तो इनके लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था करे ना कि किसी का निवाला छीने।
अल्पसंख्यक शब्द को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयेाग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) में परिभाषित किया गया है। मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी को अधिनियम की धारा 2 (सी) के तहत अल्पसंख्यक समुदाय के तौर पर अधिसूचित किया गया है।

 

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम, पंजाब में सिख और गोवा में ईसाई चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। अगले साल जनवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे ठीक पहले अल्पसंख्यक आरक्षण की घोषणा चुनावी स्टंट है और कुछ भी नहीं।

 

अब सवाल उठता है, अल्पसंख्यकों की पिछड़ी जातियों को 4.5 फीसदी आरक्षण से कितना लाभ मिल पाएगा और उसकी जिन्दगी कितनी बेहतर हो पाएगी? यह यक्ष प्रश्न है, एक और सरकारी नौकरियां घट रही हैं तो दूसरी ओर आरक्षण रेवरी की तरह बांटा जा रहा है। आरक्षण का यह लॉलीपॉप समाज के इस पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए कतई कारगर साबित नहीं होगा।

 

समाज में पिछड़े लोगों को उत्थान के लिए उसकी माली हालत को सुधारनी होगी। उसे शिक्षा से जोड़ना होगा। रोजगारोन्मुख शिक्षा से शिक्षित करना होगा। ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में लधु उद्योगों को बढ़वा देना होगा। कृषि आधारित उद्योग ग्रामीण इलाकों में लगाने होंगे ताकि लोगों का सर्वांगीन विकास हो सके। ना कि आरक्षण का झुनझुना देकर ठगने का काम किया जाए।

 

चुनावी समर पास आते ही सभी राजनैतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए अनेक तरह का खेल खेलती है। यह एक ओछी राजनीति है। इस प्रकार की सियासत से किसी का भला नहीं हो सकता। वोटरों को लुभाकर सत्ता पर काबिज होने की सियासी पार्टियों की इस मंसा को किसी भी सूरते हाल में उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

First Published: Wednesday, January 11, 2012, 23:08

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