आरक्षण का चक्रव्यूह-किसका फायदा?

आरक्षण का चक्रव्यूह-किसका फायदा?

आरक्षण का चक्रव्यूह-किसका फायदा?वासिंद्र मिश्र

आरक्षण के चक्रव्यूह में दोनों राष्ट्रीय दल बुरी तरह से फंसते नज़र आ रहे हैं। सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में रिजर्वेशन की मांग भले ही बीएसपी सुप्रीमो मायावती की रही है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के ढुलमुल रवैये के चलते इसका सर्वाधिक लाभ आने वाले लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को मिलता दिखाई दे रहा है।

आरक्षण के सवाल पर जिस तरह की खेमेबंदी संसद के अंदर और बाहर देखने को मिल रही है उससे लगता है कि एक बार फिर अम्ब्रेला वोट बैंक यानी सभी वर्गों और जातियों को एक साथ लेकर चलने के लिए खींचतान बढ़ गई है। अम्ब्रेला पॉलिटिक्स या अम्ब्रेला वोट बैंक के जरिए ही कांग्रेस पार्टी देश में कई दशक तक सत्ता पर काबिज रही है, लेकिन मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद और राम मंदिर आंदोलन के परवान चढ़ते ही अम्ब्रेला पॉलिटिक्स या अम्ब्रेला वोट बैंक में बिखराव भी शुरू हो गया। अम्ब्रेला वोट बैंक की धूरी ब्राह्मण, क्षत्रिय, दलित और मुस्लिम भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से जुड़ गए। नतीजतन कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल होना पड़ा, और मंडल-मंदिर की राजनीति के चलते देश के अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारें बनी और दिल्ली की गद्दी पर भी क्षेत्रीय दलों का गठबंधन-एनडीए का कब्जा हुआ।

लेकिन देश की जनता क्षेत्रीय दलों की सरकार के कथित कुशासन और बढ़ते भ्रष्टाचार से बहुत जल्दी उदासीन हो गई और एक बार फिर यूपीए गठबंधन को केंद्र की सत्ता की चाभी सौंप दी। जिस उम्मीद के साथ देश की आवाम ने यूपीए को सत्ता की कमान सौंपी थी उस पर मनमोहन सरकार की गलत नीतियों की वजह से पानी फिरता दिखाई दे रहा है।आरक्षण का चक्रव्यूह-किसका फायदा?

अब ऐसा लगता है कि देश के राजनेताओं को सकारात्मक मुद्दों (पॉजिटिव इश्यूज़) को लेकर आम जनता के बीच जाने का साहस नहीं बचा है। उनको लगता है कि कुशासन, आर्थिक भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोपों के चलते लगभग सभी राजनैतिक दलों के नेता अपनी साख गंवा चुके हैं और आम जनता में बेनकाब भी हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में एक बार फिर जज़्बाती, सांप्रदायिक और जातिवादी मुद्दों को उछाल कर 2014 के आम चुनाव की वैतरणी को पार करने की होड़ लगी हुई है और इस होड़ में देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और भाजपा यहां लुकाछिपी के खेल में है, वहीं बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी खुले तौर पर आमने-सामने हैं।

अगर प्रमोशन में रिजर्वेशन संबंधी विधेयक संसद में पारित हो भी जाता है तो ये महज सरकारी नौकरियों में लागू होगा, और आंकडो़ं पर नजर डालें तो ये किसी से छिपा नहीं है कि दिनों-दिन सरकारी नौकरियां कम होती जा रही हैं। ऐसी स्थिति में प्रमोशन में रिज़र्वेशन मसले को लेकर प्रस्तावित संविधान संशोधन कानून के ज़रिए देश के करोड़ों दलितों और अगड़ी जातियों का फायदा और नुकसान भले ही ना हो, लेकिन हमारे राजनेताओं और राजनैतिक दलों का भविष्य जरूर संवर और बिगड़ सकता है।

(लेखक ज़ी न्यूज उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड के संपादक हैं)

First Published: Friday, December 14, 2012, 12:57

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