ओबामा-रोमनी: राहें नहीं आसान, बनेगा इतिहास

ओबामा-रोमनी: राहें नहीं आसान, बनेगा इतिहास

ओबामा-रोमनी: राहें नहीं आसान, बनेगा इतिहासबिमल कुमार

अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान में अब कुछ ही समय शेष है। राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी ने वोटरों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और पूरी ताकत झोंक दी। बीते समय में वैश्विक रिपोर्टों और कुछ सर्वेक्षणों के अनुसार, ओबामा और रोमनी के बीच इस चुनाव में कड़े मुकाबले होने के आसार हैं। हालांकि कुछ मौकों पर ऐसा लगा कि ओबामा इस बार भी बाजी मार ले जाएंगे लेकिन रोमनी बीच-बीच में कुछ ऐसे उभरे कि यह मुकाबला बराबरी का भी होता नजर आया। चुनाव परिणाम चाहे जो भी हो, ओबामा और रोमनी के बीच व्हाइट हाउस की लड़ाई इतिहास बनने की ओर अग्रसर है। इस बार व्हाइट हाउस पर दावेदारी का मुकाबला काफी कड़ा हो गया है। सर्वेक्षणों के अनुसार, ओबामा और रोमनी की राह बेहद कठिन है, भले ही दोनों अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे हों।

अमेरिका में मौजूदा हालात के परिप्रेक्ष्‍य में यदि ओबामा को बढ़त मिल जाती है तो `सैंडी तूफान` के बाद चलाए गए राहत एवं बचाव अभियानों जैसे मसले को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। क्‍योंकि इन अभियानों की काफी सराहना हुई है। हालांकि तूफान की तबाही के बाद प्रचार अभियान में दोनों उम्मीदवारों ओबामा और रोमनी ने लोगों को लुभाने की भरपूर कोशिश की है। अब देखना होगा कि बाजी किसके हाथ लगती है।

राष्ट्रपति पद के चुनाव की घड़ी नजदीक आने के साथ ओबामा तथा रोमनी के बीच कांटे की टक्कर पर सभी की निगाहें टिकी हैं। इस चुनाव में कई ऐसे मसले हैं जो अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। वैसे भी अमेरिका का चुनावी इतिहास दर्शाता है कि देश के 50 राज्यों और एक संघीय जिले के मतदाताओं में अधिकांश घोषित रूप से डेमोकेट्रिक या रिपब्लिकन रूझान रखते हैं। वहीं, कोलोराडो, फ्लोरिडा, ओहायो जैसे 13 राज्य ऐसे हैं, जहां स्थिति कभी भी स्पष्ट नहीं रहती।

कभी यह साफ नहीं हो पाता है कि इन राज्‍यों में डेमोक्रेट के प्रति ज्‍यादा रुझान होगा या फिर रिपब्लिकन के प्रति। ऐसे में यहां कोई भी प्रत्‍याशी बाजी मार सकता है। यह न भूलें कि ओबामा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान इन राज्‍यों में बेरोजगारी व मंदी को दूर करने तथा आर्थिक स्थिति को मजबूत करने को लेकर अपनी ठोस प्रतिबद्धता जताई है।

साल 2008 के चुनावों के दौरान अमेरिका में ओबामा ने अपने चुनाव अभियानों में हर क्षेत्र में परिवर्तन पर खासा जोर दिया था, जिसका लाभ उनको मिला भी। अमेरिकी जनता ने इसी बदलाव की उम्मीद में उन्हें राष्ट्रपति चुना। इस उम्मीद के पूरा होने अथवा न होने का फैसला खुद जनता करेगी, लेकिन परिवर्तन शब्द एक बार फिर से गूंज रहा है। इस बार दिलचस्प यह है कि ओबामा और रोमनी दोनों ने खुद को परिवर्तन का वास्तविक दूत बताया है।

छह नवंबर को होने वाला मतदान तय करेगा कि दोनों नेताओं की ओर से किए गए परिवर्तन के वायदे के प्रति जनता ने किसको ज्‍यादा तवज्‍जो दिया। हालांकि रोमनी ने जमकर इस बात का प्रचार किया है कि पिछले चुनाव में ओबामा ने बदलाव का वादा किया था, लेकिन वह इसमें पूरी तरह विफल रहे। रोमनी ने तो मौजूदा आर्थिक नीतियों को लेकर ओबामा को जमकर घेरा और कह डाला कि अमेरिका ने यदि अपना रवैया नहीं बदला तो देश दूसरी मंदी की चपेट में आ जाएगा।

इस चुनाव में रोमनी के लिए राह शुरू से ही मुश्किल रही। रोमनी अप्रैल 2011 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हुए थे, लेकिन इस वर्ष 28 अगस्त को वह अंतिम रूप से पार्टी की उम्मीदवारी हासिल कर पाए। उन्हें कई प्राइमरियों और काकसों में अपनी ही पार्टी के महारथियों से मुकाबला करना पड़ा था। वहीं, मौजूदा राष्ट्रपति होने के नाते डेमोक्रेट उम्मीदवार के रूप में ओबामा की दावेदारी व्यापक तौर पर निर्बाध रही। परंतु उन्हें भी डेमोक्रेट उम्मीदवार बनने के लिए सभी 50 राज्यों में प्राइमरी और काकस की उम्मीदवारी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ा था।

यदि रोमनी जीतते हैं तो वह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी राष्ट्रपति को सत्ता से बाहर करने वाले चौथे प्रतिद्वंद्वी बन जाएंगे। रोमनी से पहले यह इतिहास बनाने वालों में 1976 में गेराल्ड फोर्ड को हराने वाले डेमोक्रेट जिम्मी कार्टर, कार्टर को 1980 में परास्त करने वाले रिपब्लिकन रोनाल्ड रीगन और जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश को 1992 में पराजित करने वाले डेमोक्रेट बिल क्लिंटन शामिल हैं। यदि ओबामा दुनिया की इस सबसे ताकतवर सत्ता को बरकरार रखने में सफल होते हैं, तो वह अपनी खराब अर्थव्यवस्था के बावजूद चुनाव जीतने वाले एक अनोखे राष्ट्रपति बन जाएंगे। कुछ सर्वेक्षणों में यह बात भी सामने आई कि देश के ज्यादातर लोग एक बार फिर ओबामा को अमेरिका के राष्ट्रपति के पद पर देखना चाहते हैं।

First Published: Monday, November 5, 2012, 17:52

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