Last Updated: Thursday, December 22, 2011, 08:53
इन्द्रमोहन कुमार बीसीसीआई ने क्रिकेट की दुनिया में आज जो मकाम हासिल किया है, वैसा हर कोई अपनी जिंदगी में पाने की इच्छा रखता है। एक समय था जब भारत में क्रिकेट की इस संचालक संस्था को कोई जानता तक नहीं था। आज सालाना 100 मिलिन डॉलर की कमाई करता है बीसीसीआई। यानी दुनिया में क्रिकेट का सबसे अमीर बोर्ड।

दशकों पहले सिर्फ नाम की संस्था थी बीसीसीआई और सरकार के रहमो करम पर चलता था बीसीसीआई। लेकिन आज हालात क्या है यह किसी से छिपा नहीं है। शायद यही कारण है कि आज जब सरकार इस पर लगाम गलान की कोशिश कर रही है, तो उल्टे जवाब देकर वह सरकार को चुप करा देती है बीसीसीआई। पहले भारत में ही क्रिकेट मैच दिखाने के लिए बीसीसीआई प्रसार भारती को पैसे देता था, मगर 1993 बाद बहुत कुछ बदला, तब भारत एक बार विश्वकप जीत चुका था। क्रिकेट भारतीयों के जेहन में रचने-बसने लगा था और तभी सचिन के साथ-साथ कुछ नए युवा खिलाड़ी टीम में आए, जिन्होंने अपने शानदार खेल की बदौलत देश और दुनिया में फतह के झंडे गाड़े।
बताने की जरूरूत नहीं कि इस खेल संस्था में खिलाड़ी से ज्यादा राजनेता पदासीन हैं। राज्य से लेकर केंद्र तक, सभी क्रिकेट बोर्ड में उच्चाधिकारी राजनेता ही हैं। फिर भी क्रिकेट भारत में खूब फल फूल रहा है। बीसीसीआई की ताकत से आईसीसी भी वाकिफ है और इसके बातों को मामने को विवश है। सही मायनों में आईसीसी विश्व में क्रिकेट की सुप्रीम संस्था है, मगर व्यावहारिक तौर पर ऐसा लगता नहीं।
आईसीसी बीसीसीआई के हस्तक्षेपों पर मुहर लगाता रहता है। चाहे कोई भी मामला देख लीजिए, मामला स्टीव बकनर को अंपायरिंग से हटा दिए जाने का हो, हरभजन सिंह द्वारा एंड्रयू सायमंड्स को गाली देने का हो, रिव्यू सिस्टम पर टांग अड़ाने का हो या आईसीएल में अपने तो अपने, दूसरे देशों के खिलाड़ियों को जाने से रुकवा देना हो। बीसीसीआई पूरी दुनिया की सबसे ताकतवर क्रिकेट बोर्ड है, जिसकी बात या तो मन से या मन मारकर आखिरकार सभी को सुननी पड़ती है। आप इसे बीसीसीआई की मनमानी कह सकते हैं, तानाशाही भी कह सकते हैं। फिर भी मानना पड़ेगा कि भारतीय क्रिकेट या बीसीसीआई ने मनमानी का यह हक कमाया है। यह दौड़ जगमोहन डालमिया के समय शुरु हुआ। पैसे के साथ उन्होंने बोर्ड के लिए नाम भी कमाया।
बीसीसीआई ने लोगों की नब्ज पढ़ी। युवाओं से लेकर आम लोगों में क्रिकेट के चढ़ते बुखार को समझा था और उसने प्रसार भारती को पैसे देने के बजाय उल्टे प्रसारण अधिकार बेचने की घोषणा की। इस फैसले से बीसीसीआई को करोड़ों-अरबों रुपयों का फायदा हुआ। दुनिया भर के टीवी चैनल देश की बढ़ती अर्थसमझ रहे थे , जिसे भुनाने में भारतीय क्रिकेट बोर्ड कामयाब रहा।
मगर मनमानी की भी एक हद होती है, वो भी जब अपने घर पर काबिज होने लगे तो विरोध होना लाजमी है। सबसे पहले भारत सरकार द्वारा लाए गए खेल विधेयक पर गौर कीजिए। बीसीसीआई को सूचना के अधिरकार के अंतर्गत लाने की कोशिश की गई, बोर्ड ने इसे न सिर्फ लौटाया बल्कि सरकार को नसीहत भी दे डाली। सुझाव देने वालों में खुद सरकार में बैठे लोग शमिल हैं क्योंकि वो बोर्ड के संचालन में भूमिका निभा रहे हैं। केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन भी बेबस नजर आते हैं।
अब बात अनिल कुंबले की करते हैं। बीसीसीआई से उनका कभी टकराव नहीं रहा, हमेशा टीम हित और उससे ज्यादा देशहित और खिलाड़ियों के समर्पण भाव के लिए वो जाने जाते रहे। चाहे वह ऑस्ट्रेलिया में हरभजन-साइमंड्स विवाद रहा हो या घायल होने के बाद भी मैदान में हाजिरी। नेशनल क्रिकेट अकादमी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना कुंबले नहीं बीसीसीआई पर सवाल खड़े करता है। सबको पता है कि चाबी किसके पास है और प्यादा चलता कैसे है। इसलिए कुंबले ने कहा कि वो सिर्फ नाम का पद नहीं चाहते।
इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड में कई ऐसे पद हैं जो सिर्फ नाम के हैं और काम कहीं और से क्रियान्वित होता है। दरअसल खामी बोर्ड में नहीं इसके मोल भाव को बढ़ाने वालों में है। वह भी तब, जब बीसीसीआई सरकारी या राष्ट्रीय संस्थान न होने के बावजूद बराबरी का कद रखता हो।
First Published: Wednesday, January 11, 2012, 23:09