Last Updated: Sunday, January 8, 2012, 09:21
इन्द्रमोहन कुमार1996 का समय याद कीजिए, भारतीय टीम में चोटी के बल्लेबाजों में सचिन तेंदुलकर, नवजोत सिद्धू, सौरभ गांगुली, मोहम्मद अजहरुद्दीन और राह पकड़ रहे राहुल द्रविड़ हुआ करते थे। ताबड़तोड़ रन जुटाने के लिए अजय जडेजा और रॉबिन सिंह की जोड़ी भी सामने आई। उस समय भी एक बात खास थी कि जब बल्लेबाजी का एक 'स्तंभ' आउट हो जाता था तब पूरी टीम सस्ते में सिमट जाती थी। यानी तू चल, मैं भी आता हूं।
सौरभ गांगुली कप्तान बने और टीम को एकजुट होकर खेल भावना के तहत खेलना दिखाया। विदेशों में जीतने के साथ श्रृंखला पर कब्जा करने की आदत भी यहीं से शुरु हुई। हालांकि यह पहली बार नहीं हो रहा था। मगर गांगुली ने जो शुरु में किया उसे ही आज 'टीम इंडिया' कहा जाता है। उनसे पहले लोग ‘भारतीय क्रिकेट टीम’ को जानते थे और 'सब चला तो सब भला, एक चला तो भी भला' होता था।
यह कहानी टीम इंडिया के साथ लगभग सभी विदेशी दौरे की है। पिछले साल इंग्लैंड दौरे पर क्या हुआ, सब जानते हैं। 4-0 से हारने के बाद टेस्ट टीम की बाशाहत गंवा दी टीम इंडिया ने, जो आज तक हासिल नहीं हुआ। अब जब भारतीय बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया के तेज पिचों और हवा के रुख से गेंदबाजों को मिलने वाली मदद से दो- चार हो रहे हैं तो उन्हे एक-एक रन के लिए तरसना पड़ रहा है। भारत ने 2002-03 में ऑस्ट्रलिया के पड़ोसी न्यूजीलैंड में वनडे सीरीज 2-5 से गंवाई थी। भारतीय टीम जिन दो मैचों में सफल रही थी, उसमें भी मामूली अंतर से जीत मिली थी।
यह पहली बार नहीं हुआ, जब भारतीय टीम को विदेशी पिचों पर जूझना पड़ा हो। टीम इंडिया के ऑस्ट्रेलिया के साथ अब तक खेले गए मैचों के प्रतिशत की बात की जाए तो केवल 24 फीसदी जीत भारत के खाते में है, शेष में ऑस्ट्रेलिया विजयी रहा है। ऑस्ट्रेलिया में मिली हार से साफ हो जाता है कि भारतीयों को यहां की धरती रास नहीं आई। भारतीय टीम फिर से यहां क्रिकेट खेलेगी तो उसे यहां की परिस्थितियां कमोबेश पहले जैसी ही मिलने वाली है। यहां बल्लेबाजी करना आसान नहीं है क्योंकि हवा चलने पर 130 किमी रफ्तार वाली गेंद 135 किमी की रफ्तार से आती है, जिससे बल्लेबाज का आकलन गड़बड़ा जाता है। इसमें अगर स्विंग करती गेंद पर चूक गए तो फिर मौका नहीं मिलता। ऐसा भारतीय गेंदबाजों के साथ भी होता है पर उसका फायदा बल्लेबाजी में उठाते नहीं बल्कि जूझते हैं। माना कि कंगारूओं को होम ग्राउंड का फायदा मिलता है पर वो बाहर भी ऐसा ही जौहर दिखाते हैं, जो भारतीय क्रिकेट में कम है।
अब बात दिग्गज बल्लेबाजी की करते हैं। टीम इंडिया की बल्लेबाजी कागज पर जितनी अच्छी लगती है, वो वास्तव में उससे ज्यादा अच्छी है। मगर सवाल उठता है कि आखिर कब तक पुरानी गाड़ी से बेहतर माइलेज लेते रहेंगे? सचिन पर शक नहीं, पर महाशतक ने सब महिमा मंडन कर रखा है। ‘अर्ध’ से ‘शतक’ और महा... कब बनेगा, खुद सचिन भी कन्फ्यूज्ड होंगे। 21 पारी से इंतजार जारी है महाशतक का । राहुल तो ‘द वाल’ हैं, वनडे छोड़ चुके हैं पर टी-20 के कप्तान हैं (राजस्थान रॉयल्स)। मगर संयोग देखिए, वो खुद एक अनचाहे रिकॉर्ड की ओर बढ़ रहे हैं। द्रविड़ लगातार 52वीं बार क्लीन बोल्ड हुए जो टेस्ट क्रिकेट में एलन बार्डर के 53 मर्तबा आउट होने के विश्व रिकॉर्ड के एक कदम पीछे हैं। वो कब विश्व रिकॉर्ड बना बैठेंगे, यह उनकी बल्लेबाजी बताएगी। गौतम गंभीर से जितनी उम्मीदें थी, सब गोल हो गया। सलामी बल्लेबाज के रूप में वो विदेशी पिचों पर बचते नजर आते हैं, अभी तक का ऑस्ट्रेलिया में उनका इतिहास यही कहता है। इस बार वीवीएस लक्ष्मण का ऑस्ट्रेलिया में एक भी स्पेशल पारी नहीं दिख रहा।

दरअसल स्विंग होती बॉल भारतीयों के लिए हमेशा से परेशानी का कारण रही है। इनस्विंग पर गति से मात खाना तो पुरानी आदत है, जो इस बार ऑस्ट्रेलिया दौरे में देखने को मिल रहा है। दूसरी बात टीम इंडिया के ‘बेंच स्ट्रेंथ’ यानी रिजर्व में अतिरिक्त और युवा खिलाड़ियों का अभाव है, खासकर टेस्ट क्रिकेट में। विराट कोहली पिच पर टिक नहीं पाते, धोनी की शैली पर सिर्फ धुआंधार पारी की उम्मीद की जा सकती जो टेस्ट में अपवाद है। युवराज अब फिट नहीं रहते और टेस्ट में अपनी लंबी और जुझारू पारी नहीं दिखाते। वीरू की बात जुदा है, वो अपनी तरह खेलते हैं और कब फॉर्म में आएंगे, खुद नहीं जानते।
जिस दिन राहुल-सचिन-लक्ष्मण की तिकड़ी अलविदा होगी, उस दिन टेस्ट में टीम इंडिया के पास कौन सा तुरूप होगा, यह न क्रिकेट बोर्ड को पता है और न क्रिकेट प्रेमी इसका जवाब ढूंढ़ पाए हैं। जवाब चाहिए तो क्रिकेट ऑस्ट्रलिया की तरफ देखिए!
First Published: Sunday, January 8, 2012, 14:52