चीनी नीयत की अनदेखी होगी बड़ी भूल|China

चीनी नीयत की अनदेखी होगी बड़ी भूल

चीनी नीयत की अनदेखी होगी बड़ी भूलआलोक कुमार राव

चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी (डीओबी) में दाखिल हुए 10 दिन से अधिक हो गए हैं। चीनी सेना तंबू तानकर वहीं जमी हुई है और वापस जाने को तैयार नहीं है। चीन के साथ भारत तीन फ्लैग मीटिंग कर चुका है और राजनयिक स्तर पर भी बातचीत जारी है, इसके बाद भी चीनी सेना पीछे हटने को तैयार नहीं है। विरोध जताने के लिए भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) उसके सामने डेरा डाल चुकी है और सामरिक रूप से अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए अपनी टुकड़ियां आस-पास के इलाकों में तैनात भी कर चुकी है।

इतना सब कुछ होने के बाद अब सवाल यह उठता है कि चीन बार-बार भारत के दावे वाले इलाके (चूंकि दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा नहीं है) में घुसपैठ क्यों करता है? रिपोर्टों पर भरोसा करें तो पिछले तीन सालों में चीन 600 बार भारतीय दावे वाले इलाके में दाखिल हो चुका है। उसके हेलीकॉप्टर भी हाल के दिनों में भारतीय सीमा में दाखिल हुए हैं। चीन कभी अरुणाचल प्रदेश के एक बड़े इलाके को अपना बताता है तो कभी अक्साई चीन पर अपना दावा ठोकता है। आखिर सीमांकन को लेकर अभी भी इतनी अस्पष्टता क्यों है? भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश यदि पाकिस्तान ने की होती तो नई दिल्ली की प्रतिक्रिया क्या ऐसी ही होती जैसी कि चीन के साथ है? सरहद को लेकर हम दोहरा मापदंड क्यों अपनाते हैं?

सवाल यह भी है कि भारतीय सीमा में इतने दरवाजे क्यों खुले हैं कि जब भी जिसका मन चाहता है घुसा चला आता है और इस तरह की घुसपैठ के बाद हम हाय-तौबा मचाने लगते हैं? इन स्थितियों के लिए जिम्मेदार कौन है? हमारी विदेश नीति या फिर सामरिक नीति? क्या भारतीय संप्रुभता की रक्षा के लिए जिम्मेदार सभी संस्थानों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वे भारत की सरहदों की सुरक्षा करें और ऐसी नौबत न आने दें।

चीनी सेना द्वारा भारतीय सीमा का अतिक्रमण अथवा घुसपैठ किए जाने पर विदेश मंत्रालय की ओर से अक्सर यह दलील दी जाती है कि चीन के साथ करीब 4000 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सीमांकन नहीं है। कभी चीनी तो कभी भारतीय सेना एक-दूसरे के दावे वाले क्षेत्र में दाखिल हो जाती है और विवाद होने पर दोनों देशों के बीच सीमा पर गठित संयुक्त तंत्र के जरिए हल निकालने की कोशिश की जाती है। लेकिन इस बार इन गठित तंत्रों के बीच बातचीत के 10 दिन बाद भी कोई परिणाम नहीं निकल सका है। चीन सीमा की अस्पष्टता को आधार बनाकर अक्सर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करता रहता है। यह अस्पष्टता आखिर चीन के लिए ही क्यों है, भारत के लिए क्यों नहीं है? भारतीय सेना सीमा की अस्पष्टता को आधार बनाकर चीन के दावे वाले क्षेत्र में क्यों नहीं दाखिल होती है?

चीनी नीयत की अनदेखी होगी बड़ी भूल

अगर जैसा को तैसा वाले सिद्धांत पर विश्वास करें तो क्या भारत को भी सीमा की अस्पष्टता का आधार बनाकर चीन के दावे वाले इलाके में घुसपैठ नहीं करना चाहिए? सवाल मंशा का है और चीन की मंशा क्या है, उससे हम सभी भलीभांति परिचित हैं। चीन को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए हम यह नीति कब सीखेंगे? चीन पर दबाव बनाने के लिए क्या यह रास्ता उचित नहीं है? चीनी सेना को डीओबी से खदेड़ने के लिए भारतीय सेना यदि वहां अपनी रेजीमेंट खड़ी करती है तो चीन यह भी कह सकता है कि भारत उकसावे की कार्रवाई कर रहा है?

यह सबको पता है कि चीन दुनिया में अपने बाजार को बढ़ाते हुए अपने साम्राज्य की चौहद्दी का विस्तार करना चाहता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसने अपनी पहचान एक दबंग ‘बलशाली’ राष्ट्र के रूप में कायम की है। यह अलग बात है कि सामरिक दृष्टि से भारत से कमजोर राष्ट्र फिलीपींस, ताइवान और जापान जैसे देश उसे आंखे तरेर परिणाम की परवाह किए बगैर आगे निकल जाते हैं और हम 1962 की हार से उबर नहीं पाते हैं, जबकि स्थितियां बदल चुकी हैं।

मुझे लगता है कि आज की स्थिति के लिए भारत खुद जिम्मेदार है। चीन के साथ सीमा की अस्पष्टता आज भी क्यों बनी हुई है? 1962 की लड़ाई के बाद सीमा विवाद सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच बना तंत्र इतना आगे क्यों नहीं बढ़ पाया कि एक सर्वमान्य रास्ता निकाला जा सके? क्या यह कूटनीतिक तंत्र और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमजोरी और एक मायने में विफलता नहीं है? चीन द्वारा घुसपैठ किए जाने पर हम रक्षात्मक अथवा सफाई पेश करने वाली मुद्रा में क्यों होते हैं, इसका जवाब चुनी गई सरकार के अलावा कौन देगा?

टकराव टालने और रास्ता निकालने के लिए बातचीत ही सबसे बेहतर विकल्प होता है, लेकिन यह बातचीत डर के साए में नहीं बल्कि बराबरी के स्तर पर होनी चाहिए। अहंकारी चीन को सही अर्थों में बातचीत की मेज पर लाने के लिए उस पर दबाव बनाना होगा, इसके लिए सबसे जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना है, जिसका अभाव अक्सर हमारे शीर्ष नेतृत्व में दिखाई देता है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चीन सीमा विवाद का हल नहीं चाहता। उसकी मंशा भारत के साथ विवाद कायम रखने की है ताकि वह जब भी चाहे भारत के दावे वाले क्षेत्र में मुंह उठाए दाखिल होता रहे और विवाद का हल हमेशा उसकी शर्तों पर हो। यह भी हो सकता है कि वह भारत की प्रतिक्रिया जांचने के लिए समय-समय पर इस तरह की घुसपैठ को अंजाम देता हो।

बीजिंग का मकसद चाहे जो कुछ भी हो, नई दिल्ली को परिणाम की परवाह किए बगैर उसी के लहजे में उसे जवाब देना चाहिए ताकि यह संदेश जाए कि तुम अगर 10 किलोमीटर घुसपैठ करोगे तो हम भी शांत नहीं बैठेंगे और हम भी आगे बढ़ेंगे। दुनिया के देशों के साथ हमारे रिश्ते चाहे जिस ऊंचाई पर कायम हों, हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान के बाद दक्षिण एशिया में चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जिसकी गंदी नजर हमारी सरजमीं पर है और इसे दरकिनार करना या नजरअंदाज करना बड़ी ऐतिहासिक गलती होगी।



First Published: Friday, April 26, 2013, 11:25

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