छोटे बजट की फिल्मों का कमाल -The magic of Wonderful small budget films

छोटे बजट की फिल्मों का कमाल

छोटे बजट की फिल्मों का कमालसंजीव कुमार दुबे

बॉलीवुड में 2013 में सिर्फ दो ही ऐसी फिल्में आई जिन्होंने 100 करोड़ का बिजनेस किया। फिल्म रेस-2 और ये जवानी है दीवानी। लेकिन बॉलीवुड में 2013 में ऐसी कई फिल्में आई जिनका बजट काफी कम था, कोई नामचीन चेहरा इस फिल्म में नहीं था लेकिन कामयाबी और पैसे के मामले में इन फिल्मों ने खूब डंका बजाया और उम्मीद से ज्यादा कर दिखाया।

2013 में एबीसीडी (एनीबडी कैन डॉन्स), काई पो छे, चश्मे बद्दूर, आशिकी-2, गो गोवा गॉन, जॉली एलएलबी और हाल ही में रिलीज हुई फुकरे। इन फिल्मों की खासियत यही थी यह कम बजट की फिल्में थी लेकिन इन फिल्मों ने अपनी लागत वसूलने के साथ बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त मुनाफा कमाया।

मिसाल के तौर पर आप इस कैटेगरी की कुछ फिल्मों के आंकड़ों को ही ले। रेमो डिसूजा की फिल्म एबीसीडी बनी सिर्फ 12 करोड़ में जिसने 46 करोड़ का कारोबार किया। आशिकी-2 फिल्म की लागत थी सिर्फ 10 करोड़ थी लेकिन इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 86 करोड़ का बिजनेस किया। इस फिल्म में अभिनेता और अदाकारा का चेहरा नया था। श्रद्धा कपूर और आदित्य राय कपूर की यह पहली बॉलीवुड फिल्म थी लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने कामयाबी का परचम लहराकर सबको हैरत में डाल दिया।

अभिनेता सैफ अली खान के प्रोडक्शन में बनी फिल्म गो गोवा गॉन की लागत 16 करोड़ थी लेकिन यह फिल्म भी 25 करोड़ का बिजनेस कर पाने में कामयाब रही। दिल्ली के मस्ती भरे माहौल पर आधारित फिल्म फुकरे को 12 करोड़ की लागत से बनाया गया जो रिलीज होने के बाद 32 करोड़ का बिजनेस कर पाने में सफल रही। महिला किरदार को प्रमुखता से उभारने वाली फिल्म कहानी की लागत सिर्फ 8 करोड़ थी जबकि इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 82 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार किया।

दूसरी तरफ आप देखें तो इसी साल बड़े बजट की फिल्मों में शुमार मटरू की बिजली का मंडोला, यमला-पगला दीवाना-2, बॉम्बे टॉकीज,नौटंकी साला, जिला गाजियाबाद और औरंगबेज जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर पिट गई।

यानी बॉलीवुड में देखा जाए तो इस साल ज्यादातर अबतक बॉक्स ऑफिस ने ऐसी फिल्मों को ही गले लगाया है जो छोटी बजट की फिल्में थी। जिनमें कोई नामचीन स्टार नहीं था। बहुत कुछ दांव पर नहीं था। यानी छोटी बजट की फिल्मों का जादू ऐसा लगता है कि अब बॉलीवुड में सिनेदर्शकों के सर चढ़कर बोलने लगा है।

फिल्म समीक्षकों का मानना है कि दर्शक सिर्फ बड़े स्टार या बिग बजट की फिल्में ही देखने जाते हैं, सिर्फ ऐसा ही नहीं है। बल्कि दर्शकों की रुचि उन फिल्मों में भी होती है जिनमें भले ही नामचीन स्टार नहीं हो लेकिन अगर फिल्म का कंटेट उन्हें अपनी तरफ खींचता हो तो दर्शक इन फिल्मों का रुख जरूर करते हैं। यानी यह कहा जा सकता है कि इन फिल्मों का कंटेट और उसकी सादगी ही दर्शकों को अपनी ओर खींच पाने में कामयाब हुई। तभी इन लो बजट की फिल्मों को हाई रिस्पॉन्स मिला।

इस तरह की फिल्मों का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि एक फिल्म निर्माण के दौरान होनेवाले तमाम तरह के अवांछित तामझाम पहले ही खत्म हो जाते हैं। फिल्म का बजट कम होने से उसके प्रबंधन में आसानी होती है और फिल्म के निर्माण में वित्तीय बाधा नहीं आती क्योंकि उसका बजट पहले ही कम होता है। फिल्म की शूटिंग बड़े लोकेशन पर नहीं की जाती। लोकेशन सीमित होने से फिल्म के जल्दी पूरा होने में मदद मिलती है और खर्च भी बच जाती है।

दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इस तरह की फिल्मों में कोई नामचीन स्टार नहीं होता लिहाजा नखरे का नामोनिशान नहीं होता और फिल्म की शूटिंग निर्बाध रूप से चलती रहती है। इसका फायदा फिल्म के शूटिंग शिड्यूल को होता है और ऐसी फिल्में कम समय में ही बनकर तैयार हो जाती है। बड़ी फिल्मों के बड़े स्टार एक साथ कई प्रोजेक्ट में बिजी होते है लिहाजा फिल्म के बनने और शूटिंग शेड्यूल को लेकर देरी होती चली जाती है और बजट भी तय सीमा से बढ़ता चला जाता है जबकि छोटी बजट की फिल्मों में ऐसा नहीं होती और यही वजह है कि ऐसी फिल्में कम समय में बनकर तैयार हो जाती है।

इस साल रिलीज हुई एक फिल्म बड़े ही सीधे-सादे अंदाज में बनी। इस फिल्म में कोई नामचीन अदाकार नहीं था। सभी कलाकार नवोदित थे जिनकी पहचान अब तक बॉलीवुड में नहीं हो पाई है। काई पो छे , इस फिल्म की लागत सिर्फ 12 करोड़ थी। फिल्म की सादगी, सदी हुई पटकथा ने इसे कामयाब बनाया और फिल्म ने 52 करोड़ रुपये की कमाई की। फिल्म की समीक्षकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।

इस फिल्म से एक बात साबित हुई कि फिल्म का विषय सरल है तो उसे सिनेपर्दे पर सफल होने से भी कोई नहीं रोक सकता। कंटेट इज द किंग की बात यहां भी लागू होती है। क्योंकि कंटेट पार्ट का मजबूत होना हर क्षेत्र के लिए मायने रखता है चाहे वह फिल्म उद्योग की क्यों ना हो।

कहानी, उड़ान, प्यार का पंचनामा,पीपली लाइव,तेरे बिन लादेन,गो गोवा गॉन, आशिकी-2 इन सभी फिल्मों की भी यही खास बात है। ये फिल्में छोटी बजट की फिल्में थी जिन्होंने अपनी लागत से कई गुना कमाई कर निर्माताओं को मालामाल कर दिया। यानी लो बजट की फिल्मों का निर्माण बॉलीवुड के उन निर्माताओं के लिए खुशियों की किरण लेकर आया है जिनका पास ज्यादा बजट की फिल्म का स्कोप नहीं है और जो ज्यादा जोखिम लेने में यकीन नहीं रखते।




First Published: Tuesday, July 9, 2013, 13:51

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